Wednesday, January 15, 2025
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बहाली के 48 घंटों में फिर Ex हो गए आलोक वर्मा!

सीबीआई में एक बार फिर उत्तल पुथल देखने को मिली है! घूसखोरी और भ्रष्‍टाचार रोकने की नीयत से बनी सीबीआई अक्‍सर खुद घिर जाती है। विपक्ष लगभग रोज ही सीबीआई के राजनीतिक इस्‍तेमाल का आरोप लगाता है। न्‍यायपालिका CBI को ‘पिंजड़े में बंद तोता’ बता चुकी है। बाहरी आरोप कम थे जो करीब साढ़े तीन साल पहले, देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के दो सबसे बड़े अफसर आपस में उलझ गए। अक्‍टूबर 2017 से लेकर जनवरी 2019 तक, करीब सवा दो साल CBI दो आईपीएस अधिकारियों की खींचतान में पिसकर रह गई। विवाद के केंद्र में एक नाम था IPS आलोक वर्मा का। 14 जुलाई 1957 को जन्‍मे वर्मा का सीबीआई में स्पेशल डायरेक्टर से विवाद काफी सुर्खियों में रहा था। दोनों ने भ्रष्टाचार के एक मामले की जांच में एक दूसरे पर घूसघोरी और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे। वर्मा और अस्‍थाना की लड़ाई में CBI की साख गिरती चली गई। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था। आखिर में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता वाली समिति ने वर्मा को पद से हटाने का फैसला किया।आलोक वर्मा सीबीआई के पहले ऐसे निदेशक रहे जिन्‍हें दो साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा करने से पहले पद से हटाया गया। अस्‍थाना अब दिल्‍ली पुलिस के कमिश्‍नर हैं। खास बात यह भी है कि सीबीआई में जाने से पहले आलोक वर्मा खुद भी दिल्ली पुलिस कमिश्नर रह चुके थे।

19 जनवरी, 2017 को सरकार ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक नियुक्‍त किया। उनका नाम एक तीन सदस्‍यीय सिलेक्‍शन पैनल ने क्लियर किया था। इस पैनल की अध्‍यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे थे और तत्‍कालीन प्रधान न्‍यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे सदस्‍य थे।

कौन है आलोक वर्मा?

पूरे विवाद की शुरुआत यहीं से होती है। सीबीआई में राकेश अस्‍थाना को स्‍पेशल डायरेक्‍टर बनाकर भेजा जाता है। पांच सदस्‍यीय केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के सामने वर्मा ने अस्‍थाना के प्रमोशन का विरोध किया था। नवंबर 2017 में वरिष्‍ठ वकील प्रशांत भूषण ने कॉमन कॉज नाम के NGO की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अस्‍थाना की नियुक्ति को चुनौती दी। SC ने याचिका खारिज कर दी।राकेश अस्‍थाना ने शिकायत की कि वर्मा उनके काम में दखल दे रहे हैं, अपुष्‍ट तथ्‍यों के आधार पर उनकी बदनामी करा रहे हैं। इसके बाद CVC ने जांच शुरू की। अस्‍थाना ने यह भी आरोप लगाया कि वर्मा ने 2017 में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ पटना में उस वक्‍त छापेमारी न करने को कहा जब टीमें धावा बोलने को एकदम तैयार थीं। अस्‍थाना ने पहले सरकार को अपनी शिकायत भेजी थी। सरकार ने शिकायत CVC को बढ़ा दी।4 अक्‍टूबर को सीबीआई ने कुरेशी केस में गवाह कारोबारी सतीश सना का बयान दर्ज किया। सना ने मैजिस्‍ट्रेट के सामने दावा किया कि उसने 10 महीनों के दौरान अस्‍थाना को 3 करोड़ रुपये दिए। 15 अक्‍टूबर को सीबीआई ने अस्‍थाना के खिलाफ सना से घूस लेने का केस दर्ज किया। सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने कैबिनेट सेक्रेटरी को चिट्ठी में आरोप लगाया कि राकेश अस्‍थाना ने मीट एक्‍सपोर्टर मोइन कुरेशी से जुड़े केस में एक आरोपी से घूस ली है।

पीएम मोदी ने दोनों अधिकारियों को तलब किया। कथित रूप से पीएम ने दोनों अधिकारियों से मनमुटाव दूर करने को कहा क्‍योंकि विवाद से सीबीआई की साख धूमिल हो चुकी थी। 22 अक्‍टूबर को सीबीआई ने सना का ‘बयान बदलने’ के आरोप में डेप्‍युटी एसपी देवेंद्र कुमार को अरेस्‍ट किया।

अगले दिन कुमार अपने खिलाफ दर्ज FIR दर्ज कराने हाई कोर्ट पहुंच गए। अस्‍थाना ने भी हाई कोर्ट का रुख किया। वह चाहते थे कि सीबीआई को उनके खिलाफ ऐक्‍शन न लेने का निर्देश दिया जाए। दिल्‍ली हाई कोर्ट ने दोनों याचिकाओं पर CBI से जवाब तलब करते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।

24 अक्‍टूबर को वर्मा और अस्‍थाना, दोनों को छु्ट्टी पर भेज दिया गया। एम नागेश्‍वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बनाया गया। अस्‍थाना केस की जांच कर रही टीम के अधिकारियों को इधर-उधर कर दिया गया। वर्मा सरकार के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी को आदेश में वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद पर लौटने की इजाजत दे दी। हालांकि कोर्ट ने वर्मा की भूमिका केवल रूटीन काम तक सीमित कर दी थी। SC का यह आदेश केंद्र सरकार और CVC के लिए बड़ा झटका था।9 जनवरी (बुधवार) को CBI चीफ आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के फैसले की समीक्षा करने तीन सदस्‍यीय सिलेक्‍शन कमिटी की मुलाकात हुई। बैठक बेनतीजा रही क्‍योंकि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कुछ विशेष जानकारियां चाहते थे। वर्मा बुधवार को ऑफिस आए तो उन्‍होंने अंतरिम निदेशक रहे एम नागेश्‍वर राव के ज्‍यादातर ट्रांसफर ऑर्डर्स रद्द कर दिए।

गुरुवार को सिलेक्‍शन कमिटी फिर बैठी। प्रधानमंत्री मोदी और जस्टिस एके सीकरी (CJI की ओर से नामित) और खड़गे की कमिटी ने 2-1 से वर्मा को हटाने का फैसला किया। सरकारी सूत्रों ने मीडिया से कहा कि कमिटी को लगा कि आरोपों की विस्‍तृत जांच जरूरी है। पीएम मोदी और जस्टिस सीकरी वर्मा को हटाने के पक्ष में थे जबकि खड़गे ने विरोध करते हुए असहमति नोट दिया।

पेंशन, रिटायरमेंट बेनेफिट्स से हाथ धो बैठेंगे वर्मा?

वर्मा को 10 जनवरी 2019 को पद से हटा दिया गया था। उन्‍हें दमकल सेवा, सिविल डिफेंस एवं होमगार्ड में महानिदेशक बनाया गया था। हालांकि, वर्मा ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने कहा था कि वह 31 जुलाई 2017 को 60 साल की उम्र पूरी कर चुके हैं, इसलिए उन्‍हें रिटायर्ड मान लिया जाए। पिछले साल अगस्‍त में गृह मंत्रालय (MHA) ने वर्मा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की। CBI के नोडल मंत्रालय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) को पत्र लिखा गया। अगर इस कार्रवाई को मंजूरी मिलती है तो वर्मा के पेंशन व अन्‍य रिटायरमेंट फायदों पर अस्‍थायी या पूर्ण रोक लग सकती है।

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