इतनी हार के बाद भी अखिलेश यादव राजनीति की रणनीति नहीं बदल रहे हैं! उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी भले ही लगातार चुनावों में हार का सामना कर रही हो। लेकिन अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं किया है। उन्होंने लगातार छोटे दलों को साथ जोड़ने का प्रयास जारी रखा है। लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भी ऐसा ही प्रयास देखने को मिल रहा है। तो ऐसा क्या है कि अखिलेश यादव अपनी रणनीति पर कायम हैं? इसका जवाब आपको समाजवादी पार्टी के चुनावों में प्रदर्शन से मिलेगा। भले ही सत्ता तक न पहुंचे हों लेकिन अखिलेश की रणनीति पार्टी का जनाधार बढ़ाने में कारगर सिद्ध हो रही है। अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में उसका वोट प्रतिशत घटा था। लेकिन इसके बाद अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति बदली और बड़े दलों की बजाए छोटे दलों को टार्गेट करना शुरू किया। उन्होंने भाजपा से अलग हुए सुभासपा को जोड़ा। अपना दल कमेरावादी को साथ लाए, राष्ट्रीय लोकदल तो शुरू से उनके साथ ही था। इस तरह से अखिलेश ने बीजेपी को पूरे प्रदेश में घेरने की पूरी कोशिश की। 2022 के विधानसभा चुनावों में ये अखिलेश की ही रणनीति थी कि सपा करीब 32 फीसदी के वोट शेयर हासिल करने वाली पार्टी बन गई। वो अलग बात है कि वह सत्ता से दूर रह गई।
अखिलेश की इस पूरी रणनीति काे समझने के लिए आपको यूपी में हुए पिछले तीन विधानसभा चुनावों पर एक बार नजर डालनी होगी। दरअसल उत्तर देश में 2017 से पहले के विधानसभा चुनावों में एक पैटर्न था कि जिस पार्टी ने 30 फीसदी या उससे ज्यादा वोटिंग प्रतिशत हासिल कर लिया, वह सरकार बना लेती थी। इसी क्रम में 2012 का विधानसभा चुनाव भी शामिल है। इसमें मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी ने 29.3 प्रतिशत वोट हासिल किए और 224 सीटों के साथ उसने बहुमत की सरकार बनाई थी। वहीं बसपा ने 25.9 फीसदी वोट हासिल किए लेकिन वह सिर्फ 80 सीटें ही जीत सकी। भाजपा भी 15 फीसदी वोट शेयर के साथ सिर्फ 47 सीटें ही अपने नाम कर सकी।
लेकिन 2017 में बीजेपी ने पिछले चुनावों का पैटर्न तोड़ दिया। उसने 40 फीसदी वोट शेयर के साथ 312 सीटें जीतकर बहुमत की सरकार बना ली। वहीं समाजवादी पार्टी 22 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ 47 सीटें ही अपने नाम कर सकी। बसपा 22.4 फीसदी वोट हासिल लेकिन उसे 19 सीटों पर ही जीत नसीब हुई। बीजेपी के वोट शेयर में 25 फीसदी का तेज उछाल राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका गया। हालांकि चुनाव जीतने के तमाम कारण होते हैं लेकिन बीजेपी की छोटे दलों को जोड़ने की रणनीति का इसमें विशेष योगदान माना गया। चुनाव से पहले भाजपा ने सुभासपा, अपना दल जैसे छोटे दलों के साथ गठबंधन किया था। दोनों ही पार्टियों का यूपी के पूर्वांचल में अपना जनाधार है।
बहरहाल, अखिलेश यादव ने भी इस पैटर्न पर अपनी रणनीति में बदलाव किया। 2017 के विधानसभा चुनावों में अखिलेश ने राहुल गांधी के साथ मिलकार सपा-कांग्रेस गठबंधन किया था और चुनाव में उतरे थे। नतीजा सामने था। अब अखिलेश यादव ने 2018 के गोरखपुर उपचुनाव से ही छोटे दलों को जोड़कर चुनाव में उतरने की रणनीति पर अमल करना शुरू कर दिया। यहां निषाद पार्टी के साथ गठबंधन कर सपा ने उपचुनाव में जीत हासिल की। इसके बाद 2022 में अखिलेश यादव इसी रणनीति पर आगे बढ़े और छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन किया। इसका फायदा भी उन्हें मिला और सपा के वोट शेयर में तेज उछाल देखने को मिला। वह भले ही सरकार नहीं बना सकी लेकिन 31.9 फीसदी वोट शेयर उसने हासिल किया।क्योंकि बीजेपी ने अपने बढ़े जनाधार को टूटने नहीं दिया। उसने 41.84 फीसदी वोट शेयर के साथ सरकार बना ली। हालांकि अखिलेश के इस बढ़े वोट बैंक का असर बीजेपी की सीटों पर जरूर देखने को मिला। इस बार 270 का आंकड़ा ही पार कर सकी। सबसे ज्यादा नुकसान बसपा को हुआ वह 2022 में करीब 12.6 फीसदी ही वोट हासिल कर सकी और सिर्फ एक सीट ही उसके खाते में गई।
जानकारी के अनुसार अखिलेश यादव अपनी इस रणनीति पर आगे बढ़ रहे और 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर उन्होंने इसे विस्तार भी देना शुरू कर दिया है। मध्य प्रदेश के चुनावों में अखिलेश की कोशिश पार्टी का जनाधार यूपी से बाहर बढ़ाने की कोशिश के तौर पर ही देखा गया। वह इंडिया गठबंधन के अहम अंग हैं और दूसरे प्रदेशों के समाजवादी विचारधारा वाले खासतौर पर ओबीसी जातियों पर दखल रखने वाले दलों को साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनिवाल, हरियाणा के नए दल जनसेवक पार्टी से उनकी करीबी की चर्चा है।
यूपी की बात करें तो अखिलेश यादव ने भले ही 2022 में सुभासपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन चुनाव के बाद सुभासपा गठबंधन से अलग हो गई और अब वह एनडीए में वापसी कर चुकी है। लेकिन अखिलेश ने प्रयास नहीं छोड़ा है। सुभासपा से अलग हुए कई नेता लगातार उनके संपर्क में हैं। महेंद्र राजभर की सुहेलदेव स्वाभिमान पार्टी, शशि प्रताप सिंह की सुभासपा के साथ संपर्क शामिल है। इसी तरह से 2022 चुनावों के बाद सपा से अलग हुए महान दल भी वापस सपा के साथ जुड़ गया है। वहीं राष्ट्रीय लोकदल, अपना दल कमेरावादी और जन जनवादी पार्टी से पहले सपा का गठबंधन चल रहा है।