Thursday, February 6, 2025
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क्या दुनिया भर में छाये हुए है चीनी ड्रोन?

वर्तमान में दुनिया भर में चीनी ड्रोन छाये हुए हैं! चीन ने लद्दाख के गलवान संघर्ष के बाद से ही ऊंचाई वाले इलाकों में ड्रोन के इस्तेमाल को तेज कर दिया है। सितंबर 2020 में चीन ने स्वार्म ड्रोन के जरिए दूरदराज में सैनिकों को खाना पहुंचाने की ताकत का प्रदर्शन किया था। यह भारत को एक छोटा संदेश था कि खाना ले जाने वाले ड्रोन आसानी से विस्फोटक लेकर जा सकते हैं। इसके जवाब में भारतीय सेना ने भी 15 जनवरी 2021 को स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित ड्रोन सिम्युलेटेड ऑफेंसिव मिशन के साथ अपनी ड्रोन क्षमता को प्रदर्शित किया था। तब से, भारतीय सशस्त्र बलों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्वायत्त हथियार प्रणाली, क्वांटम टेक्नोलॉजीज, रोबोटिक्स, क्लाउड कंप्यूटिंग और एल्गोरिदम वारफेयर में भारी निवेश किया है। चीन दुनिया में सैन्य ड्रोन का बहुत बड़ा निर्यातक देश है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट एसआईपीआरआई के आंकड़ों के मुताबिक, चीन ने पिछले एक दशक में 17 देशों को 282 लड़ाकू ड्रोन दिए हैं। दुनिया भर की मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि चीनी सशस्त्र ड्रोन का इस्तेमाल सऊदी अरब, म्यांमार, इराक और पाकिस्तान जैसे देश अपने विरोधियों को कुचलने या सीमाओं के भीतर अशांति को खत्म करने के लिए कर रहे हैं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ड्रोन को युद्ध के हालात को बदलने में सक्षम हथियार बताया है। उन्होंने पिछले साल कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस के दौरान मानवरहित इंटेलीजेंस वारफेयर क्षमताओं के विकास में तेजी लाने का आह्वान भी किया था। सरकारी और प्राइवेट कंपनियों ने चीन को लड़ाकू ड्रोन में विश्व में अग्रणी बना दिया है।

युद्ध के मैदान पर चीनी छोटे ड्रोनों के प्रभुत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रूस और यूक्रेन के इस्तेमाल में आने वाले अधिकतर कामिकेज ड्रोन में चीनी कंपोनेंट भारी मात्रा में होते हैं। शेन्जेन स्थित चीनी कंपनी डीजेआई के पास छोटे ड्रोन बनाने में 70 फीसदी बाजार हिस्सेदारी है। चीन इन्हीं बाजार हिस्सेदारी का फायदा उठाकर दुनिया के बाकी देशों को अपने ड्रोन और उसके कंपोनेंट्स का निर्यात कर रहा है। अमेरिका ने अगले दो वर्षों के भीतर कई डोमेन में हजारों स्वायत्त प्रणालियों को तैनात करके चीन के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक रेप्लिकेटर कार्यक्रम का भी शुभारंभ किया है।

भारत सरकार ने 2022 में भारतीय ड्रोन निर्माताओं पर चीनी कंपोनेंट का उपयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार के प्रतिबंध के एक साल बाद भारत भले ही लड़ाकू ड्रोनों के मामले में चीन की बराबरी नहीं कर पा रहा हो, लेकिन उसके पास अपने हितों की रक्षा करने का माद्दा है। यूरेशियन टाइम्स से बात करते हुए भारतीय वायु सेना के रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन डॉ राजीव कुमार नारंग ने कहा कि मैं (चीन के साथ) संख्या से संख्या का मिलान नहीं करूंगा। लेकिन हम उस स्तर पर पहुंच गए हैं जहां हम अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं। उन्होंने इंडियाज़ क्वेस्ट फॉर यूएवी एंड चैलेंजेज नाम से एक किताब भी लिखी है। उन्होंने कहा कि हालांकि, हम अपनी सतर्कता को कम नहीं होने दे सकते। महत्वपूर्ण ड्रोन कंपोनेंट अभी भी भारत में नहीं बन रहे हैं और भारतीय सशस्त्र बलों को, वाणिज्यिक ड्रोन क्षेत्र के साथ मिलकर चीन की तरह ही इस पर काम करने की जरूरत है।

भारत सरकार ने घरेलू ड्रोन निर्माताओं का समर्थन करने के लिए नीतियां भी बनाई हैं। भारत ने 2023-24 में सैन्य आधुनिकीकरण के लिए 1.6 ट्रिलियन रुपये US$19.77 बिलियन अलग रखे हैं, जिसमें से 75 प्रतिशत घरेलू उद्योग के लिए आरक्षित है। भारतीय सशस्त्र बल, चीन की चाल से सीख लेते हुए, निजी कंपनियों को भी शामिल कर रहे हैं। भारतीय वायु सेना आईएएफ ने हाल ही में नई दिल्ली स्थित स्टार्ट-अप, वेदा डिफेंस सिस्टम को 200 लंबी दूरी के स्वार्म ड्रोन बनाने के लिए 3 अरब रुपये 36 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट दिया है। छोटे ड्रोन एक साथ झुंड बनाकर अपनी संख्या से किसी भी एयर डिफेंस को मात दे सकते हैं।

भारत पहले से ही ड्रोन से खतरों का सामना कर रहा है। उसका पश्चिमी पड़ोसी देश पाकिस्तान पहले से ही ड्रोन के माध्यम से सीमा पार हथियारों, ड्रग्स और नकली मुद्रा की तस्ककरी कर रहा है। 27 जून 2021 को जम्मू हवाई अड्डे पर हथियारबंद ड्रोन से हमला भी भारत के लिए ड्रोन से पैदा होने वाले खतरों को रेखांकित करता है। पाकिस्तान और दो प्रमुख यूएवी निर्माताओं चीन और तुर्की के बीच बढ़ते सहयोग ने खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है। ऐसे हालात में भारत तेजी से अपने ड्रोन उद्योग को प्रोत्साहित कर रहा है।

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