आखिर अटल बिहारी बाजपेई लाल किले की प्राचीर से क्यों पड़ते थे भाषण?

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एक समय ऐसा था जब अटल बिहारी वाजपेई लाल किले की प्राचीर से भाषण पढ़ा करते थे! टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी, अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, यह कविता है देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की। राजनीति के धुरंधर कहे जाने वाले वाजपेयी को हिंदी साहित्य का भी जबरदस्त ज्ञान था। उन्हें कविताएं लिखने का काफी शौक था। उनकी कविताओं का एक-एक शब्द रोंगटे खड़े कर देने वाला है। उनकी वाणी से निकलने वाले शब्दों को सुनने के लिए लोग बेकरार रहते थे। वाजपेयी को सुनने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों के लोग भी उत्साहित रहते थे। सवाल उठता है कि इतना प्रतिभावान होने के बाद भी वाजपेयी 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से पढ़कर भाषण क्यों देते थे? दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी एक सूझबूझ और दूरदर्शी स्वभाव वाले व्यक्ति थे।राजनीतिक जानकार बताते हैं कि वाजपेयी स्वभाव से बेहद शर्मीले थे। अगर चार-पांच लोग उन्हें घेर लेते थे तो उनके मुंह से बहुत कम शब्द निकलते थे। लेकिन वो दूसरों की कही बातों को बहुत ध्यान से सुनते थे और उस पर बहुत सोच-समझकर प्रतिक्रिया देते थे। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष अनंतशयनम अयंगार ने एक बार कहा था कि लोकसभा में हिंदी में अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छा वक्ता कोई नहीं है। एक शानदार वक्ता होने के बावजूद भी अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा नया सीखने के प्रयास में रहते थे। वाजपेयी जी अपनी भावनाओं को कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते थे। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि भारतीय राजनीति में वाजपेयी का अपना एक अलग किरदार था। अपने अद्भुत किरदार के चलते वह दौर में प्रासंगिक हैं।वह जानते थे कि मुंह से निकले एक-एक शब्द का क्या महत्व होता है। उनका मानना था कि मुंह से निकला एक गलत शब्द सामने वाले को व्यक्ति को गहरे जख्म दे सकता है। इतनी साफ-सुथरी विचारधारा वाले वाजपेयी अपने भाषण में किसी भी प्रकार की कोई चूक बर्दाश्त नहीं करते थे। यही वजह है कि वाणी पर नियंत्रण और संयम होने के बावजूद वाजपेयी पढ़कर ही भाषण देने में भलाई समझते थे। वह कहते थे कि 15 अगस्त भारत के लिए एक अहम दिन है। ऐसे अहम दिन में अगर कोई एक शब्द भी भाषण के फ्लो में गलत निकल जाए, वो ठीक नहीं। ऐसे में वह लाल किले की प्राचीर से पढ़कर भाषण दिया करते थे।

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि वाजपेयी स्वभाव से बेहद शर्मीले थे। अगर चार-पांच लोग उन्हें घेर लेते थे तो उनके मुंह से बहुत कम शब्द निकलते थे।उन्हें कविताएं लिखने का काफी शौक था। उनकी कविताओं का एक-एक शब्द रोंगटे खड़े कर देने वाला है। उनकी वाणी से निकलने वाले शब्दों को सुनने के लिए लोग बेकरार रहते थे। वाजपेयी को सुनने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों के लोग भी उत्साहित रहते थे। सवाल उठता है कि इतना प्रतिभावान होने के बाद भी वाजपेयी 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से पढ़कर भाषण क्यों देते थे? दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी एक सूझबूझ और दूरदर्शी स्वभाव वाले व्यक्ति थे।राजनीतिक जानकार बताते हैं कि वाजपेयी स्वभाव से बेहद शर्मीले थे। अगर चार-पांच लोग उन्हें घेर लेते थे तो उनके मुंह से बहुत कम शब्द निकलते थे। लेकिन वो दूसरों की कही बातों को बहुत ध्यान से सुनते थे और उस पर बहुत सोच-समझकर प्रतिक्रिया देते थे। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष अनंतशयनम अयंगार ने एक बार कहा था कि लोकसभा में हिंदी में अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छा वक्ता कोई नहीं है।

एक शानदार वक्ता होने के बावजूद भी अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा नया सीखने के प्रयास में रहते थे।उन्हें कविताएं लिखने का काफी शौक था। उनकी कविताओं का एक-एक शब्द रोंगटे खड़े कर देने वाला है। उनकी वाणी से निकलने वाले शब्दों को सुनने के लिए लोग बेकरार रहते थे। वाजपेयी को सुनने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों के लोग भी उत्साहित रहते थे। सवाल उठता है कि इतना प्रतिभावान होने के बाद भी वाजपेयी 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से पढ़कर भाषण क्यों देते थे? दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी एक सूझबूझ और दूरदर्शी स्वभाव वाले व्यक्ति थे।राजनीतिक जानकार बताते हैं कि वाजपेयी स्वभाव से बेहद शर्मीले थे। अगर चार-पांच लोग उन्हें घेर लेते थे तो उनके मुंह से बहुत कम शब्द निकलते थे। वाजपेयी जी अपनी भावनाओं को कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते थे। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि भारतीय राजनीति में वाजपेयी का अपना एक अलग किरदार था। अपने अद्भुत किरदार के चलते वह दौर में प्रासंगिक हैं।