हाल ही में कई विपक्षी पार्टियों की मीटिंग हुई है! सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, शरद पवार, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, एमके स्टालिन, हेमंत सोरेन, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव… सियासत के ये धुरंधर बेंगलुरु में जमा हुए हैं। एजेंडा है 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने की साझा रणनीति बनाना। मंगलवार को कुल 26 दलों के नेता एक साथ बैठकर मिशन 2024 का प्लान बनाएंगे। यह बैठक बंद दरवाजे के पीछे होगी। सोमवार को बेंगलुरु के ताज वेस्ट एंड होटल में डिनर मीटिंग हुई। टेबल पर बीच में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी बैठी थीं। उनके बाईं तरफ कांग्रेस अध्यक्ष खरगे और फिर राहुल बैठे थे। ममता, सोनिया के दाईं तरफ वाली कुर्सी पर विराजमान थी। पहली नजर में यह सीटिंग प्लान भले ही खास न लगे, मगर विपक्षी दलों के बीच खींचतान को ध्यान में रखते हुए अहम हो जाता है। सोनिया संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की चेयरपर्सन रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बेंगलुरु में विपक्षी दल कोई मोर्चा गठित करते हैं तो उसकी कमान सोनिया को दी जा सकती है। सूत्रों के हवाले से लिखा कि बिहार सीएम नीतीश कुमार विपक्षी मोर्चे के संयोजक की भूमिका निभा सकते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, बेंगलुरु में जमा हुए दलों से मोर्चे का नाम सुझाने को कहा गया है। साझा मोर्चे के नाम में India जरूर होना चाहिए, यह शर्त है। विपक्ष ने टैगलाइन तय की है, ‘संगठन में शक्ति है’। साझा न्यूनतम कार्यक्रम को लेकर भी सुझाव मांगे गए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्यों की सियासत को साझा मोर्चे से अलग रखा जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ट्वीट में कहा, ‘समान विचारधारा वाले विपक्षी दल सामाजिक न्याय, समावेशी विकास और राष्ट्रीय कल्याण के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करेंगे। हम भारत के लोगों को नफरत, विभाजन, आर्थिक असमानता और लूट की निरंकुश और जनविरोधी राजनीति से मुक्त करना चाहते हैं… यूनाइटेड वी स्टैंड, इस भारत के लिए।’
डिनर मीटिंग के दौरान ममता और सोनिया एक-दूसरे के पास बैठे। दोनों के बीच करीब 20 मिनट तक वन-ऑन-वन बातचीत हुई। देश की सियासत में मजबूत पोजिशन वाली इन दो महिलाओं की बातचीत के चलते विपक्ष की मीटिंग में देरी हुई। दोनों नेताओं के बीच संबंध अच्छे हैं लेकिन पार्टियों के बीच तनातनी दिखी है। अब ऐसा लगता है कि 2024 के लिए मतभेद भुलाकर कांग्रेस और TMC साथ लड़ने को तैयार हैं। कांग्रेस ने विपक्ष की दूसरी बैठक के लिए बेंगलुरु को बेहद सोच-समझकर चुना है। हालिया कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली है। इससे विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस की भूमिका और मजबूत हुई। हालांकि, खरगे के नेतृत्व में कांग्रेस छोटे दलों की बात बड़े धैर्य से सुनती नजर आई है। अध्यादेश के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी को समर्थन भी यह संकेत है कि कांग्रेस खुद को ‘टीम प्लेयर’ के रूप में प्रजेंट करना चाहती है।
बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक वाले दिन ही एनडीए के घटक दल भी मिलेंगे। मंगलवार को नई दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बैठक होने वाली है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि बीजेपी ‘घबरा’ गई है इसलिए उसने यह बैठक बुलाई है। विपक्षी खेमे में अव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए, पार्टियां थोड़ी सहम गई हैं। इस कारण सबको साथ आने का एक नया संकल्प लेने का माहौल तैयार हो गया है। पार्टियों के बीच जमीनी जटिलताएं, राज्यों में टकराव की स्थिति, उनका अहंकार और ऊपर से भाजपा के तोड़ो-फोड़ो जैसे कारणों से अभियान विपक्षी खेमे के लिए एकजुटता का कार्यक्रम काफी पेचीदा दिख रहा है। विपक्ष के सामने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव तैयार करने की पहाड़ जैसी चुनौती भी है। लोकतंत्र को खतरा, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और अमीरों की सरकार जैसे नैरेटिव चलते नहीं दिख रहे हैं। ऊपर से प्रधानमंत्री मोदी की टक्कर का कोई नेता नहीं होना विपक्ष की बड़ी कमियों में शुमार है।
विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता को बेकरार तो है, लेकिन वह इस बात को लेकर भी सतर्क है कि गठबंधन के लिए उसे एक हद से ज्यादा ‘बलिदान’ नहीं करना पड़े। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सर्विसेज के मुद्दे पर केंद्र सरकार के अध्यादेश का विरोध किए जाने की मांग कांग्रेस से मनवा ली है।
ऐसे में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है कि आप की देखादेखी विभिन्न राज्यों के क्षत्रप भी अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा उससे पूरी करने की उम्मीद न लगा बैठें।
चुनौतियों के पहाड़ पर बैठे विपक्षी कुनबे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आमजन के बीच कायम पैठ से पार पाना बहुत मुश्किल है। आज भी पीएम के कही बातों की मतदाताओं के बीच अच्छी-खासी अपील होती है। पीएम ने कांग्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों के भ्रष्टाचार और परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बना दिया है जिसका आम जनता पर सकारात्मक असर होता दिख रहा है जबकि विपक्ष एजेंसियों का दुरुपयोग किए जाने का विमर्श गढ़ने में कामयाब होता नहीं दिख रहा है।