हथियार बेचकर कमा रहा है अमेरिका लाखों डॉलर!

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जब भी देश में कभी युद्ध होता है तो अमेरिका उसका फायदा जरूर उठाता है! रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन ताइवान तनाव के कारण पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची हुई है। हर देश अपनी सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए भारी मात्रा में हथियारों की खरीद कर रहा है। यही कारण है कि हथियार बेचने वाले देशों की चांदी हुई है। इसका सबसे बड़ा फायदा अमेरिका उठा रहा है। दरअसल, हथियारों के व्यापार में नंबर दो और तीन पर काबिज देश या तो युद्ध में उलझे हुए हैं या फिर युद्ध की दहलीज पर खड़े हैं। ऐसे में उनके सामने खुद के लिए हथियारों के स्टॉक को बनाए रखने की चुनौती है। हालांकि, ऐसा अमेरिका के साथ बिलकुल नहीं है। वह वैश्विक तनाव के बीच अपने दोस्त देशों को अरबों डॉलर के हथियार लगातार बेंच रहा है। जापान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, एस्टोनिया और इंडोनेशिया ऐसे देश हैं, जिन्होंने पिछले एक से डेढ़ महीने के अंदर अमेरिका से हथियारों की डील को फाइनल किया है। इन हथियारों की बिक्री से अमेरिका को लगभग 30 अरब डॉलर का फायदा होने वाला है।

चीन से जारी तनाव के बीच जापान ने पिछले महीने ही अमेरिकी विदेश विभाग से 150 हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें खरीदने की मंजूरी पाई थी। इन मिसाइलों को अमेरिका से ही खरीदे हुए एफ-35 लड़ाकू विमानों पर तैनात किया जाएगा। 293 मिलियन के सौदे का प्रमुख ठेकेदार रेथियॉन टेक्नोलॉजीज है। जापान इस हथियार निर्माता कंपनी से एआईएम-120 अमराम मिसाइलों को खरीद रहा है। अमेरिका ने इस डील को मजूरी देते हुए कहा कि जापान की मातृभूमि और वहां तैनात अमेरिकी कर्मियों की रक्षा करके वर्तमान और भविष्य के खतरों को पूरा करने के लिए जापान की क्षमता में सुधार होगा। एआईएम-120 अमराम अडवांस मीडियम रेंज एयर टू एयर मिसाइल है। यह बियॉन्ड विजुअल रेंज मिसाइल है, जिसे रात के समय भी ऑपरेट किया जा सकता है। इस मिसाइल की लंबाई 12 फीट है, जिसकी एक यूनिट की कीमत 3 लाख से 4 लाख डॉलर है।

जापान को मंजूरी देने के दिन ही अमेरिका ने सिंगापुर को भी 630 मिलियन डॉलर में लेजर-गाइडेड बम और विभिन्न अन्य युद्ध सामग्री बेंचने की अनुमति दी। इसके चार दिन पहले ऑस्ट्रेलिया ने लॉकहीड मार्टिन से 235 मिलियन डॉलर में 80 हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों की खरीद की मंजूरी पाई थी। इस बीच दक्षिण कोरिया ने भी 130 मिलियन डॉलर में अपने एमएच-60आर हेलीकॉप्टरों के साथ पनडुब्बी रोधी युद्ध के लिए उपयोग करने के लिए डील को फाइनल किया था। विदेशों से आ रही हथियारों की डिमांड को देखते हुए पेंटागन की विदेशी सैन्य बिक्री की देखरेख करने वाली ब्रांच डिफेंस सिक्योरिटी कॉर्पोरेशन एजेंसी इन दिनों काफी व्यस्त है। इस साल के पहले सात महीनों ने एजेंसी ने 44 सौदों को मंजूरी दी है। इसमें जर्मनी को 8.4 अरब डॉलर में 35 एफ-35 विमानों की संभावित बिक्री भी शामिल है। हालांकि, पिछले तीन साल में इस अवधि में 25, 43 और 40 सौदों को ही फाइनल किया था।

इस तरह की बिक्री के लिए बातचीत में महीनों लग जाते हैं। लेकिन वर्तमान में जारी संकट को देखते हुए कई देश हड़बड़ी में अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। यही कारण है कि वे बातचीत में महीनों बर्बाद करने के बजाए तुरंत के तुरंत डील को फाइनल कर रहे हैं। ऐसे में यह समय अमेरिकी रक्षा कंपनियों के लिए एक स्वर्णिम काल बन गया है। हालांकि, सुनहरा दौर एक चेतावनी के साथ आता है: आपूर्ति श्रृंखला की बाधाएं। लॉकहीड, रेथियॉन, बोइंग, नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन और जनरल डायनेमिक्स जैसी अमेरिका की लगभग सभी हथियार निर्माता कंपनियां पार्ट्स और लेबर के संकट से जूझ रही हैं। इन ऑर्डर्स को पूरा करने के लिए कंपनियों को कच्चा माल और ट्रेंड लेबर चाहिए, जो उनके पास नहीं है। पूरी दुनिया में ताइवान चिप का सबसे बड़ा निर्माता है, लेकिन चीन के साथ जारी तनाव के बीच वह अपनी पूरी क्षमता से आपूर्ति नहीं कर पा रहा है।

रैंड नेशनल सिक्योरिटी सप्लाई चेन इंस्टीट्यूट के निदेशक ब्रैडली मार्टिन ने निक्केई एशिया को बताया कि जब व्यवधान नहीं होता है, तो ऐसी डील हथियार निर्माता कंपनियों और उनके खरीदारों को समान रूप से लाभान्वित करता है। लेकिन, जब व्यवधान होता है, चाहें कारण कोई महामारी हो, प्राकृतिक आपदा हो या अंतररराष्ट्रीय संघर्ष, इनका व्यापर रूप से असर पड़ता है। COVID-19 और यूक्रेन युद्ध ऐसे ही व्यवधान हैं। ऐसे में अगर चीन ताइवान पर सैन्य दबाव बढ़ाता है तो इसे भी अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में शामिल किया जा सकता है। चीन अमेरिका हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर चिढ़ा हुआ है। यही कारण है कि उसने ताइवान को चारों तरफ से घेरकर बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास शुरू कर दिया है।