राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा में दाढ़ी बढ़ा रखी है! करीब दो साल पहले, अमेरिकी वेबसाइट Vox ने ‘crisis beard’ टर्म का इस्तेमाल किया। यह बताने के लिए कैसे मशहूर पुरुष दाढ़ी बढ़ा रहे हैं, ताकि दिखा सकें कि उनके पास शेव कराने से भी ज्यादा जरूरी काम हैं। तो क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ताजा अवतार उन्हें ‘बिजी’ दिखाने के लिए है या बड़ी चालाकी से उनकी इमेज बदलने के लिए? चाहे जान-बूझकर हुआ हो या अनजाने में, राहुल का नया लुक चर्चा में तो जरूर है। कांग्रेसियों को इस नए राहुल में साधु, योगी, तपस्वी दिख रहा है। विरोधियों को राहुल का दाढ़ी वाला लुक सद्दाम हुसैन, फॉरेस्ट गम्प, कार्ल मार्क्स की याद दिलाता है। राहुल के लुक की तुलना किन-किन से हो रही है, वह लिस्ट बड़ी लंबी है… उनकी भारत जोड़ो यात्रा जितनी। मगर क्या राहुल गांधी के दाढ़ी वाले लुक के पीछे कोई संदेश भी छिपा है? एडवर्टाइजिंग प्रफेशनल और सोशल कमेंटेटर संतोष देसाई मानते हैं कि राहुल गांधी की दाढ़ी उनकी इमेज में पॉजिटिव शिफ्ट लाई है। उन्होंने कहा, ‘जब उनके पिता राजीव गांधी राजनीति में आए, उनके क्लीन-शेव लुक से युवा जोश और बदलाव झलकता था। राहुल लंबे वक्त तक ‘पप्पू’ का ठप्पा झेलते रहे हैं। हालांकि, उनकी यात्रा राजनीतिक एंगेजमेंट के लिहाज से गंभीर प्रयास रही है।
सोशल साइंटिस्ट शिव विश्वनाथन के अनुसार, राहुल की पदयात्रा और दाढ़ी ने पॉलिटिक्स का थियेटर खड़ा कर दिया है। एडवर्टाइजिंग प्रफेशरनल राहुल कहते हैं कि दाढ़ी से राहुल की ‘माटी का बेटा’ जैसी इमेज बनती है। बकौल राहुल, नेताओं के औपचारिक परिधान का मुकाबला खिचड़ी दाढ़ी और टी-शर्ट की कैलुअलनेस से है।
दाढ़ी से किसी के बारे में क्या पता चलता है? चार्ल्स डार्विन का कहना था कि महिलाओं के प्रति आकर्षण के आधार पर इंसानी दाढ़ी का विकास हुआ। सोशल एंथ्रोपॉलजिस्ट रॉबर्ट डी मार्टिन ‘Beauty and the Beard’ नाम के निबंध में लिखते हैं कि डार्विन की थियरी का टेस्ट करने को कई शोध हुए हैं। मार्टिन के मुताबिक, ‘कई शोधकर्ताओं ने सुझाया है कि दाढ़ी से आक्रामकता जाहिर होती है, सामाजिक स्तर भी इससे प्रभुत्व को बढ़ावा मिलता है।
अगर दाढ़ी बढ़ाकर राहुल गांधी को मैच्योर दिखाने की कोशिश थी तो वह पहले ऐसे नेता नहीं। जनवरी 2020 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जब भारत आए तो चेहरे पर खिचड़ी दाढ़ी थी। मीडिया ने इसे गंभीर राजनेता की एंट्री की तरह देखा। फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों अधिकतर क्लीन-शेव रहते हैं। पिछले साल मार्च में जब वह हल्की दाढ़ी रखे नजर आए तो नए लुक ने सुर्खियां बटोरीं। यह भी बात उठी कि वह यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की की नकल तो नहीं कर रहे। जेलेंस्की के ऑलिव रंग की टी-शर्ट्स और कई दिन पुरानी दाढ़ी वाले वाले लुक ने दुनियाभर का ध्यान खींचा।
भारत में चार ऐसे प्रधानमंत्री हुए हैं जिन्होंने दाढ़ी रखी। चंद्रशेखर, आईके गुजरात, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी।जनवरी 2020 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जब भारत आए तो चेहरे पर खिचड़ी दाढ़ी थी। मीडिया ने इसे गंभीर राजनेता की एंट्री की तरह देखा। फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों अधिकतर क्लीन-शेव रहते हैं। पिछले साल मार्च में जब वह हल्की दाढ़ी रखे नजर आए तो नए लुक ने सुर्खियां बटोरीं। यह भी बात उठी कि वह यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की की नकल तो नहीं कर रहे। जेलेंस्की के ऑलिव रंग की टी-शर्ट्स और कई दिन पुरानी दाढ़ी वाले वाले लुक ने दुनियाभर का ध्यान खींचा। पिछले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले तो मोदी ने दाढ़ी इतनी बढ़ा ली थी कि उनके लुक की तुलना रबींद्रनाथ टैगोर से होने लगी थी। तब वहां की सीएम ममता बनर्जी ने तंज भी कसा था, ‘लंबी दाढ़ी रखने से कोई रबींद्रनाथ टैगोर नहीं बन जाता।’
मोदी और राहुल में क्या समानताएं हैं, इसपर पिछले दिनों एक अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन ने लिस्ट छापी- राहुल ने इंटरव्यू से मना कर दिया लेकिन लोगों से सीधे जुड़े, दाढ़ी बढ़ा रहे हैं, धार्मिंक अनुष्ठाों में हिस्सा ले रहे हैं और मंदिर जाते हैं। कम्युनिकेशन कंसल्टेंट दिलीप चेरियन कहते हैं कि टी-शर्ट और दाढ़ी से ऐसे व्यक्ति का इशारा मिलता है जिसका ध्यान इस बात पर नहीं कि वह कैसा दिखता है। हालांकि, देसाई का मानना है कि मेकओवर से बस इतना ही हो सकता है। उनके मुताबिक, ‘यात्रा को ड्यूटी से भागने की जुगत के रूप में भी देखा जा सकता है। जब असल राजनीति गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में हो रही थी, वे नहीं थे। यात्रा से उन्हें मदद मिलती है, पार्टी को नहीं।’