आखिर पिछड़ी जातियों के लिए क्यों छिड़ रही है बहस?

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वर्तमान में पिछड़ी जातियों के लिए बहस छिड़ी हुई है! पिछड़ी जातियों के हितों को लेकर छिड़ी बहस के बीच, इस सितंबर नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण के लिए ‘क्रीमी लेयर’ की तय की गई आय सीमा में संशोधन के छह साल पूरे हो गए। इसी के साथ, इस आय सीमा में बढ़ोतरी की दो मियाद पूरी हो चुकी है। आय सीमा को आखिरी बार सितंबर 2017 में 6 लाख रुपये से 8 लाख रुपये तक बढ़ाया गया था और 2020 में इसमें फिर से इजाफा होना था। हालांकि, सरकार ‘क्रीमी लेयर’ कैटिगरी में ‘इनकम’ को फिर से परिभाषित करना चाहती है, लेकिन पॉलिसी के स्तर पर गतिरोध तीन सालों से जारी है। सितंबर 2023 में फिर से संशोधन होना था, लेकिन सरकार में उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि केंद्र के पास आय सीमा में संशोधन करने की कोई तत्काल योजना नहीं है। क्रीमी लेयर’ एक ओबीसी परिवार के लिए आय की वह सीमा है, जिसके पार वह आर्थिक रूप से बेहतर माना जाता है। इस तरह वह 27% मंडल आरक्षण के लिए पात्र नहीं होता है। एक छंटाई मानदंड के रूप में, इसे हर तीन साल में मुद्रास्फीति के लिए समायोजित किया जाता है। बता दें कि 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर दिया जाए। हालांकि, इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और भाजपा के वरिष्ठ ओबीसी नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने तर्क दिया कि ‘क्रीमी लेयर’ की गणना में ‘वेतन’ को शामिल करना पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को बेहतर स्थिति में समझना आसान बना देगा। इस कारण मोदी सरकार को प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डालने के लिए मजबूर होना पड़ा। ओबीसी समुदाय को चिंता है कि सरकार एक बार में बड़ी बढ़ोतरी देने से बचती है, इसलिए दो लंबित संशोधनों को भविष्य में एक साथ जोड़ दिया जाएगा, और मामूली बढ़ोतरी की पेशकश की जाएगी। अगर तीन-तीन साल में दो बार वृद्धि के बाद जो नई आय सीमा होती, सरकार एक बार में उससे नीचे ही रखेगी।

आरक्षण मुद्दों के विशेषज्ञ और अधिवक्ता शशांक रत्नू ने कहा, ‘तथाकथित समृद्ध ओबीसी को आरक्षण के दायरे से बाहर निकालने के लिए निरंतर कम सीमा का मतलब है कि पिछड़ों की एक बड़ी संख्या तेजी से नौकरी और शिक्षा कोटे के लिए अयोग्य होती जा रही है।’ सूत्रों ने कहा कि इनकम की नई सीमा तय करने की प्रक्रिया सरकार के प्रस्ताव से पैदा हुई नीतिगत गड़बड़ियों में फंस गया है। मंडल कमीशन के लागू होने के बाद 1993 में जारी ऑफिस मेमोरेंडम में सैलरी और खेती से हुई कमाई इनकम के दायरे में नहीं है। अब सरकार चाहती है कि वेतन से हुई आमदनी को भी इनकम माना जाए।

सामाजिक न्याय मंत्रालय ने फरवरी 2020 में कैबिनेट की मंजूरी के लिए दो सूत्री प्रस्ताव रखा, जिसमें सिफारिश की गई कि ‘वेतन’ को ‘आय’ का हिस्सा बनाकर आय सीमा को 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर दिया जाए। हालांकि, इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और भाजपा के वरिष्ठ ओबीसी नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने तर्क दिया कि ‘क्रीमी लेयर’ की गणना में ‘वेतन’ को शामिल करना पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को बेहतर स्थिति में समझना आसान बना देगा। इस कारण मोदी सरकार को प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डालने के लिए मजबूर होना पड़ा।

इनकम सीलिंग को संशोधित करने के लिए सरकार को अब ‘क्रीमी लेयर’ के लिए मानदंड को फिर से परिभाषित करने के विवादास्पद प्रस्ताव से नियमित बढ़ोतरी को अलग करना होगा। बता दें कि 27% मंडल आरक्षण के लिए पात्र नहीं होता है। एक छंटाई मानदंड के रूप में, इसे हर तीन साल में मुद्रास्फीति के लिए समायोजित किया जाता है। ओबीसी समुदाय को चिंता है कि सरकार एक बार में बड़ी बढ़ोतरी देने से बचती है, इसलिए दो लंबित संशोधनों को भविष्य में एक साथ जोड़ दिया जाएगा, और मामूली बढ़ोतरी की पेशकश की जाएगी। मंडल कमीशन के लागू होने के बाद 1993 में जारी ऑफिस मेमोरेंडम में सैलरी और खेती से हुई कमाई इनकम के दायरे में नहीं है। अब सरकार चाहती है कि वेतन से हुई आमदनी को भी इनकम माना जाए।अगर तीन-तीन साल में दो बार वृद्धि के बाद जो नई आय सीमा होती, सरकार एक बार में उससे नीचे ही रखेगी। एनसीबीसी ने अतीत में ओबीसी क्रीमी लेयर की आय में संशोधन में देरी पर गंभीरता से ध्यान दिया था और जोर देकर कहा था कि हर तीन साल में आय सीमा बढ़ाई जाए।