राजस्थान की हार कांग्रेस को मंजूर नहीं हो रही है!लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए तीन हिंदी भाषी राज्य में हार एक धक्का है। विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के रथ पर सवार 10 साल बाद दिल्ली की सत्ता दोबारा पाने की कोशिश में लगी पार्टी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। एमपी तो गया ही साथ ही छत्तीसगढ़ और राजस्थान भी हाथ से निकल गया, जहां कांग्रेस की खुद की सरकार थी। तीन राज्यों की हार पर पार्टी के भीतर मंथन चल रहा है। इसी कड़ी में राजस्थान विधानसभा चुनाव के हार की वजह खोजी गई। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने लोगों से संवाद में कमी को इस हार की वजह बताया है। वह पूर्व सीएम अशोक गहलोत के ध्रुवीकरण वाले तर्क से असहमत दिखे। गहलोत ने कहा कि बीजेपी ने प्रदेश में ध्रुवीकरण किया जिसके कारण कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही। राजस्थान चुनाव की हार की समीक्षा बैठक में, राहुल ने कथित तौर पर तर्क दिया कि अगर भाजपा चुनावों को ध्रुवीकृत करने में सफल होती, तो कांग्रेस लगभग 40% का अपना वोट शेयर न बनाए रखे होता। और यहां तक कि इसे एक छोटे अंश से बढ़ा दिया होता, जो भाजपा से केवल 2% पीछे था। उन्होंने कहा कि यह मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से काफी बेहतर है, और पार्टी इस जीत की आंधी में उड़ नहीं गई।
गहलोत ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा नेताओं के अभियान के दौरान सांप्रदायिक राग अलापने पर जमकर निशाना साधा और अफसोस जताया कि प्रतिद्वंद्वी ने राज्य सरकार के रिकॉर्ड को चुनौती देकर चुनाव नहीं लड़ा। राहुल ने इस दावे पर सहमति जताई कि राज्य की कल्याणकारी योजनाएं अत्याधुनिक थीं, लेकिन उन्होंने कहा कि कांग्रेस उन्हें मतदाताओं तक व्यापक रूप से पहुंचाने में विफल रही। राहुल ने कहा कि कर्नाटक में हम अपनी योजनाओं को लेकर गए और लोगों तक पहुंचाया और उसका फायदा हमें मिला। यहां योजनाएं रैलियों तक ही सीमित रहीं। उन्होंने यह भी कहा है कि नौकरशाही सरकार पर हावी हो गई थी।
कांग्रेस चुनाव समिति में बैठे विधायकों को बदलने को लेकर राहुल और गहलोत के बीच बार-बार बहस हुई, लेकिन अधिकांश विधायकों को बरकरार रखने में सीएम का पलड़ा भारी रहा। कांग्रेस के 23 मंत्रियों में से 17 हार गए और गहलोत सहित केवल 6 ही जीतने में सफल रहे। हालांकि, एक नेता ने कहा कि अगर उम्मीदवारों को बदलना है तो काम काफी पहले शुरू करना होगा। एक अन्य प्रतिभागी ने मांग की कि पार्टी उन नेताओं की पहचान करे जिन्होंने व्यक्तिगत उम्मीदवारों की सिफारिश की थी, और जवाबदेही तय करे। जब राज्य संगठन में बदलावों के बारे में पूछा गया, तो AICC प्रभारी सुखजिंदर रंधावा ने कहा कि बदलाव केवल तभी किए जाते हैं जब पार्टी का प्रदर्शन गिरता है। हालांकि, उन्होंने कहा कि पार्टी जवाबदेही तय करेगी।
बता दे कि अंतिम परिणाम पर इसका बहुत असर नहीं दिखा। साथ ही सचिन-गहलोत विवाद का असर यह दिख रहा है कि पश्चिम राजस्थान में कांग्रेस को बुरी हार का सामना कर पड़ रहा है जहां पार्टी ने 2018 में बड़ी जीत हासिल की थी जिसके बाद सत्ता में आई थी। परिणाम के बाद पार्टी में अब यह विवाद और जोर पकड़ सकता है। साथ ही पार्टी की इस हार के पीछे कांग्रेस में टिकट वितरण का भी बड़ा कारण माना जा रहा है। कहा जा रहा था कि सीएम अशोग गहलोत से अधिक स्थानीय विधायकों के खिलाफ नाराजगी थी और अंतिम परिणाम में भी पार्टी के कई मंत्रियों और मौजूदा विधायकों को हार का सामना करना पड़ा। गहलोत सरकार के 12 मंत्री चुनाव हारे।
BJP ने चुनाव में महिला सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा और गहलोत सरकार की तुष्टीकरण को बड़ा मुद्दा बनाया। इसका बड़ा लाभ उदयपुर और जयपुर जैसे क्षेत्रों में मिलता दिख रहा है। साथ ही पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कई लुभावने वादे भी किए। उसका लाभ पार्टी को मिला। पार्टी ने लाल डायरी मामले से भी गहलोत सरकार को करप्शन के मामले पर घेरा। BJP का आक्रामक चुनाव प्रचार कांग्रेस के प्रचार पर बीस पड़ा।मांग की कि पार्टी उन नेताओं की पहचान करे जिन्होंने व्यक्तिगत उम्मीदवारों की सिफारिश की थी, और जवाबदेही तय करे। जब राज्य संगठन में बदलावों के बारे में पूछा गया, तो AICC प्रभारी सुखजिंदर रंधावा ने कहा कि बदलाव केवल तभी किए जाते हैं जब पार्टी का प्रदर्शन गिरता है। हालांकि, उन्होंने कहा कि पार्टी जवाबदेही तय करेगी। अगर राज्य के क्षेत्रवार परिणाम को देखें तो BJP ने अधिकतर क्षेत्रों में कांग्रेस से बढ़त हासिल की। राज्य के अहिरवाल, हाड़ौती, जयपुर, जैसलमेर-बीकानेर, मारवाड़, मेवाड़ और शेखावटी क्षेत्र में सिर्फ शेखावटी इलाका था जहां कांग्रेस ने BJP से बेहतर प्रदर्शन किया।