Friday, November 22, 2024
HomeIndian Newsआखिर भारत में आने के लिए क्यों तरस रहे हैं अफगानी लोग?

आखिर भारत में आने के लिए क्यों तरस रहे हैं अफगानी लोग?

अफगानी लोग अब भारत में आने के लिए तरस रहे हैं! अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को एक साल से ज्यादा हो गया है। ऐसे में कई अफगान स्टूडेंट्स जो भारत में पढ़ाई करने आए थे, वो कोर्स खत्म होने के बाद भी वापस घर जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। अपने देश से हजारों किलोमीटर की दूरी पर भारत की यूनिवर्सिटी में ये सैकड़ों अफगान स्टूडेंट नए-नए कोर्स में दाखिला ले रहे हैं। ये स्टूडेंट अपने घर और परिवार को याद करते हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर घर वापस जाना नहीं चाहते। इन्हीं में से एक 26 साल की रजिया मुरादी ने बताया, ‘दो साल पहले मैं काबुल लौटने और वहां काम करना शुरू करने की योजना बना रही थी, क्योंकि मुझे वहां आसानी से सरकारी नौकरी मिल जाती। लेकिन अब और नहीं। मैं अपने परिवार के पास जाना चाहती हूं, लेकिन मुझे नहीं पता कि मैं उन्हें फिर से कब देख पाऊंगी।’ मुरादी भारत के 70 से ज्यादा यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली करीब 14 हजार अफगान स्टूडेंट में से एक हैं। मुरादी 2019 में सूरत में वीर नर्मद साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी (VNSGU) में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन से पोस्टग्रेजुएट करने आई थीं। चार साल बाद उन्होंने पीएचडी में दाखिला लेकर सूरत में रहने का फैसला किया है।

वहीं दिल्ली के जेएनयू में पॉलिटिकल साइंस की स्टूडेंस 22 साल की देवा सफी ने कहा, ‘तालिबान शासन ने पिछले कुछ दशकों में हमारे देश द्वारा हासिल की गई सभी उपलब्धियों को उलट दिया है। मेरे सभी दोस्तों को घरों के अंदर बंद कर दिया गया है, उनके नाम कॉलेजों से हटा दिए गए हैं, वहां रोजगार के अवसर भी खत्म हो गए हैं।’ हेरात की 26 साल की जैनब सैयद, जो ग्रेटर नोएडा के शारदा हॉस्पिटल में नर्सिंग की ट्रेनिंग ले रही हैं उनका कहना है कि वो अपनी ट्रेनिंग के बाद अफगानिस्तान लौटना चाहती थीं। लेकिन उन्होंने इस विचार को छोड़ दिया। उन्होंने बताया, ‘घर में स्थिति बहुत खराब है। वहां महिलाओं को बिल्कुल भी पढ़ने की अनुमति नहीं है। लड़कियां कक्षा 6 तक पढ़ सकती हैं और उसके बाद उन्हें घर पर ही रहना है। सैयद को नहीं पता कि जून में वीजा खत्म होने पर वह क्या करेंगी। उन्होंने कहा, ‘अगर मैं वापस जाती हूं तो मैं होमबाउंड हो जाऊंगा। मेरी बड़ी बहन जिसकी शादी अफगानिस्तान में हुई है, हर समय रोती रहती है। वह अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।’ वो कहती हैं कि वो अपनी दो बहनों की तरह अमेरिका या कनाडा जा सकती हैं। वह अपने पूरे परिवार को अमेरिका ले जाने के लिए अपने भाई के सहारे है।

26 साल की हमीदा नसीरी ने बताया कि उनकी चार बहनें हैं। उन्होंने वीएनएसजीयू में गणित में पीएचडी के लिए दाखिला लिया है। नसीरी कहती हैं, ‘मेरी एक बहन बांग्लादेश में और दूसरी रूस में पढ़ रही है। हम तीनों अपने देश में स्थिति के कारण अपने वीजा को बढ़ा रहे हैं। ये बेहद कठिन समय है, मुझे चिंता है कि हमारा परिवार फिर से एक साथ हो पाएगा या नहीं। मेरा परिवार मेरे विदेश में रहने के फैसले के समर्थन में है। वो मानते हैं कि दूसरे देशों में बेहतर भविष्य है। हमारे माता-पिता चाहते हैं कि हम वहीं रहें जहां हम हैं। वे हमें याद करते हैं लेकिन रात को चैन की नींद लेते हैं, क्योंकि उनको पता है कि हम सुरक्षित जगह पर हैं।’

2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया, तो अफगान महिलाओं को उम्मीद थी कि वे लोगों की आजादी को बनाए रखेंगी। वीएनएसजीयू में पीएचडी उम्मीदवार मोहम्मदी गुलफरोज कहते हैं कि तालिबान ने कॉलेजों में लड़कियों को पढ़ने से रोक दिया है। पिछले 20 सालों में महिलाओं ने काफी मेहनत की और वे आगे बढ़ीं। कई महिलाएं शिक्षित हैं, लेकिन अब वे वहां कोई काम नहीं कर सकतीं।’ वीएनएसजीयू में एमबीए कर रही 24 साल की शुक्रिया नावेद कहती हैं, ‘हम भाग्यशाली हैं कि हमें पढ़ाई करने और अपने सपनों को पूरा करने का मौका मिला। जब मैं अफगानिस्तान में फंसी लड़कियों के बारे में सोचती हूं तो मैं बहुत आहत होती हूं।’

शारदा यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता और जनसंचार में बीए की छात्रा आयशा हुमायरा अयूबी ने बताया कि पिछले साल तक उनके साथ 25 से ज्यादा अफगानी स्टूडेंट पढ़ते थे। लेकिन कोर्स पूरा होने के बाद वो वापस अफगानिस्तान लौट गईं। अब वो अपनी डिग्री लेने के लिए भी भारत नहीं आ पा रहीं हैं। वो अपने भविष्य को अंधेरे में देखती हैं। यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय विभाग के प्रमुख नितिन कुमार गुप्ता को एक ईमेल में उन्होंने बताया, ‘यहां महिलाओं को बाहर निकलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। वे पार्क, जिम, स्कूल या कॉलेज नहीं जा सकती हैं।’

27 साल की सरिहा सुल्तानजादा तालिबान के शासन से बाल-बाल बचीं। वो अहमदाबाद में गुजरात विश्वविद्यालय (जीयू) से बीकॉम पूरा करने के बाद 2018 में घर लौटी थी, लेकिन 2021 में मास्टर ऑफ कॉमर्स की पढ़ाई करने के लिए वे वापस भारत आ गईं। उन्होंने बताया, ‘अफगानिस्तान में उच्च शिक्षा की कोई गुंजाइश नहीं थी। अगर वहां हालात सुधरते हैं तो मैं वापस अपने देश चली जाउंगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारत में ही पीएचडी में दाखिला ले लूंगी।’

भारत में पढ़ाई कर रहे अफगानी स्टूडेंट अलग-अलग बैकग्राउंड से आते हैं। कंधार की रहने वाली सलमा काकर के पिता एक इंजीनियर हैं और उनकी मां डॉक्टर हैं। उन्होंने बताया, ‘जब मेरे माता-पिता को लगा कि शासन परिवर्तन का सबसे बुरा शिकार महिलाएं होने जा रही हैं, तो उन्होंने फैसला किया कि उनके बच्चे देश छोड़ दें। मेरे भाई-बहन अमेरिका, स्वीडन, पुर्तगाल और जर्मनी में पढ़ रहे हैं। हम सब अब बिखर गए हैं। मुझे हर समय अपने माता-पिता की चिंता रहती है और घर पर होने की कमी खलती है।’

जीयू से इंटरनेशनल रिलेशन में मास्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद, काकर ने अब पीएचडी कोर्स में दाखिला लिया है और उनकी थीसिस अफगान आप्रवासन के बारे में है। वहीं नसीमा इब्राहिमी के माता-पिता मजदूर थे जो 1990 के दशक में अपने बच्चों की शिक्षा के लिए ईरान चले गए थे। उनका कहना है, ‘2001 में अमेरिकी सैनिकों द्वारा तालिबान को उखाड़ फेंकने के बाद वे वापस लौट आए। हम सात बहनें हैं। एक डॉक्टर है और दूसरी इंजीनियर है। मेरी अन्य बहनें छोटी हैं। तालिबान के वापस आने से मेरी बहनें बुनियादी शिक्षा से वंचित हैं। मेरे माता-पिता ने हमें इंडिपेंडेंट बनाने की कोशिश की, जो अब बेकार हो गई है।’ इब्राहिमी ने भारत आने से पहले हेरात में एक कोचिंग सेंटर में एक अंग्रेजी ट्रेनर के रूप में काम किया। वो अब जीयू में पीएचडी कर रही है।

भले ही महिलाओं को तालिबान सरकार की नीतियों का खामियाजा भुगतना पड़ा है, लेकिन अफगानिस्तान के पुरुष छात्रों का कहना है कि उनके परिवार भी चाहते हैं कि वे भारत में रहें। गुड़गांव में जीडी गोयनका यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र, 22 साल के नजीउल्लाह सरीफी कहते हैं, ‘पुरुषों के लिए भी स्थिति आशाजनक नहीं है।जब से महिलाएं अपने घरों से बंधी हैं, शिक्षकों के कई पद खाली हैं और कॉलेज बेजान हो गए हैं। हमारा अतीत धुल गया है और भविष्य भी अंधेरे में है।’

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments