Friday, November 22, 2024
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आखिर आरक्षण की सीमा क्यों हटाना चाहती है कांग्रेस?

वर्तमान में कांग्रेस आरक्षण की सीमा हटाना चाहती है! जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है वैसे-वैसे सभी राजनीतिक दल अपने तरकश से मारक तीर निकाल रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान एक नया सियासी दांव चला है। उन्होंने कल कहा है कि अगर केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बनती है तो आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को खत्म कर दिया जाएगा। राहुल ने एक्स पर एक वीडियो पोस्ट कर लिखा कि आरक्षण पर जो 50% की लिमिट है, हम उसे उखाड़कर फेंक देंगे। ये कांग्रेस और INDIA की गारंटी है। पिछले साल कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी कहा था कि अगर उनके गठबंधन की सरकार केंद्र में बनती है तो 50 प्रतिशत आरक्षण सीलिंग को खत्म कर दिया जाएगा। 1992 में इंदिरा साहनी जजमेंट जिसे मंडल जजमेंट भी कहा जाता है, उसमें आरक्षण की सीमा को लेकर फैसला दिया गया था। जजमेंट के मुताबिक सरकार 50 फीसदी से ज्यादा रिजर्वेशन नहीं दे सकती। सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि रिजर्वेशन की लिमिट 50 फीसदी की सीमा क्रॉस नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-16 (4) कहता है कि पिछड़ेपन का मतलब सामाजिक पिछड़ेपन से है। शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन, सामाजिक पिछड़ेपन के कारण हो सकते हैं लेकिन अनुच्छेद-16 (4) में सामाजिक पिछड़ेपन एक विषय है। अगर रिजर्वेशन में कोई सरकार 50 फीसदी की सीमा को पार करती है तो वह कानूनी जांच के दायरे में होगा और जो मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था है उसमें टिक पाना मुश्किल है।

सुप्रीम कोर्ट ने1992 में 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने 6-3 के बहुमत से फैसला सुनाया था। उसने 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को कामय रखा था। सिर्फ अपवादों को छोड़ उसने आरक्षण की 50 फीसदी सीमा तय करने का फैसला सुनाया था। बाद में 1994 में संविधान में 76वां संशोधन हुआ था। इसके तहत तमिलनाडु में रिजर्वेशन की सीमा 50 फीसदी से ज्‍यादा कर दी गई थी। यह संशोधन संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किया गया है। राहुल गांधी के ओबीसी आरक्षण की सीमा खत्म करने के बयान के पीछे कांग्रेस का राजनीतिक दांव माना जा रहा है। दरअसल, बीजेपी राम मंदिर के जरिए अपने कोर वोटरों के साथ-साथ ओबीसी वोटरों को भी लुभा रही है। कांग्रेस को ये पता है कि इस पिच पर वह बीजेपी का मुकाबला नहीं कर पाएगी। ऐसे में राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान ओबीसी आरक्षण की सीमा खत्म करने का दांव चला है। राहुल ने एक्स पर जो वीडियो पोस्ट किया है उसमें कहा है कि संविधान में जो प्रावधान है उसे मुताबिक 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। लेकिन कांग्रेस और इंडिया गठबंधन इसे उखाड़ फेकेगी। उन्होंने साथ ही कहा कि आदिवासियों और दलितों के आरक्षण में कोई कटौती नहीं होगी।

जब कांग्रेस ने जाति जनगणना कराने की मांग शुरू की तो पीएम नरेंद्र मोदी ने इसकी काट के लिए कहा था कि उनके लिए तो केवल दो जातियां हैं अमीर और गरीब। पिछले साल हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी और पीएम मोदी ने इसी तर्ज पर चुनाव प्रचार किया। बीजेपी ने 5 में से तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव जीत लिया। कांग्रेस के दांव की काट खोजते हुए पीएम मोदी ने तब चार स्तंभ का जिक्र किया था। महिला, किसान, गरीब और युवा। पीएम मोदी ने यूपी के बुलंदशहर के चुनाव प्रचार के दौरान भी इन चारों स्तंभ का जिक्र किया था। ऐसे में कांग्रेस के पास इसकी काट के लिए कोई चुनावी हथियार होना जरूरी हो गया था। माना जा रहा है कि राहुल ने जिस तरीके से ओबीसी आरक्षण की सीमा को खत्म करने की बात कही है वो पीएम मोदी के बयान का तोड़ है।

राहुल की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान इस बयान के भी सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस का प्लान बीजेपी के ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी को ओबीसी वोटरों का बड़ा समर्थन मिला था। देश में ओबीसी वोट बैंक काफी मजबूत और बड़ा है। सभी दल चुनावी वैतरणी पार करने के लिए ओबीसी वोटरों पर फोकस करती है। पिछले तीन लोकसभा चुनावों में बीजेपी का ओबीसी वोट बैंक लगातार बढ़ता गया है। 2009 के आम चुनाव में भगवा दल को 22 फीसदी ओबीसी वोट मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 34 फीसदी ओबीसी वोट मिले। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 44 प्रतिशत ओबीसी वोट हासिल कर लिए। जाहिर है अगर बीजेपी के साथ देश का करीब-करीब आधा ओबीसी वोटर इस मजबूती से जुड़े रहेंगे तो कांग्रेस के लिए 2024 के आम चुनाव में मुश्किल होगी। इसलिए राहुल के आरक्षण की सीमा खत्म करने के दांव को उसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

राहुल गांधी पिछले काफी वक्त से जाति जनगणना और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर हमलावर हैं। लेकिन बीजेपी की सियासी गणित के कारण उनको सफलता नहीं मिल पा रही है। बीजेपी ओबीसी वोटरों को खुद से जोड़े रखने के लिए बड़ा अभियान चला रही है। अब राहुल ने भी ओबीसी वोट के लिए दांव चल दिया है। लेकिन राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद बीजेपी ने जिस आक्रामक तरीके से ओबीसी वोटरों को साधने का प्रयास किया है उससे कांग्रेस के लिए राह उतनी आसान नहीं रहने वाली है। राहुल ने एक दांव चला तो जरूर है लेकिन आम चुनाव में इसका कांग्रेस को क्या फायदा होगा ये देखना रोचक होगा।

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