आखिर लखनऊ के ला मार्टीनियर कॉलेज में क्यों हो रही है बगावत?

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वर्तमान में लखनऊ के ला मार्टीनियर कॉलेज में बगावत हो रही है! यूपी की राजधानी लखनऊ को नवाबों के शहर के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां का इतिहास इसको सबसे अलग बनाता है। रहन-सहन, खाना-पानी, तौर- तरीके, भाषा, इमारतें-पार्क, पहनावे में राजसी जीवन की झलक दिखाई देती है। शायद यही वजह भी है कि इसे अदब और नवाबों का शहर कहा जाता है। वहीं यहां बनी इमारतें भी सुंदरता बढ़ाने का काम करती है। इन सब के अलावा यहां का एक स्कूल सभी को अपनी तरफ आकर्षित करता है, जो इन दिनों चर्चा में है। हालांकि इस समय चर्चा की वजह सुंदरता नहीं बल्कि, अध्यापकों की आपस में बगावत होना है। वहीं दूसरी तरफ विवाद बढ़ने के बाद प्रिसिंपल सी मैकफारलैंड ने 11 शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया है। बता दें कि प्रधानाचार्य सी मैकफारलैंड ने ये कार्रवाई कक्ष में तालाबंदी, पोस्टर जलाने और अनुशासनहीना के आरोप में की है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं लखनऊ के ला मार्टीनियर कॉलेज की जहां 11 शिक्षकों पर बर्खास्तगी की कार्रवाई की गई है। इनमें नौ सीनियर असिस्टेंट और दो मिडिल स्कूल के टीचर शामिल हैं। इन्हें अब परिसर के भीतर भी आने नहीं दिया जाएगा। बर्खास्त किए गए शिक्षकों में डॉ. अगम मिश्रा असिस्टेंट टीचर अकाउंटेंसी सीनियर स्कूल, डॉ. अमित अवस्थी असिस्टेंट टीचर हिंदी, सीनियर स्कूल, देश बंधु असिस्टेंट टीचर हिंदी सीनियर स्कूल, जेएनवी राव असिस्टेंट टीचर कंप्यूटर साइंस, सीनियर स्कूल, कृष्ण नंद असिस्टेंट टीचर, फिजिकल एजुकेशन, आलोक मिश्रा असिस्टेंट टीचर, कॉमर्स सीनियर स्कूल, अंशुमान अग्निहोत्री असिस्टेंट टीचर मिडिल स्कूल, दीपेश एल्बर्ट ट्रिम असिस्टेंट टीचर गणित, सीनियर स्कूल, सीनियर स्कूल, मो. असलम असिस्टेंट टीचर, कंप्यूटर एप्स, सीनियर स्कूल, नागेश डी. शर्मा असिस्टेंट टीचर, मैथमेटिक्स, सीनियर स्कूल और राजू रंजन असिस्टेंट टीचर आर्ट मिडिल स्कूल का नाम शामिल है। जानकारी के मुताबिक, आरोप पत्र दायर करने वालों में मिडिल स्कूल की प्रमुख जी. लोबो भी शामिल थीं, जिन्होंने इस्तीफा दे दिया।

आपके द्वारा दिए गए बयानों से, आपने प्रत्येक उत्तर में अपने रुख में बदलाव दिखाया है, लगभग 2 महीने की अवधि के भीतर बदली हुई परिस्थितियों की आवश्यकता के आधार पर झूठ और झूठ बोला है। जांच अधिकार क्षेत्र से बाहर है, क्योंकि प्रिंसिपल सेवानिवृत्त हो चुके हैं। मार्गदर्शन और सलाह के लिए मुझे प्रिंसिपल के फैसले पर पूरा भरोसा है। मुझे सबूतों की जांच करने के लिए समय चाहिए। एलसीजी को कार्यवाही की निगरानी करनी है और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी है। सभी प्रशासनिक प्रस्ताव प्रिंसिपल-नामित के माध्यम से भेजे जाने चाहिए। प्रिंसिपल का अनुशासनात्मक अधिकार छात्रों के बीच अनुशासन बनाए रखने तक ही सीमित है। बाद के चरण में गवाहों से जिरह करने के लिए समय का अनुरोध।पीठासीन अधिकारी को स्थानीय गवर्नर्स समिति द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिए। कम से कम 50 गवाहों से जिरह करने की मांग, जिसके लिए 14 दिन की अग्रिम सूचना दी जानी चाहिए। प्राकृतिक न्याय के हित में जांच को प्रिंसिपल के अलावा किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी को हस्तांतरित किया जाना।

आपके किसी भी पिछले संचार में आपके कार्यों के लिए किसी भी प्रकार के पश्चाताप या खेद का कोई संकेत नहीं था। 5 मार्च, 2024 को दस अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से हस्ताक्षरित माफी को इस मामले पर अंतिम आदेश को टालने का एक और प्रयास माना जाता है। आपने 14 दिसंबर, 2024 की घटनाओं के इर्द-गिर्द अपने कार्यों को उचित ठहराना जारी रखा है, आपको स्पष्टीकरण के लिए हर अवसर प्रदान किया गया है, आपको अपने अपराधों को स्वीकार करने के लिए कई अवसर प्रदान किए गए हैं।

आपने विभिन्न बहानों का उपयोग करके अनुशासनात्मक प्राधिकारी का सामना करने से बचने का विकल्प चुना है। आपके कार्य और जिस तरह से वे किए गए, उससे यह संकेत मिलता है कि आपकी मानसिकता ऐसी है कि आप अपने अधीन सौंपे गए प्रभावशाली विद्यार्थियों को पढ़ाने, मार्गदर्शन देने, निर्देशित करने और उनके चरित्र का निर्माण करने के लिए अयोग्य हैं। फ्रांस की इमारतों की तर्ज पर बने इस कॉलेज का नाम देश के प्राचीन शिक्षण संस्थानों में शुमार है। यह स्कूल 700 एकड़ में बना है। वहीं यह दुनिया का एकमात्र स्कूल है, जिसे शाही युद्ध सम्मान से नवाजा गया है। बता दें कि 1845 में स्थापित ला मार्टिनियर कॉलेज की स्थापना मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन की वसीयत के अनुसार की गई थी। वहीं एक समय ऐसा भी था कि यहां पढ़ने वाले बच्चों ने ब्रिटिश सैनिकों की तरफ से भारतीय सैनिकों के खिलाफ मोर्चा खोला था। वहीं इस स्कूल में गदर एक प्रेमकथा, अनवर, रक्स, ऑलवेज कभी कभी और शतरंज के खिलाड़ी जैसी फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है।

1735 में फ्रांस के ल्योंन में जन्में क्लाउड मार्टिन फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी में फौजी थे, लेकिन नवाब आसफुद्दौला के कहने पर लखनऊ आ गए थे और इनके यहां नौकरी कर ली। बेशुमार दौलत कमाने के बाद उनकी ख्वाहिश थी कि एक स्कूल खोला जाए। जहां गरीब बच्चों को दाखिला दिया जाए और किसी विशेष जाति या धर्म के बच्चों को दाखिला न दिया जाए। इसलिए उनकी वसीयत के तहत, फ्रांस के ल्योन, कलकत्ता और लखनऊ में स्कूलों की स्थापना के लिए रूपयो आवंटित किए गए। अपनी वसीयत में क्लाउड मार्टिन ने यह भी कहा था कि लकपेरा या कॉन्स्टेंटिया हाउस में मेरा घर, घर से संबंधित सभी जमीन और परिसर और इसके चारों ओर की सभी जमीन, किसी को भी बेचा नहीं जाएगा या इससे अलग नहीं किया जाएगा।

उन्होंने रेजीडेंसी की दक्षिणी परिधि के एक अत्यंत उजागर हिस्से की रक्षा की, पैदल सेना और तोपखाने के हमलों का सामना किया और खनन कार्यों के अधीन थे। बड़ी कठिनाई का सामना करते हुए, उन्होंने करीब 5 महीनों तक द मार्टिनियर पोस्ट की कुशलतापूर्वक और सफलतापूर्वक रक्षा की। इस दौरान बच्चों की पढ़ाई भी जारी रही।