हाल ही में मणिपुर मामले में सरकार और विपक्ष आमने-सामने हो गए हैं! मणिपुर की स्थिति पर चर्चा के फॉर्मेट को लेकर गुरुवार को सरकार और विपक्ष के बीच ठन गई। इसके कारण संसद के मानसून सत्र का पहला दिन बाधित हुआ। इस दौरान रूल 176 और रूल 267 का जिक्र आया। एक तरफ सरकार जहां छोटी अवधि की चर्चा के लिए सहमत हुई थी। वहीं, विपक्ष ने जोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री नियम 267 के तहत सभी मुद्दों को निलंबित कर चर्चा के बाद स्वत: संज्ञान लें।मंगलवार को आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने अपने लिखित अनुरोध में कहा कि सरकार की विफलता के कारण मणिपुर राज्य में कानून और व्यवस्था के टूटने पर चर्चा के लिए 21 जुलाई 2023 के लिए वह नियम 267 के तहत नोटिस देते हैं। राज्यसभा में सूचीबद्ध अन्य सभी कार्यकलापों के निलंबन के लिए यह प्रस्ताव है। आखिर क्या है नियम 267 जिसकी मांग विपक्ष ने मणिपुर मुद्दे पर चर्चा के लिए की है? दूसरी तरफ रूल 176 क्या है जिसके तहत सरकार छोटी अवधि की चर्चा के लिए तैयार है? रूल 267 राज्यसभा सदस्य को सभापति की मंजूरी से सदन के पूर्व-निर्धारित एजेंडे को निलंबित करने की विशेष शक्ति देता है। दरअसल, संसद में एक सदस्य के पास मुद्दों को उठाने और सरकार से जवाब मांगने के कई तरीके होते हैं। प्रश्नकाल के दौरान सांसद किसी भी मुद्दे से संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं। इसके तहत संबंधित मंत्री को मौखिक या लिखित उत्तर देना होता है। कोई भी सांसद शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठा सकता है। हर दिन 15 सांसदों को शून्यकाल में अपनी पसंद के मुद्दे उठाने की अनुमति होती है। कोई सांसद इसे विशेष उल्लेख के दौरान भी उठा सकता है। अध्यक्ष प्रतिदिन 7 विशेष उल्लेखों की अनुमति दे सकते हैं। सांसद राष्ट्रपति के भाषण पर बहस जैसी अन्य चर्चाओं के दौरान इस मुद्दे को सरकार के ध्यान में लाने का प्रयास कर सकते हैं। नियम 267 के तहत कोई भी चर्चा संसद में इसलिए बहुत महत्व रखती है क्योंकि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर चर्चा के लिए अन्य सभी कामों को रोक दिया जाता है।
अगर किसी मुद्दे को नियम 267 के तहत स्वीकार किया जाता है तो यह दर्शाता है कि यह आज का सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा है। राज्यसभा नियम पुस्तिका में कहा गया है, ‘कोई भी सदस्य सभापति की सहमति से यह प्रस्ताव कर सकता है। वह प्रस्ताव ला सकता है कि उस दिन की परिषद के समक्ष सूचीबद्ध एजेंडे को निलंबित किया जाए। अगर प्रस्ताव पारित हो जाता है तो विचाराधीन नियम को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया जाता है। विपक्ष मणिपुर को लेकर इसी कारण रूल 267 के तहत चर्चा की मांग कर रहा है।
ध्यान देने वाली बात है कि केंद्र ने सोमवार को कहा था कि वह राज्यसभा में मणिपुर मुद्दे पर चर्चा करने को तैयार है। सदन के नेता पीयूष गोयल भी बोले थे सरकार को इसमें कोई आपत्ति नहीं है। धनखड़ ने फिर कहा कहा था कि विभिन्न सदस्यों की ओर से नियम 176 के तहत मणिपुर के मुद्दों पर अल्पकालिक चर्चा की मांग की गई है। सदस्य मणिपुर के मुद्दों पर चर्चा में शामिल होने के इच्छुक हैं। इन चर्चाओं के तीन चरण होते हैं। एक, सदन का प्रत्येक सदस्य अल्पकालिक चर्चा के लिए नोटिस देने का हकदार होता है। उन नोटिसों पर उन्होंने विचार किया है। लेकिन, नियम के तहत उन्हें सदन के नेता से तारीख और समय की सलाह लेनी होगी।
सवाल यह है कि नियम 176 क्या है? नियम 176 किसी विशेष मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा की अनुमति देता है, जो ढाई घंटे से ज्यादा नहीं हो सकती। इसके अनुसार, अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा शुरू करने का इच्छुक कोई भी सदस्य इस बारे में लिखित नोटिस दे सकता है। शर्त यह है कि नोटिस के साथ कारण बताया जाए। नोटिस को कम से कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए जो इसका समर्थन करते हों।
विपक्ष शिकायत कर रहा है कि नियम 267 के तहत उसके किसी भी नोटिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उदाहरण के लिए उसने दावा किया है कि सभापति धनखड़ ने संसद के पिछले शीतकालीन सत्र के दौरान आठ ऐसे नोटिसों को खारिज कर दिया था जब वे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की बढ़ती उपस्थिति पर चर्चा चाहते थे। टीएमसी के डेरेक ओ’ब्रायन ने पहले कहा था कि 2016 में नोटबंदी के बाद नियम 267 के तहत किसी भी नोटिस की अनुमति नहीं दी गई है। यह पुराने ट्रेंड से अलग है जब ऐसे नोटिस स्वीकार किए गए थे।