Wednesday, December 4, 2024
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आखिर रेलवे क्यों नहीं बढ़ाता है डिब्बों की संख्या?

कोई भी त्यौहार हो रेलवे डिब्बे नहीं बढ़ाता है! दिवाली छठ के अवसर पर पर पूरब जाने वाली अधिकतर ट्रेनों में बेतहाशा भीड़ है। आपके मन में सवाल उठता होगा कि इतनी भीड़ है तो रेलवे अतिरिक्त डिब्बे क्यों नहीं लगा देता? रेलवे के अधिकारी बताते हैं कि किसी भी ट्रेन में कोच जोड़ने की एक सीमा होती है। एक ट्रेन में इस सीमा से ज्यादा कोच लगाना संभव नहीं है। इससे ज्यादा डिब्बे लगाएंगे तो कई ऑपरेशनल दिक्कतें हो जाएंगी। साथ ही, इससे दुर्घटना की भी संभावना बढ़ जाएगी। ट्रेन लेट होगी वह अलग।बेतहाशा भीड़ होने के बावजूद रेलवे लोकप्रिय ट्रेनों में अतिरिक्त डिब्बे नहीं जोड़ता। इसकी वजह है कि इन ट्रेनों में पहले से ही उतने डिब्बे जुड़े हैं, जितना इसमें जुड़ सकते हैं। आमतौर पर जिन ट्रेनों में एलएचबी डिब्बे जुड़े हैं, उनमें अधिकतम 22 डिब्बे होते हैं। जबकि आईसीएफ कोच वाले ट्रेनों में अधिकतर 24 डिब्बे होते हैं। विशेष परिस्थितियों में एलएचबी रैक में भी 22 से अधिक डिब्बे लगाए जाते हैं। पर वह भी संख्या 24 से अधिक नहीं हो सकती।

किसी ट्रेन में अधिकतम 24 डिब्बे होने के पीछे कारण है रेल की पटरी का लूप। इस समय अपने यहां रेलवे में एक लूप की अधिकतम लंबाई 24 मीटर की है। इसका मतलब है कि आप किसी ट्रेन में उतने ही डिब्बे लगा सकते हैं, जितने आसानी से इस लूप में फिट हो जाए। इंडियन रेलवे के इंजीनियर बताते हैं कि यदि इससे लंबी ट्रेन होगी तो छोटे-मोटे स्टेशन तो छोड़िए, बड़े स्टेशनों में भी ट्रेन प्लेटफार्म से बाहर होगी। ट्रेन के एक से ज्यादा डिब्बे लूप से बाहर होंगे मतलब गार्ड डिब्बा किसी कांटे पर खड़ा होगा। मतलब कि पीछे भी ट्रैक जाम।

दो स्टेशनों के बीच जो रेलवे लाइन होता है, वह लूप में बंटा होता है। आप देखते होंगे कि दो व्यस्त स्टेशनों के बीच में कई जगह सिगनल लगे होते हैं। दरअसल, ये सिगनल हर लूप के बाद होते हैं। इन लूप में जब ट्रेन डाला जाता है तो यह ध्यान रखा जाता है कि ट्रेन की लंबाई उस सेक्शन की सबसे छोटी लूप की लंबाई से अधिक नहीं हो। भारतीय रेलवे में लूप की अधिकतम लंबाई 650 मीटर है। तो एक ट्रेन की लंबाई या तो यात्री या माल ढुलाई 650 मीटर से कम होनी चाहिए।

कोई भी ट्रेन यदि किसी ब्लॉक सेक्शन में फिट नहीं होगी तो वह मेन लाइन को बाधित कर देगी। इससे उस सेक्शन की ट्रेन की आवाजाही प्रभावित होगी। जब कोई ट्रेन एक लूप सेक्शन में फिट नहीं होगी तो उससे पीछे चलने वाली ट्रेन के ड्राइवर को लाल सिगनल मिलेगा। ऐसे में पीछे वाली ट्रेन का ड्राइवर उस ट्रेन को रोक देगा। उस ट्रेन को तभी ग्रीन सिगनल मिलेगा जबकि आगे वाली ट्रेन उस सेक्शन से आगे निकल चुकी होगी।

भारतीय रेलवे में अभी दो तरह के डिब्बे चलन में हैं। पहला तो कंवेसनल आईसीएफ कोच। इसकी लंबाई 23.28 मीटर होती है। दूसरा जर्मन तकनीक वाले एलएचबी कोच। इसकी लंबाई 24.75 मीटर होती है। यदि ट्रेन में एलएचबी डिब्बे लगे हैं तो 24 कोचों की अधिकतम संख्या 24.75(एलएचबी)*24 + 20.562(लोको)= 614.322 मीटर होगी। यदि ट्रेन में आईसीएफ डिब्बे हैं तो उस ट्रेन की लंबाई23.28(आईसीएफ)*24 + 20.562(लोको)= 555.282 मीटर होगी।दोनों लंबाई 650 मीटर की सीमा के साथ फिट हैं।

किसी ट्रेन में 24 डिब्बे रखने के पीछे किसी इंजन या लोकोमोटिव की तकनीकी सीमाएं भी हैं। ट्रेन का ब्रेक सिस्टम हवा के प्रेशर से काम करता है। यह प्रेशर लोकोमोटिव के कम्प्रेसर द्वारा बनाया जाता है। जब ट्रेन चलने को तैयार होती है, तो उससे पहले लोको 5 kg/sqcm का प्रेशर बनाता है। इसे बीपी होसेस पाइप और पाम कपलिंग के माध्यम हर कोच में बांटा जाता है। व्यावहारिक रूप से जांचा गया है कि 24 कोचों की लंबाई तक बीपी प्रेशर एक सीमा के भीतर पर्याप्त रूप से बना रहता है। यदि डिब्बों की संख्या इससे ज्यादा कर दिया जाए तो लोकोमोटिव के कम्प्रेसर द्वारा बीपी के दबाव को पर्याप्त स्तर पर बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।

अब मुख्य सवाल यह है कि रेलवे जनरल कोच की संख्या क्यों नहीं बढ़ाता है? आम तौर पर किसी भी ट्रेन में 2 से 4 जनरल कोच होते हैं। यह संख्या ट्रेन के रूट, ट्रेन की श्रेणी, ट्रेन के पैसेंजर की कैटेगरी आदि पर भी निर्भर करता है। आमतौर पर जनरल कोच के मुकाबले अन्य श्रेणी का किराया ज्यादा होता है। इससे रेलवे की कमाई ज्यादा होती है। इसलिए इन दिनों जनरल के मुकाबले एसी 3 कोच ज्यादा लगाए जा रहे हैं। कई ऐसे ट्रेन होते हैं, जिनमें सिर्फ जनरल कोच ही होते हैं। जैसे जन साधारण एक्सप्रेस। इस ट्रेन में एक भी रिजर्व कोच नहीं होता।

किसी ट्रेन में कितने डिब्बे जोड़े जाएं, इस इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह ट्रेन किन किन स्टेशनों पर ठहरती है। नई दिल्ली, आनंद विहार टर्मिनल, पुरानी दिल्ली, गाजियाबाद, हजरत निजामुद्दीन, मुंबई सेंट्रल, कानपुर सेंट्रल, प्रयागराज, पटना, आसनसोल, हावड़ा, सियालदह, धनबाद, टाटानगर जैसे बड़े स्टेशनों पर प्लेटफार्म की औसत लंबाई 550 मीटर की है। यदि ट्रेन इससे लंबी होती तो स्टेशन पर ट्रेन के रूकने पर उसके कुछ डिब्बे प्लेटफार्म से बाहर ही रहते हैं। ऐसे में इन डिब्बों में सफर करने वाले यात्रियों को ट्रेन में चढ़ने या उससे उतरने में काफी दिक्कत होती है। इसलिए रेलवे प्लेटफार्म की लंबाई से अधिक डिब्बे लगाने से बचता है।

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