वर्तमान में बिहार में टीचर नियुक्ति मुद्दा बहुत उछल रहा है! बिहार में 1 लाख 20 हजार 336 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र दिया गया। पटना के गांधी मैदान में 27 जिलों के 25 हजार शिक्षकों को नियुक्ति पत्र सौंपा गया। बाकी जिलों में भी कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने खुद इसकी शुरुआत की। सीएम नीतीश ने 10 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र सौंपा। भाषण के दौरान नीतीश कुमार ने बताया कि किस राज्य के कितने लोगों की शिक्षक के तौर पर नियुक्ति हुई है। इसके बाद से बिहारी बनाम बाहरी पर सियासी तलवारें खींच गई। जन सुराज पदयात्रा पर निकले प्रशांत किशोर ने कहा कि ‘हमारे बच्चे दूसरे राज्यों में जाकर कंधों पर बोरा ढोएंगे और गुजरात-यूपी के बच्चे यहां आकर हम लोगों को पढ़ाएंगे। हजारों की संख्या में यूपी और दूसरे राज्यों के बच्चे यहां शिक्षक बनकर पढ़ाएंगे तो हमलोग क्या करेंगे?’ कुल मिलाकर उन्होंने बिहार सरकार की शिक्षक नियुक्ति नीति पर सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि ‘जिन शिक्षकों ने परीक्षा पास की है, उन्हें राज्यकर्मी का दर्जा दिया जा रहा है। नियोजित शिक्षकों के सर्विस कंडीशन को बदला जा रहा है और नई नियुक्तियां हुई ही नहीं हैं। कुछ लोग जो सीधे परीक्षा पास करके आए हैं, उसमें बड़ी संख्या में वो लोग हैं, जो बिहार के बाहर के हैं।’ प्रशांत किशोर यहीं नहीं रूके आगे उन्होंने कहा कि ‘बिहार वो राज्य है, जहां पूरी दुनिया के लोग पढ़ने के लिए आते थे और आज देखिए नीतीश कुमार के राज में पूरे बिहार को अनपढ़ बना दिया गया। ये नीतीश कुमार की दूरदर्शिता का आलम है कि हमारे बच्चे दूसरे राज्य में ठेला लगाएंगे और वहां के बच्चे यहां आकर नौकरी करेंगे।’
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बिहारी बनाम बाहरी के मुद्दे पर लंबा-चौड़ा आंकड़ा कार्यक्रम के दौरान ही दिया था। उन्होंने कहा था कि ‘बिहार में शिक्षक की नौकरी पाने के लिए कौन-कौन राज्य से लोग आए हैं, वो आपके बताते हैं। केरल, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, असम, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, झारखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और पश्चिम बंगाल से भी लोग आए हैं। ये सब खराब बात है? ये सब तो खुशी की बात है न? आप समझिए केरल और कर्नाटक ये सब भी यहां आकर भाग लिए। खुशी की बात है न ये सब? यहां के स्कूल में पढ़ाएगा, खुशी की बात है। अपने लोग बिहार के लोग तो पढ़ा ही रहे हैं, सब पढ़ाएगा।’
नीतीश कुमार ने कहा कि ‘कई लोग सेना, अर्ध सैनिक बल, रेलवे, बैंकों और बड़ी कंपनियों को छोड़कर शिक्षक बने। सोच लीजिए, दूसरे काम में लगे हुए थे, छोड़कर बिहार में शिक्षक बने। ये कितना खुशी की बात है। ये बिहार में जो माहौल बदला है, इसकी छवि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर काफी बेहतर हुई है। यही कारण है कि इसमें दूर-दराज के लोग बिहार आकर शिक्षक बन रहे हैं।’
आगे बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘कुछ लोग क्रिटिसाइज कर रहे हैं बाहर को लेकर.. तो इन सबको पता है? सब दिन जो बहाली होती है वो सिर्फ राज्य नहीं, देशभर के लोगों को मौका दिया जाता है। और अपने बिहार का लोग… जो लड़का है या लड़की है…दूसरे राज्यों में कितनी उसको बहाली मिलती है। हम तो कई जगह घूमते है न जी…एमपी थे तब भी और बाद में भी… बिहार के लोग भी बाहर रहते हैं… यहां भी हम लोगों ने सबका किया है। तो कुछ लोग आजकल,पहले नहीं आलोचना करता था,आजकल जिसकी पब्लिसिटी आपलोग कर रहे हैं मीडिया की ओर इशारा करते हुए वही आलोचना करता है। कहता है कि बिहार में बाहर वालों को भी आप बुला रहे हैं। अरे! बिहार क्या बाहर है? देश कहीं बाहर है? पूरा देश एक है। हमारे लोग बिहार के लोग बाहर भी जाते हैं।’
बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘आप जाओ तो ठीक, वो आपके यहां परीक्षा देने आए तो भारी दु:ख। ये तो यही बात हुई कि हम सबके घर-घर भोज खाएंगे, लेकिन हम नहीं खिलाएंगे और फिर कहिएगा दूसरे राज्यों में मुझे गाली मिली है।’
‘आप बिहार से बाहर परीक्षा देने जाएं तो ठीक। आप भी तो जनरल सीट पर फाइट करते हैं न। वो भी जनरल सीट पर फाइट किए। आज पूरा देश बिहार की तारीफ कर रहा है। बिहार में किए कामों को दूसरे राज्य के लोग उदाहरण के तौर पर अपने नेताओं के सामने रख रहे हैं। क्या ये आपको गर्व की बात नहीं लगती? दिल बड़ा कीजिए, सेकेंड फेज की तैयारी कीजिए और नौकरी की बहती गंगा में आप भी एक लोटा भर लीजिए।’ इनके अलावा बिहार की दूसरी छोटी पार्टियों ने भी ‘बिहारी प्राइड’ के नाम पर इमोशनल कार्ड जरूर खेला। वो बार-बार लोगों को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी हकमारी हुई है और आगे एक बार फिर करने की तैयारी की जा रही है। मगर, हकीकत है कि बिहार के बहुत से लोग दूसरे राज्यों में अलग-अलग सेक्टर में जाकर काम करते हैं। उसमें लेबर से लेकर स्कील्ड तक की जिम्मेदारी निभाते हैं। चूंकि, बिहार में प्राइवेट नौकरियां कम है और सरकारी नौकरियों की संख्या ज्यादा है तो मामला सियासी जरूर हो गया है।