Friday, November 22, 2024
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आखिर किसे जाता है भारत की बेहतर अर्थव्यवस्था का श्रेय?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि भारत की बेहतर अर्थव्यवस्था का श्रेय आखिर किसे जाना चाहिए! मोदी सरकार ने बीते दिनों संसद में कांग्रेस की अगुआई वाले UPA संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के खिलाफ श्वेत पत्र पेश किया। यह श्वेत पत्र यूपीए के 10 साल 2004-14 के कार्यकाल के दौरान हुए आर्थिक कुप्रबंधन पर निशाना साधता है। इसके उलट NDA युग 2014-24 की तारीफ करता है। बेशक, यूपीए सरकार ने कई गलतियां की हैं। इसमें भी शक नहीं कि मोदी सरकर ने जो कुछ विरासत में मिला था उसमें काफी सुधार किया। एक ज्‍यादा मजबूत अर्थव्यवस्था की नींव तैयार की। इसके बावजूद यह श्वेत पत्र वस्तुनिष्ठ विश्लेषण के मुकाबले चुनाव पूर्व आक्षेप की तरह ज्‍यादा लगता है। एक छोटे से कॉलम में श्‍वेत पत्र की डिटेल्‍स नहीं बताई जा सकती हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि यह ऊंची महंगाई दर, भ्रष्टाचार, राजकोषीय लापरवाही और वित्तीय प्रणाली को बर्बाद करने के लिए कांग्रेस की आलोचना करता है। यूपीए-1 ने कम महंगाई के साथ रिकॉर्ड जीडीपी ग्रोथ हासिल की। श्वेतपत्र इसका श्रेय अच्छे प्रबंधन को नहीं, अलबत्‍ता अच्‍छी ग्‍लोबल परिस्थितियों को देता है। यूपीए-2 को डबल डिजिट में महंगाई की दर का सामना करना पड़ा। इससे 2014 में उसकी चुनावी हार हुई। लेकिन, क्या यह सिर्फ आर्थिक कुप्रबंधन था? नहीं, जब 2004 में यूपीए सत्ता में आई थी तो तेल की कीमत 40 डॉलर प्रति बैरल थी। लेकिन, मई 2014 तक यह बढ़कर 110 डॉलर प्रति बैरल हो गई। इससे महंगाई बढ़ गई।

अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर खाने-पीने की चीजें भी 2008 में आसमान छूने लगी थीं। इससे महंगाई की दर 2014 तक ऊंची रही। मई 2004 में शिकागो गेहूं की कीमत 3.50 डॉलर प्रति बुशेल थी। यह 2008 में थोड़े समय के लिए बढ़कर 10 डॉलर प्रति बुशेल हो गई थी। मई 2014 में यूपीए शासन समाप्त होने पर भी कीमत 6.75 डॉलर प्रति बुशेल थी। अन्य कृषि उत्‍पादों की कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई। भारतीय किसान विदेशी प्रतिद्वंद्वियों से पीछे न रह जाएं, यह सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कई चरणों में बढ़ाया जाना था। यूपीए-2 भारी महंगाई के वैश्विक माहौल का सामना करने के लिए मजबूर था या कह सकते हैं कि उसका दुर्भाग्‍य था। नरेंद्र मोदी 2014 में सत्ता में आए। तब तेल 110 डॉलर प्रति बैरल था। छह महीने के भीतर कीमत गिरकर 45 डॉलर/बैरल हो गई। यह ‘अच्छे दिन’ के बजाय ‘अच्छे तारों’ का मामला था। बाद में यूक्रेन युद्ध के साथ कीमत बढ़ी और फिर गिर गई। लेकिन, अब भी बमुश्किल 78 डॉलर/बैरल है। श्वेतपत्र यूपीए के तहत हर आर्थिक झटके को कुप्रबंधन और एनडीए शासन के दौरान हर लकी ब्रेक को अच्‍छा प्रबंधन बताते हुए प्रतीत होता है।

एनडीए ने सामान्य खर्च के बजाय विस्थापितों के लिए मुफ्त भोजन पर फोकस किया। ऐसा करते हुए वह कोविड की वित्तीय चुनौतियों से अच्छी तरह निपटा। श्वेत पत्र में कोविड की राजकोषीय चुनौती के प्रति एनडीए की अच्छी राजकोषीय प्रतिक्रिया और 2008 की मंदी के प्रति यूपीए की खराब प्रतिक्रिया की तुलना की गई है। यूपीए के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी मंदी से निपटने के लिए 2009-10 में भारत के राजकोषीय घाटे को 6.6 फीसदी तक ले गए थे। श्वेत पत्र में घाटे को बहुत लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर छोड़ने के लिए उनकी आलोचना की गई है। लेकिन, कोविड से निपटने के लिए एनडीए के अपने आंकड़े देखें। 2020-21 में राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद संशोधित अनुमान का 7.5% हो गया। इसमें धीरे-धीरे कमी आई है। लेकिन, चालू वर्ष में यह अभी भी 5.8% है जो मुखर्जी के घाटे के बराबर है जिसकी श्वेत पत्र में आलोचना की गई है।

बड़ी तस्वीर बहुत अलग है। भारत आज एक आर्थिक शक्ति है। तूफानी वैश्विक माहौल में स्थिरता की चट्टान है। इसमें अभी भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और प्रदूषण प्रमुख समस्याएं हैं। फिर भी भारत सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया है। यह जरूरी नहीं कि यह एक पार्टी के बुरे शासन और दूसरे के अच्छे शासन का नतीजा हो। यह 1991 के बाद से सुधारों और नवाचारों का प्रभाव है। इसका श्रेय सभी संबंधित राजनीतिक दलों को साझा करना चाहिए। हर सरकार में गलतियां और घोटाले हुए। शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रदूषण और नौकरियों की बुनियादी समस्याओं से निपटने में सभी विफल रहे हैं। लेकिन, हर सरकार ने भारत को 1991 में एक दिवालिया, विश्व स्तर पर अप्रतिस्पर्धी देश से 2024 में एक परिष्कृत अर्थव्यवस्था तक पहुंचने में मदद की। इसके बारे में दावा करने के लिए बहुत कुछ है।

बड़े बुनियादी ढांचे पर जोर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शुरू हुआ था। यूपीए की ओर से इसका विस्तार किया गया। लेकिन, कई मायनों में इसमें गड़बड़ी हुई। एनडीए ने इन खामियों से सीखा। बुनियादी ढांचे को ऐसा सेक्‍टर बनाया जिस पर वह गर्व कर सके। लेकिन यह यूपीए और एनडीए दोनों का मिलाजुला रयास है। JAM ट्रिनिटी – जन धन योजना, आधार और मोबाइल फोन – जिस पर बीजेपी दावा करती है, उसकी उत्पत्ति यूपीए की पहल में हुई थी। स्वच्छ भारत का निर्माण यूपीए के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर हुआ। आवास योजना कांग्रेस के तहत शुरू हुई। एनडीए ने इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। वस्तु एवं सेवा कर दोनों की रिजीम में विकसित हुआ। मंदी से प्रभावित कंपनियों और बैंकों की सफाई भी इसी तरह हुई।

लब्‍बोलुआब यह है कि एनडीए ने यूपीए की कई पहलों को अपनाया। उनमें सुधार किया और उनका विस्तार किया। इससे कांग्रेस के सामने एक गंभीर समस्या खड़ी हो गई है। कांग्रेस की ओर से शुरू की गई पहल को लागू करने के लिए वह बीजेपी की आलोचना कैसे कर सकती है? लेकिन, राष्ट्रीय दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य से हमें एक मजबूत अर्थव्यवस्था के निर्माण का जश्न मनाना चाहिए।

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