मारबर्ग संक्रमण आउटब्रेक को लेकर अलर्ट! जानिए क्या है?

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कोरोनावायरस के बाद अब कई प्रकार के संक्रमण सामने आते जा रहे हैं! दुनियाभर में कोरोना के जारी संकट के बीच अफ्रीका के कुछ हिस्सों में एक नए वायरस का प्रकोप देखने को मिल रहा है। घाना में मारबर्ग संक्रमण के मामले सामने आने के बाद इसे प्रकोप के तौर पर  घोषित किया गया है। मारबर्ग संक्रमण इबोला की ही तरह होता है जिसके कारण गंभीर रोग विकसित होने का खतरा हो सकता है।मारबर्ग वायरस रोग (एमवीडी) जिसे मारबर्ग हेमोरेजिक फीवर के रूप में भी जाना जाता है, यह इंसानों में अत्यंत घातक बीमारी का कारण बनती है। इस महीने की शुरुआत में  घाना में दो लोगों में मारबर्ग वायरस के कारण होने वाले रोग की पुष्टि की गई थी, दोनों की ही अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई है।पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्र के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि एहतियात के तौर पर अभी 98 लोगों को संदिग्ध मानकर क्वारंटीन किया गया है। डब्ल्यूएचओ के अफ्रीका के निदेशक डॉ मात्शिदिसो मोएती कहते हैं, मारबर्ग की चुनौतियों को लेकर अफ्रीकी देशों को विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है। घाना ने जिस तरह से शुरुआत में ही कदम उठाते हुए इसे प्रकोप के तौर पर घोषित कर दिया है, यह अच्छा कदम हैं। इस घातक संक्रमण पर अगर समय रहते रोकथाम न की जाए तो यह बड़े खतरे का कारण बन सकता है।

वायरस के बारे में जानिए

मारबर्ग वायरस के कारण मारबर्ग वायरस डिजीज (एमवीडी) का खतरा होता है, इसकी मृत्युदर 88 फीसदी से अधिक हो सकती है। साल 1967 में जर्मनी के मारबर्ग और फ्रैंकफर्ट में सबसे पहले इस वायरस का प्रकोप देखा गया था। यह वायरस भी इबोला परिवार का ही सदस्य है। दोनों रोग दुर्लभ हैं और उच्च मृत्यु दर के साथ तेजी से प्रकोप का कारण बन सकते हैं।कोरोना की ही तरह यह भी चमगादड़ों के स्रोत के कारण होने वाली बीमारी है। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के विशेषज्ञों के अनुसार संक्रमित जानवर से इंसानों में वायरस के क्रॉसओवर के बाद इसका एक से दूसरे व्यक्ति में संचरण हो सकता है।

सीडीसी के मुताबिक संक्रमितों के संपर्क में आने के बाद इसका इनक्यूबेशन पीरियड 2-21 दिनों को होता है।  इनक्यूबेशन पीरियड का मतलब वायरस से पीड़ित इंसान में लक्षण आने में लगने वाला समय है। इसमें संक्रमितों में  बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द और मायलगिया जैसे लक्षण दिख सकते हैं। समय पर पहचान और उपचार न होने पर लक्षणों के गंभीर रूप लेने का खतरा रहता है जिसमें  पीलिया, अग्न्याशय की सूजन, तेजी से वजन कम होने, झटके आने, लिवर फेलियर और बड़े पैमाने पर रक्तस्राव का खतरा रहता है। एमवीडी का निदान थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसके कई लक्षण अन्य संक्रामक रोगों जैसे मलेरिया या टाइफाइड बुखार या वायरल हेमेरेजिक फीवर के समान होते हैं।

कैसे फैलता है यह संक्रमण?

विशेषज्ञों के मुताबिक संक्रमित व्यक्ति के रक्त या शरीर के तरल पदार्थ (मूत्र, लार, पसीना, मल, उल्टी, स्तन का दूध और वीर्य) के संपर्क में आने से इसका संक्रमण अन्य लोगों में होने का जोखिम होता है। रिपोर्ट्स से पता चलता है कि संक्रमित के कपड़े, बिस्तर और चिकित्सा उपकरण के प्रयोग से भी संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। विशेषज्ञ संक्रमित लोगों से यौन संबंध रखने को मना करते हैं इससे दूसरे के संक्रमित होने का खतरा अधिक रहता है।

सीडीसी विशेषज्ञों का कहना है कि मारबर्ग वायरस के कारण होने वाले रोग का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। उपचार के तौर पर रोगी में तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स को संतुलित करने, ऑक्सीजन और रक्तचार की स्थिति को नियंत्रित रखने और खून की कमी न होने देने पर जोर दिया जाता है। 

एमवीडी के खतरे से बचाव के लिए समय रहते इसके लक्षणों का निदान किया जाना सबसे आवश्यक है। रोगी के साथ सीधे शारीरिक संपर्क से बचना चाहिए। यदि आप प्रभावित क्षेत्र में रह रहे हैं तो सावधानियों में सुरक्षात्मक गाउन, दस्ताने और मास्क पहनना अनिवार्य माना जाता है।

संक्रमित व्यक्ति को सख्त क्वारंटीन में रखते हुए उसके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली चीजों के उचित रखरखाव को ध्यान में रखकर संक्रमण बढ़ने के खतरे को रोका जा सकता है। मारबर्ग वायरस डिजीज के लिए न तो अब तक कोई विशिष्ट उपचार है और न ही बचाव के लिए वैक्सीन।एमवीडी के खतरे से बचाव के लिए समय रहते इसके लक्षणों का निदान किया जाना सबसे आवश्यक है। रोगी के साथ सीधे शारीरिक संपर्क से बचना चाहिए। यदि आप प्रभावित क्षेत्र में रह रहे हैं तो सावधानियों में सुरक्षात्मक गाउन, दस्ताने और मास्क पहनना अनिवार्य माना जाता है।