आज हम आपको बताएंगे कि विपक्ष के INDIA के गठबंधन में कमी क्यों आई है! एक तरफ समूचा विपक्ष विभिन्न मुद्दों पर केंद्र की एनडीए सरकार को घेर रहा है। लेकिन विपक्षी मोर्चे की एकजुट तस्वीर उस तरह से सामने नहीं आ रही, जैसे विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. बनने के बाद आई थी। गठबंधन शुरू में जोर-शोर से मीटिंग करते हुए एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे थे। बाद में विपक्षी खेमे में एक कॉर्डिनेशन कमिटी भी बनी, लेकिन इसकी पहली बैठक होने के बाद पिछले दो महीने से कोई गतिविधि नहीं हुई। बीच में शरद पवार जरूर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मिले थे, लेकिन उसके बाद शीर्ष नेताओं की कोई मुलाकात नहीं हुई। हालांकि पिछले दिनों में मध्य प्रदेश चुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और एसपी में खींचतान, कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं और एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर चला। इससे विपक्षी एकता पर सवाल उठने शुरू हो गए। बहरहाल, राहुल गांधी ने मामले को शांत किया। बीजेपी ने इस खींचतान पर न सिर्फ भरपूर मजा लिया, बल्कि खूब कटाक्ष भी किए। विपक्ष इसके लिए असेंबली चुनावों की व्यस्तता को जिम्मेदार मान रहा है। मौजूदा पांच राज्यों के चुनावों में विपक्षी मोर्चे का प्रमुख घटक कांग्रेस खासा व्यस्त है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनावों में पूरी तरह से व्यस्त होने के कारण विपक्षी दल एक साथ मिलकर आगे की रणनीति पर मंथन नहीं कर पा रहे। असेंबली चुनावों में कांग्रेस का बहुत कुछ दांव पर लगा है। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता चुनावी प्रचार व रणनीति में लगे हैं। कांग्रेस के अलावा, गठबंधन के कुछ अन्य दलों जैसे AAP और SP भी कुछ जगह मैदान में है। ऐसे में सभी दलों का मानना है कि असेंबली चुनावों के बाद ही लोकसभा चुनावों को लेकर आगे की रणनीति पर चर्चा हो तो बेहतर रहेगा।
दूसरी ओर विपक्षी खेमे की नजरें कहीं न कहीं इन पांच राज्यों के चुनावी नतीजों पर भी रहेगी। इस चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिलती है तो विपक्षी खेमे में उसकी स्थिति न सिर्फ मजबूत होगी, बल्कि वह केंद्रीय भूमिका में ज्यादा सशक्त तरीके से अपनी बात रख पाएगी। इसके अलावा, नतीजों पर ही इस मोर्चे की आगामी रणनीति तय होगी। कांग्रेस की बड़ी जीत होती है तो विपक्ष अलग तरह की रणनीति पर आगे बढ़ेगा। लेकिन अगर बीजेपी को जीत मिलती है तो विपक्ष को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा। असेंबली चुनावों के नतीजे विपक्ष के सामने चेहरों, जमीनी मुद्दों सहित चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बनाने में एक स्पष्टता देंगे। इसलिए विपक्ष को बेसब्री से नतीजों का इंतजार है।
असेंबली चुनावों के अलावा, पिछले डेढ़ दो महीने से विपक्षी गठबंधन के कई दल अपनी अपनी उलझनों में उलझे हुए हैं। इनमें कई दल व उनकी सरकारें अपने खिलाफ विभिन्न एजेंसियों की कार्रवाई से जूझ रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ दलों के अपने दूसरे सियासी मसले हैं। इनमें AAP और टीएमसी जैसे दलों पर एजेंसियों की कार्रवाई च रही है। दोनों दलों में एजेंसियों की जांच की आंच शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचती दिख रही है। शराब घोटाले को लेकर दिल्ली में सीएम अरविंद और आप के दो अहम रणनीतिकार मनीष सिसोदिया व संजय सिंह फिलहाल जेल में हैं। वहीं टीएमसी में एजेंसियों की पकड़ वेस्ट बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी तक हो चुकी है। दूसरी ओर चुनाव के दौरान कांग्रेस शासित राजस्थान व छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर एजेंसियों के छापे पड़े। गठबंधन की शुरुआत से ही शरद पवार की पार्टी एनसीपी में न सिर्फ दो-फाड़ हुआ, बल्कि पवार खेमा अभी भी पार्टी पर अपनी पकड़ बनाने की लड़ाई चुनाव आयोग से लेकर कोर्ट तक में लड़ रहा है।
विपक्षी एकता की दिशा में अभी सीट शेयरिंग को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। भले ही शुरुआती बैठकों में लोकसभा चुनाव को लेकर सीट शेयरिंग पर आपसी सहमति बन गई हो, लेकिन आम चुनावों से पहले सेमिफाइनल कहे जाने वाले इन असेंबली चुनावों में I.N.D.I.A. के विभिन्न घटक दलों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर कोई सहमति नहीं बनी। यही वजह है कि गठबंधन के बावजूद AAP, कांग्रेस, एसपी और जेडीयू आपस में टकरा रहे हैं। माना जा रहा है कि ये दल अपना जनाधार बढ़ाने या विस्तार की आकांक्षा को लेकर ऐसा कर रहे हैं। मसलन, मध्य प्रदेश में जेडीयू ने 10 सीटों तो एसपी ने 45 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इसी तरह AAP राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में चुनावी मैदान में है।
राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि इन लोगों ने अपनी गतिविधियां फिलहाल रोक कर चुनाव के नतीजों तक इंतजार करने का फैसला किया है। इन लोगों को लगता है कि नतीजे आने के बाद आगे की रणनीति तय करना बेहतर होगा। उसके बाद विपक्ष आकलन करेगा कि मोदी सरकार के खिलाफ जमीन पर लोगों के मन में क्या है। दरअसल, इन सभी राज्यों में पीएम मोदी अपने आप को दांव पर लगा रहे हैं। वह अपने क्षेत्रीय नेताओं पर तो भरोसा कर नहीं पा रहे। बीजेपी का सारा अभियान मोदी पर शुरू होकर उन्हीं पर खत्म हो रहा है। विपक्षी मोर्चे के कई दल चुनावी मैदान में आमने-सामने हैं। ऐसे में विपक्ष की बैठक होती है तो इनके आपस में उलझने का खतरा है। दुबे का कहना था कि इसलिए विपक्ष फिलहाल इसे अवॉयड कर रहा है। असेंबली चुनावों के नतीजे आ जाएंगे तो विधानसभा चुनाव की राजनीति लोकसभा चुनाव की राजनीति से टकराना बंद कर देगी। तब विपक्ष की एकता का खाका स्पष्ट हो जाएगा।