वर्तमान में लोगों को अचानक हार्ट अटैक आते जा रहे हैं! हाल के दिनों में लोगों के अचानक गश खाकर गिरने और दम तोड़ने की घटनाएं खूब सामने आ रही हैं। नौजवान और ‘फिट’ समझे जाने वाले लोग भी अचानक चल बसे। मशहूर कार्डियक सर्जन और नारायणा हेल्थ के चेयरमैन-फाउंडर के अनुसार, ये कार्डियक अरेस्ट ‘अचानक’ नहीं आते। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए अपने लेख में डॉ शेट्टी समझाते हैं कि समय-समय पर हेल्थ स्क्रीनिंग बहुत जरूरी है। डॉ शेट्टी के अनुसार, जब कोई सिक्स पैक वाला सेलिब्रिटी गिरकर ‘अचानक कार्डियक अरेस्ट’ से मर जाता है तो मीडिया ‘अचानक कार्डियक अरेस्ट’ पर खूब हल्ला मचाता है और कैसे उसे रोका जा सकता है। मगर इस बारे में कम ही लोग बताते हैं कि ये ‘अचानक आए कार्डियक अरेस्ट’ नहीं हैं। डॉ शेट्टी की मानें तो जिन लोगों की ‘अचानक’ मृत्यु हुई, उन्होंने 10 साल पहले कार्डियक स्क्रीनिंग करवाई थी। सबको पता होना चाहिए कि दिल यूं ही काम करना बंद नहीं करता। पहले की कोई बीमारी होती है। कार्डियक अरेस्ट से सालों पहले उन बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए बड़े अस्पताल जाने की जरूरत नहीं। छोटे शहरों की डायग्नोस्टिक लैब्स से भी स्क्रीनिंग हो सकती है। समझिए कैसे।
कोरोनरी आर्टरी में क्रिटिकल ब्लॉकेज वाले ज्यादातर मरीज ‘साइलेंट इस्कीमिया’ से पीड़ित होते हैं। इसमें मरीजों को चेस्ट में पेन महसूस नहीं होता। कुछ को ‘साइलेंट हार्ट अटैक’ आ जाता है। साइलेंट हार्ट अटैक की रोकथाम हो सकती है मगर… डॉ शेट्टी लिखते हैं कि हाफ-मैराथन दौड़ रहे 40 साल के लोगों को हेल्थ चेकअप्स के लिए मना पाना बड़ा मुश्किल होता है। उनके अनुसार, लोग खुद को जितना फिट महसूस करते हैं, उतना फिट समझते हैं। ज्यादातर वक्त आपके फिट महसूस करने का फिट होने से कोई लेना-देना नहीं होता।
अगर आप महीने में दो बार माउंट एवरेस्ट भी चढ़ते हैं तो भी वे आपको तब तक फिट नहीं घोषित करेंगे जब तक फिजिकल एग्जामिनेशन न कर लें। ब्लड टेस्ट, ईसीजी, इकोकार्डियोग्राम, कार्डियक सीटी स्कैन भी देखना होता है। कॉमन स्ट्रेस टेस्ट से कोरोनरी आर्टरी डिजीज का पता नहीं लगता। ‘दिल के CT एंजियो’ से ओपीडी में आए मरीज के दिल में छोटे ब्लॉकेज का भी पता लगाया जा सकता है। अगर इसका इलाज न हो तो यह कुछ साल बाद हार्ट अटैक के रूप में सामने आ सकता है।
बहुतों को डर होता है कि हेल्थ चेकअप में कुछ ऐसा-वैसा निकल आएगा और फिर इलाज करवाना पड़ेगा। डॉ शेट्टी लिखते हैं कि जब दिल की बीमारी लिए कोई अधेड़ व्यक्ति सांस के लिए तड़प रहा होता है और कहता है कि ‘पूरी जिंदगी कभी डॉक्टर के पास नहीं गया’, तब दुख होता है। मैं उसे यह नहीं बता सकता कि कभी डॉक्टर के पास नहीं गया, ब्लड टेस्ट, ईसीजी, इकोकार्डियोग्राम, कार्डियक सीटी स्कैन भी देखना होता है। कॉमन स्ट्रेस टेस्ट से कोरोनरी आर्टरी डिजीज का पता नहीं लगता। ‘दिल के CT एंजियो’ से ओपीडी में आए मरीज के दिल में छोटे ब्लॉकेज का भी पता लगाया जा सकता है। अगर इसका इलाज न हो तो यह कुछ साल बाद हार्ट अटैक के रूप में सामने आ सकता है।तभी यह हाल हुआ है। मेडिकल साइंस ने काफी तरक्की की है मगर सारे इलाज की एक शर्त है- बीमारी का पता अर्जी स्टेज में लगना चाहिए। डॉक्टर्स के सामने चुनौती इलाज करने की क्षमता नहीं, लोगों को यह समझाने की है कि उन्हें डॉक्टर्स के पास जाना चाहिए जब उन्हें लगता है कि कि उन्हें इसकी जरूरत नहीं।
देशभर में होने वाली हार्ट सर्जरी का 14% उनके ग्रुप के अस्पतालों में होती है।ब्लड टेस्ट, ईसीजी, इकोकार्डियोग्राम, कार्डियक सीटी स्कैन भी देखना होता है। कॉमन स्ट्रेस टेस्ट से कोरोनरी आर्टरी डिजीज का पता नहीं लगता। ‘दिल के CT एंजियो’ से ओपीडी में आए मरीज के दिल में छोटे ब्लॉकेज का भी पता लगाया जा सकता है। अगर इसका इलाज न हो तो यह कुछ साल बाद हार्ट अटैक के रूप में सामने आ सकता है। उनके मुताबिक, हार्ट सर्जरी कराने वाले मरीजों में काफी सारे ऐसे थे जिनकी बीमारी का ‘संयोग से पता चला।’ मतलब उस वक्त डॉक्टर्स किसी और चीज की जांच या इलाज कर रहे थे या फिर प्रिवेंटिव हेल्थ चेकअप कर रहे थे।
महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में दोगुने हार्ट अटैक आते हैं। 45 साल की उम्र तक हार्मोन्स महिलाओं की रक्षा करते हैं। भारत में दिल की बीमारी नौजवान कामगारों को होने लगी है। वे पूरे परिवार का खर्च चलाते हैं। ऐसे में भारतीय हेल्थकेयर सिस्टम का फाउंडेशन प्रिवेंटिव हेल्थ केयर पर बनाने की जरूरत है। किसी बीमारी का पहले पता लगने से इलाज बेस्ट होता है और खर्च भी कम आता है।