यूपी का उपचुनाव सबसे ज्यादा चर्चे में है! उत्तर प्रदेश में उप चुनाव है। चुनावी मैदान में लड़ाई एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच होती दिख रही है। अन्य प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार चुनावी मैदान में नहीं है। ऐसे में वोटर या तो खुद को भाजपा समर्थक या विरोधी या फिर सपा समार्थक या विरोधी दिख रहे हैं। हालांकि, चुनावी मैदान में टक्कर को रोचक बनाते कुछ उम्मीदवार जरूर दिख रहे हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रिक्त हुई मैनपुरी संसदीय सीट पर हो रहे उप चुनाव में उनकी बहू डिंपल यादव पार्टी की उम्मीदवार हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो अपने ससुर मुलायम सिंह यादव की तरह डिंपल के लिए जीत की राह उतनी आसान नहीं है। हालांकि, इसकी कोशिश समाजवादी पार्टी की ओर से लगातार की जा रही है। वहीं, मैनपुरी के चुनावी मैदान में डिंपल के साथ-साथ छह उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मुख्य मुकाबला तो डिंपल यादव और रघुराज सिंह शाक्य के बीच हो रहा है। कुछ इसी प्रकार की स्थिति रामपुर में भी है। 10 बार के विधायक आजम खान की सदस्यता गई। आजम की विधायकी खत्म हुई तो उप चुनाव हो रहा है। चुनावी मैदान में 10 उम्मीदवार हैं। खतौली विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता जाने के बाद हो रहे उप चुनाव के मैदान में 14 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं। लेकिन, कहीं त्रिकोण बनने जैसी स्थिति नहीं दिख रही है। सोमवार को चुनाव होंगे। इससे पहले हर उम्मीदवार माहौल अपने पक्ष में ही बता रहा है। हकीकत 8 दिसंबर को रिजल्ट के बाद आ जाएगी।
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के मैदान में 6 उम्मीदवार चुनावी मुकाबले में है। हालांकि, मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार डिंपल यादव और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार रघुराज सिंह शाक्य के बीच होता दिख रहा है। डिंपल यादव के पक्ष में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव, प्रोफेसर रामगोपाल यादव, तेज प्रताप यादव, धर्मेंद्र यादव समेत पूरा मुलायम कुनबा चुनावी मैदान में है। डिंपल स्वयं कई चुनावी सभाओं को संबोधित कर चुकी हैं। घर- घर जा रही हैं। महिलाओं से मिल रही हैं। वोट मांग रही हैं। अखिलेश यादव भी बूथ स्तर के सम्मेलनों में शामिल होकर पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में वोट मांग रहे हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार रघुराज शाक्य के पक्ष में स्वयं सीएम योगी आदित्यनाथ चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। इनके अलावा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक, पार्टी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी समेत पूरा भाजपा कुनबा मैनपुरी के मैदान में है।
मैनपुरी का समीकरण इस समय कुछ अलग ही इशारे कर रहा है। चुनावी मैदान में डिंपल और रघुराज शाक्य के बीच काफी कड़ा मुकाबला होता दिख रहा है। कई लोगों का मानना है कि सपा संस्थापक के निधन के बाद डिंपल यादव जनता की सहानुभूति के चलते उनकी परंपरा को बरकरार रखेंगी। मुलायम सिंह यादव का 10 अक्टूबर को निधन हो गया था। उनके निधन के बाद हो रहे मैनपुरी उप चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को 10 नवंबर को पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया गया। मैनपुरी में एक बड़े वर्ग का कहना है कि डिंपल यादव के लिए निश्चित रूप से उप चुनाव आसान नहीं होगा, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी, सपा से सीट छीनने की पूरी कोशिश कर रही है। बड़ी संख्या में भाजपा नेता पहले से ही शहर में डेरा डाले हुए हैं। पार्टी की ओर से दलित वोट बैंक को अपने पाले में करने की पूरी कोशिश है।
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के मैदान में शिवपाल यादव खुलकर बहू डिंपल यादव के पक्ष में उतर आए हैं। चुनावी मैदान में प्रचार कर रहे हैं। बहू के लिए वोट मांग रहे हैं। पूरा फोकस जसवंतनगर में बनाए हुए हैं, ताकि यह सीट पूरी तरह से समाजवादी पार्टी के पक्ष में वोट करे। दरअसल, मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र के दो सीटों पर समाजवादी पार्टी जीती थी। जसवंतनगर से शिवपाल सपा के टिकट से जीते थे। इसलिए मामला यहीं फंसा हुआ दिख रहा है। मैनपुरी और भोगांव सीट पर भाजपा ने यूपी चुनाव 2022 इसके दौरान जीत दर्ज कर ली थी। इस दौरान भी शिवपाल, अखिलेश के साथ ही थे। इससे पहले लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान पूरा परिवार एकजुट था। मैनपुरी में एक बड़े वर्ग का दावा है कि लोकसभा चुनाव 2019 में ही समाजवादी पार्टी को मुश्किल हो रही थी। अगर समाजवादी पार्टी का बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन नहीं हुआ होता तो मुलायम सिंह यादव के सामने ही मुश्किल खड़ी हो गई थी। वह करीब 95000 वोट से जीत पाए थे। लोकसभा चुनाव में 95000 वोट से जीत को बड़ी जीत नहीं माना जाता है।
लोगों का दावा है कि तब शिवपाल यादव, मुलायम सिंह यादव के पक्ष में वोट मांगने गांव- गांव पहुंच रहे थे। इस बार की तरह वे केवल जसवंतनगर तक सीमित नहीं थे। हालांकि, इस बार के चुनाव में डिंपल यादव के पक्ष में उसी प्रकार से अखिलेश यादव वोट मांगते दिख रहे हैं। लेकिन, डिंपल यादव की मुलायम सिंह यादव से तुलना नहीं की जा सकती है। ऐसे में एक वर्ग जो सीधे मुलायम सिंह यादव से जुड़ा हुआ था, उसको डिंपल यादव के पक्ष में वोट करने के लिए मना लेना बड़ी मुश्किल वाली स्थिति दिखी है। वहीं, अब सारी नजर मायावती के वोट बैंक पर टिकी हुई है। दलित वोट इस पर जिस तरफ से आएगा, जीत उसी की होनी तय है। सोमवार को जब वोटिंग शुरू होगी तो सबसे अधिक नजर इसी वोट बैंक की चाल पर टिकी होगी। ऐसे में चार अन्य उम्मीदवार महत्वपूर्ण हो जाते हैं। अगर वे दलित वोट काटने में कामयाब हुए तो फिर स्थिति बदल जाएगी।
रामपुर शहर सीट पर आजम खान के भविष्य का फैसला होना है। आजम खान यहां पर चार दशक से अपनी धमक सुना रहे हैं। इस सीट पर उनकी पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे खुद नहीं तो उनके परिजन ही यहां से जीतकर दर्ज करते रहे हैं। एमपी एमएलए कोर्ट की ओर से पिछले दिनों फैसला आया। यूपी चुनाव 2022 में रामपुर से 10वीं बार विधायक बने आजम खान 3 साल की सजा भुगतने को बाध्य हुए। हेट स्पीच केस में सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधायकी चली गई। 6 सालों के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग गया। इसके बाद उन्होंने अपने अजीज असीम मिर्जा को चुनावी मैदान में उतारा है।
असीम मिर्जा इससे पहले रामपुर लोकसभा उपचुनाव में भी समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़े थे। भाजपा के घनश्याम लोधी से हार गए थे। आजम खान ने उन पर ही भरोसा दिखाया है। माना जा रहा है कि आजम खान उन्हें रामपुर से अपना उत्तराधिकारी बनाने की तैयारी में है, लेकिन रामपुर सीट पर असीम मिर्जा को काफी चुनौतियों का सामना कर रहा है। उनके पक्ष में अब तक आजम और उनकी पत्नी तंजीन फातिमा उतर चुके हैं। तंजीन फातिमा भी वोट मांग रही हैं। पुलिस पर आरोप लगा रही हैं। इन सब के बीच चुनावी मैदान में उतरे अन्य 9 उम्मीदवार भी वसीम रजा की चुनौती बढ़ाते दिख रहे हैं। हालांकि, इसमें चुनौती उन्हें भारतीय जनता पार्टी के आकाश सक्सेना हनी से ही मिल रही है।
हालांकि, चुनावी मैदान में उतरे सुहेलदेव भारतीय समाजवादी पार्टी के जयवीर सिंह बड़ा खेल करते दिख रहे हैं। वह किसका वोट काटने जा रहे हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। जयवीर के पक्ष में सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने कोई बड़ा जोर नहीं लगाया है। वे तो उप चुनाव को सत्ता पक्ष के तरफ जताने में ही लगे हुए हैं। हालांकि, रामपुर सीट से चार अन्य मुस्लिम उम्मीदवार भी मैदान में हैं। ये भी असिम रजा का गणित बिगाड़ सकते हैं।