Saturday, February 22, 2025
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आखिर इस बार का G20 क्यों था खास?

इस बार का G20 सबसे खास माना जा रहा है! जी20 शिखर सम्मेलन का रविवार को समाप्त हो गया। इस तरह से बीते कई महीनों से राजधानी में इस सम्मेलन की तैयारियों को लेकर चल रही गतिविधियों पर विराम लग गया। अगर देखा जाए तो स्वतंत्र भारत में जी20 शिखर सम्मेलन के मेयार का पहले कभी कोई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित नहीं हुआ था।ये मानना होगा कि राजधानी दिल्ली को जी20 शिखर सम्मेलन भारत मंडपम के रूप में एक बहुत शानादार उपहार दे गया। ये अगले 50 सालों के लिए तो मुफीद रहने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 जुलाई को प्रगति मैदान में ‘भारत मंडपम’ का उद्‌घाटन किया था। माफ करें, इसकी विज्ञान भवन से तुलना नहीं की जा सकती जिधर पहले गुट निरपेक्ष सम्मेलन से लेकर राष्ट्रकुल सम्मेलन आयोजित होते रहे थे। भारत मंडपम की सुविधाओं के लिहाज से तुलना दुनिया के किसी भी श्रेष्ठ सभागार से की जा सकती है। भारत मंडपम को देखकर लगता है कि ये नये और समर्थ भारत का सशक्त प्रतीक है।

अगर गुजरे दौर के पन्नों को खंगाले तो हमें पता चलेगा कि आजाद भारत का पहला महत्वपूर्ण सम्मेलन 1956 में नई दिल्ली में यूनिस्को सम्मेलन हुआ था। उस सम्मेलन में आने वाले नुमाइंदों के ठहरने के लिए तब अशोक होटल बना था। यूनिस्को सम्मेलन का आयोजन विज्ञान भवन में हुआ था। विज्ञान भवन भी तब ही बना था। उसके बाद लगातार भारत में होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में अशोक होटल में मेहमान ठहरते और आयोजन विज्ञान भवन में होता। दिल्ली के पुराने लोगों को याद होगा कि अशोक होटल के बनने से पहले सारे चाणक्यपुरी एरिया में घनी झाड़ियां हुआ करती थीं। जयपुर पोलो ग्राउंड के आगे कुछ नहीं था। इधर तमाम एंबेसी तो साठ के दशक के आरंभ में ही बनने लगी थीं।

आप कह सकते हैं कि नई दिल्ली में 1983 में हुआ निर्गुट सम्मेलन भी यादगार रहा था। उसमें करीब छह दर्जन देशों के राष्ट्राध्यक्ष समेत 140 देशों के नुमाइंदों ने भाग लिया था। लेखक महेन्द्र वैद्य ने उसे राजधानी के एक मशहूर अखबार के लिये कवर किया था। वे बताते हैं कि निर्गुट सम्मेलन की मेजबानी भारत को इसलिये करनी पड़ी थी क्योंकि इराक ने मेजबानी करने से कुछ माह पहले हाथ खड़े कर दिये थे। इसलिये मेजबानी भारत ने संभाली थी। निगुर्ट सम्मेलन के सफल आयोजन का श्रेय़ विदेश मंत्रालय ते तेज तर्रार अफसरों जैसे एम.के. रस्गोत्रा, नटवर सिंह, मोहम्मद हामिद अंसारी और जे.एन. दीक्षित को जाता है। उसमें क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो, पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक, फिलीस्तीन लिबरेशन आर्गेनाइजेशन पीएलओ के नेता यासर अराफात भी पधारे थे।

निर्गुट सम्मेलन में भाग लेने के लिए आने वाले राष्ट्राध्यक्षों की कारों के काफिलें एयरपोर्ट से शांतिपथ, तीन मूर्ति, साउथ एवेन्यू, विजय चौक, मदर टेरेसा क्रिसेंट, सरदार पटेल मार्ग, पंचशील मार्ग, सफदरजंग रोड और विज्ञान भवन के आसपास रहे थे। जी20 में काफिले प्रगति मैदान तक जाते रहे क्योंकि वहां पर ही भारत मंडपम है। चूंकि निर्गुट सम्मेलन को बहुत मारामारी में आयोजित करना पड़ा था इसलिये तब राजधानी में कोई बड़ा निर्माण तो नहीं हुआ था। निर्गुट सम्मेलन के चंदेक महीनों के बाद 23-29 नवंबर, 1983 तक नई दिल्ली में राष्ट्रकुल सम्मेलन आयोजित हुआ। उसमें 42 राष्ट्रकुल देशों के राष्ट्राध्यक्ष आये थे। उनमें ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मारर्गेट थैचर प्रमुख थीं। उसमें अमेरिकी फौजों के ग्रेनेडा में घुसने पर चर्चा हुई थी। सम्मेलन के अंतिम तीन दिन राष्ट्रकुल देशों के नेता घूमने के लिये गोवा गये थे।

भारत सरकार की पहल पर सन 2018 में आसियान सम्मेलन का आयोजन हुआ। उसका एक प्रतीक तुगलक क्रिसेंट में है। वहां पर भारत-आसियान मैत्री पार्क का उ‌द्‌घाटन तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने किया था। आसियान को दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन भी कहा जाता है। इसके सदस्य थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, ब्रूनेई, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया और म्यांमार। आसियान पार्क में इन देशों के प्रतीक मौजूद हैं।

भारत की अफ्रीकी देशों से घनिष्ठ संबंध बनाने की नीति के चलते राजधानी में साल 2015 में भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। उसमें 50 से अधिक अफ्रीकी देशों के नेता मौजूद थे। तब राजधानी के न्याय मार्ग से चंदेक कदमों पर स्थित घाना के स्वतंत्रता आंदोलन के शिखर नेता क्वामे नकरूमा मार्ग के करीब इंडो-अफ्रीका फ्रेंडशिप रोज़ गॉर्डन स्थापित किया गया था। तो राजधानी में लगातार अहम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होते रहे हैं। पर जी20 शिखर सम्मेलन से खास और महत्वपूर्ण सम्मेलन कभी नहीं हुआ। इसकी यादें देर तक रहने वाली हैं।

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