हाल ही में राजौरी और पुंछ में लगातार आतंकी हमले होते ही जा रहे हैं! कुछ साल पहले तक दक्षिण कश्मीर आतंकी हिंसा का केंद्र हुआ करता था। लेकिन, अचानक हालात बदले हैं। दक्षिण कश्मीर के बजाय जम्मू सेक्टर में पड़ने वाले राजौरी और पुंछ हॉट हो गए हैं। 2020 के बाद से दोनों जिलों में आतंकी गतिविधियां अचानक बढ़ी हैं। पुंछ के सुरनकोट इलाके में पिछले हफ्ते गुरुवार को हुई घटना इसका ताजा उदाहरण है। ढेरा की गली और बुफलियाज के बीच धत्यार मोड़ पर आतंकियों ने सेना के वाहनों पर घात लगाकर हमला किया। इस हमले में चार जवान वीरगति को प्राप्त हुए। तनाव बढ़ने की आशंका को देखते हुए पुंछ और राजौरी में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। राज्य में इस साल आतंकी हिंसा में करीब 125 लोगों ने जान गंवाई है। इनमें से 40 फीसदी आतंकी हमले इन्हीं दो जिलों से सामने आए हैं। राजौरी और पुंछ सरकार के सामने नई चुनौती बनकर उभरे हैं। इन सबके बीच अब एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। दक्षिण कश्मीर से आतंकी गतिविधियां पुंछ-राजौरी सेक्टर में क्यों शिफ्ट हो गई हैं? आइए, यहां इसे समझने की कोशिश करते हैं। राजौरी और पुंछ की भौगोलिक-सामाजिक स्थितियां आतंकियों के लिए इन्हें मुफीद बनाती हैं। एलओसी से सटे राजौरी और पुंछ के उत्तर में पीर पंजाल है। पुंछ की सीमा कश्मीर घाटी के उरी, गुलमर्ग और शोपियां के साथ सटी है। दूसरी ओर राजौरी की सीमा शोपियां, कुलगाम और जम्मू के रियासी और रामबन से लगती है। दोनों ही जिले सांप्रदायिक रूप से बेहद संवेदनशील हैं। दुनिया जानती है कि कश्मीर के जरिये पाकिस्तान भारत के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर चलाता आया है। इसके कारण कश्मीर हमेशा सुलगता रहा है। ऐसा कहा जाता है कि कश्मीर घाटी में ऑपरेशन ‘ऑल आउट’ से बचने के लिए आतंकी राजौरी और पुंछ की तरफ बढ़े हैं। हालांकि, इन जिलों में मारे गए आतंकियों को विदेशी बताया जाता है। कश्मीर में सेना की मजबूत मौजूदगी ने पाकिस्तान के लिए अपना एजेंडा चलाना मुश्किल कर दिया है। अनुच्छेद 370 के रद्द होने के कारण भी स्थिति बदली हैं। इसने कश्मीर को अलगाववादी नजरिया रखने वालों के लिए कम अनुकूल बना दिया है।
इन दोनों जिलों में घने जंगल, नाले और पहाड़ नियंत्रण रेखा तक फैले हैं। इससे आतंकियों को एंट्री करने में मदद मिलती है। वे इन जिलों के जरिये कश्मीर और अन्य हिस्सों में दाखिल कर जाते हैं। दोनों जिलों में जिहादी कट्टरवादी विचारधारा का असर बहुत ज्यादा है। पुंछ और राजौरी लंबे समय तक सुरक्षाबलों के राडार से भी दूर रहे हैं। आंतकियों ने इसका फायदा उठाया है। इसके जरिये उन्होंने अपने पैर जमाए हैं। जिलों के पहाड़ों में आतंकियों के ठिकानों होने भी आशंका भी जाहिर की जाती है। सुरक्षा बलों के बजाय आतंकियों ने अपना नेटवर्क भी मजबूत कर लिया है। ऐसे में कह सकते हैं कि ये जिले अब आतंकियों के लिए केवल कश्मीर तक पहुंचने का ट्रांजिट रूट नहीं रह गए हैं। अलबत्ता, आतंकियों का मजबूत किला बन चुके हैं।
स्थिति की गंभीरता को इस बात से समझा जा सकता है कि सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे जम्मू क्षेत्र में मौजूदा सुरक्षा हालात की समीक्षा के लिए सोमवार को यहां पहुंचे। उनका यह दौरा ऐसे वक्त हो रहा है जब हाल ही में पुंछ में सेना के वाहनों पर घात लगाकर किए गए हमले में चार सैनिकों की शहादत के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों को पकड़ने की खातिर बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है। जम्मू पहुंचने के बाद बल की परिचालन तैयारियों और मौजूदा सुरक्षा स्थिति की समीक्षा करने के लिए वह राजौरी-पुंछ सेक्टर के लिए रवाना हो गए। इसके कारण कश्मीर हमेशा सुलगता रहा है। ऐसा कहा जाता है कि कश्मीर घाटी में ऑपरेशन ‘ऑल आउट’ से बचने के लिए आतंकी राजौरी और पुंछ की तरफ बढ़े हैं। हालांकि, इन जिलों में मारे गए आतंकियों को विदेशी बताया जाता है। कश्मीर में सेना की मजबूत मौजूदगी ने पाकिस्तान के लिए अपना एजेंडा चलाना मुश्किल कर दिया है। अनुच्छेद 370 के रद्द होने के कारण भी स्थिति बदली हैं।उत्तरी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी, जम्मू स्थित ‘व्हाइट नाइट कोर’ के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल संदीप जैन के अलावा वरिष्ठ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी आतंकवाद विरोधी अभियान और कानून-व्यवस्था पर नजर रखने के लिए जुड़वां जिलों राजौरी और पुंछ में डेरा डाले हुए हैं।