आखिर कौन है तीन बार सांसद रहे भुवनेश्वर प्रसाद मेहता?

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आज हम आपको तीन बार सांसद रहे भुवनेश्वर प्रसाद मेहता के बारे में जानकारी देने वाले है! लोकसभा चुनाव को लेकर देश भर में माहौल बन चुका है। चुनाव आयोग की ओर से शेड्यूल की घोषणा से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम राजनीतिक दल रैलियों में जुट गए हैं। पीएम मोदी की हालिया रैलियों पर नजर डालें तो एक बात तो साफ है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वह विरोधियों को परिवारवाद और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने का मन बना चुके हैं। राजनीति में जब भ्रष्टाचार की बात हो रही है तब हम अपने संसद के सदस्य रह चुके ऐसे राजनेता की कहानियां बता रहे हैं जो कहीं ना कहीं ईमानदारी और संघर्ष के प्रतीक माने जाते रहे हैं। लेकिन उनकी जिंदगी के पन्ने पलटकर देखे जाएं तो पता चलता है कि वह भारतीय संसद के लिए किसी रत्न से कम नहीं रहे। सीरीज की पहली कहानी झारखंड के पूर्व सांसद भुवनेश्वर प्रसाद मेहता की है।झारखंड के हजारीबाग लोकसभा सीट से पूर्व सांसद भुवनेश्वर प्रसाद मेहता भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता रहे। राजनीति में भुवनेश्वर प्रसाद मेहता का जिक्र आते ही एक ईमानदार और बेदाग छवि वाले नेता का चेहरा लोग याद करते हैं। तीन बार संसद में हजारीबाग का प्रतिनिधित्व कर चुके भुवनेश्वर प्रसाद मेहता 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाग्य आजमाना चाहते हैं, लेकिन उनकी पार्टी और इंडिया गठबंधन उन्हें मौका देती है या नहीं, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन यह बात जरूर है कि ईमानदारी और भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति का जिक्र आने पर भुवनेश्वर प्रसाद मेहता की जिंदगी से युवा नेताओं को काफी कुछ सीखने की जरूरत है। हजारीबाग के कटकमसांडी प्रखंड के लुपुंग में प्रसादी मेहता पास के गांव की रहने वाली मुनिया देवी को ब्याह कर लाए थे। शादी के कुछ साल बाद ही उन दोनों को एक बेटा हुआ, जिसका नाम उन्होंने भुवनेश्वर प्रसाद मेहता रखा। भुवनेश्वर अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े रहे। 7वीं तक गांव में पढ़ने के बाद भुवनेश्वर प्रसाद हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए हजारीबाग चले गए। यहां उन्होंने पांच रुपये किराए पर एक कमरा लिया और पढ़ाई में जुट गए। पैसे की तंगी के चलते भुवनेश्वर हर शनिवार को पैदल अपने गांव चले जाते और वहां से सप्ताह भर का दाल, चावल, आलू, तेल, सब्जी आदि लेकर पैदल ही हजारीबाग वाले कमरे पर आ जाते।

9वीं में पहुंचने पर भुवनेश्वर प्रसाद छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और 15-20 रुपये की आमदनी कर परिवार से खर्च लेना बंद कर दिया। अच्छे नंबरों से इंटर पास होने के बाद कॉलेज में पहुंचे, लेकिन ट्यूशन पढ़ाना जारी रखा। तब तक वह ट्यूशन से 400 रुपये तक कमा लेते। साथ ही उन्हें हर महीने 25 रुपये छात्रवृति भी मिल जाती। इसी बीच भुवनेश्वर का रुझान राजनीति की तरफ हुआ। उन्होंने कॉलेज में पिछड़ा वर्ग छात्र संघ बनाया और बाद में छात्रसंघ चुनाव में जीत दर्ज कर महासचिव बने। ग्रेजुएशन कंप्लीट होने के बाद भुवनेश्वर ने सरकारी नौकरी तलाशने के बजाय अपने गांव लौटे और एक स्कूल खोला, लेकिन कुछ ही दिनों बाद वह आर्थिक कमी के चलते बंद हो गई। इसके बाद भुवनेश्वर प्रसाद तेनुघाट में विद्युत संयंत्र के लिए ठेकेदारी करने लगे, यहां उन्होंने सिंचाई कामगार यूनियन बनाया। उस दौर में बिहार के कद्दावर समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की ओर से भुवनेश्वर को पार्टी ज्वाइन करने का ऑफर मिला, लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया और 1966 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए।

कामरेड मंजूर हसन से प्रेरित होकर भुवनेश्वर प्रसाद मेहता तब से लेकर आज तक मजदूरों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस वजह से वह अब तक 45 बार जेल जा चुके हैं। कई बार पुलिस की पिटाई में अधमरा भी हो चुके हैं। चुनावी राजनीति में भी भुवनेश्वर सघर्ष करने से पीछे नहीं हटे। इस वजह से उनके समर्थक उन्हें ‘जायंट किलर’ कहते हैं। भुवनेश्वर प्रसाद CPI के टिकट पर पहली बार हजारीबाग विधानसभा सीट से उतरे। महज 5000 रुपये खर्च कर चुनाव में भाग्य आजमाया, लेकिन हार मिली। इसके बाद वह उपप्रमुख और मुखिया का भी चुनाव जीते।

करीब 45 साल से सक्रिय राजनीति में रहने वाले भुवनेश्वर प्रसाद मेहता आज की राजनीति में धन और बल के बढ़ते प्रभाव से बेहद दुखी रहते हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से संसद में 300 से ज्यादा सांसद करोडपति हैं, वह लोकतंत्र के लिए बेहद दुखद है। आज जिस तरह से चुनाव में पानी की तरह पैसे बहाए जा रहे हैं उसे देखकर यही लगता है कि आने वाले समय में गरीब, ईमानदार और स्वच्छ छवि के लोग चुनाव नहीं जीत पाएंगे। वह मानते हैं कि राजनीति को स्वच्छ बनाने के लिए योग्य युवाओं को आगे आना चाहिए। भुवनेश्वर प्रसाद मेहता की ईमानदारी का आलम यह है कि इतने लंबे समय तक संसद और विधान सभा के सदस्य रहने के बावजूद आज की चकाचौंध वाली जिंदगी से दूर हैं। वह आज भी पूर्व जनप्रतिनिधि के रूप में मिलने वाली पेंशन का एक फीसदी पार्टी कोष में जमा करते हैं। राजनीति में परिवारवाद के विरोधी रहे भुवनेश्वर प्रसाद की तीन बेटियां और एक बेटे अच्छी शिक्षा हासिल कर नौकरी कर परिवार का पालन पोषण करते हैं।