क्या भारतीय नर्सो की दुनिया भर में है मांग?

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भारतीय नर्सों की दुनिया भर में मांग है! भारत में प्रशिक्षित नर्सों की मांग ब्रिटेन, माल्टा, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, नीदरलैंड, फिनलैंड और सऊदी अरब में सबसे ज्यादा है। दुनिया में फिलीपींस के बाद भारतीय नर्सें ही सबसे ज्यादा काम कर रही हैं। यानी भारत को नर्सों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक कहना गलत नहीं होगा। इसके पीछे ज्यादा वेतन और साफ सुथरी जीवनशैली भी एक कारण है। केरल सरकार के विदेशी और रोजगार संवर्धन सलाहकार ओडीईपीसी के अनुसार विदेशों में नर्सों की मांग सबसे ज्यादा एम्बुलेंस सर्विस, आपातकालीन सेवा, मानसिक स्वास्थ्य और बुजुर्ग रोगियों की सेवा में है। ओडीईपीसी के मुताबिक, भारत के सरकारी अस्पतालों में एक एमबीबीएस डॉक्टर का शुरुआती वेतन एक से 1.25 लाख रुपए महीने है तो विदेश जाकर भारतीय नर्सें इनसे ज्यादा कहीं ज्यादा कमा रही हैं।

अस्पतालाें में नर्सिंग को लेकर ठेका प्रथा प्रचलित है। अधिकांश अस्पताल कुछ समय खासतौर पर कोरोना के मामले बढ़ने पर, नर्सों को नियुक्ति देते हैं और मामले कम होते ही उन्हें नौकरी से निकाल देते हैं। प्राइवेट अस्पतालों में नर्सिंग अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के भी आदेश हैं लेकिन सरकारें अब तक इस पर संज्ञान नहीं ले रही हैं। नर्सों को एक बेहतर माहौल देने के लिए सरकारों को प्रयास करना चाहिए।  भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) की साल 2022 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सालाना नर्सिंग स्कूलों में 2 लाख से ज्यादा नर्सिंग कोर्स की सीट निकलती हैं। ज्यादातर नर्स प्रशिक्षण के बाद विदेश चली जाती हैं। भारत के अस्पतालों में करीब 24 लाख नर्सिंग स्टाफ की जरूरत है। जबकि 7 लाख से ज्यादा भारतीय नर्सें विदेशों में काम कर रही हैं।

ट्रेंड नर्सेस एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, देश में सालाना नर्सिंग पास करने वालों में 40 से 50% लड़कियां दो साल के अंदर ही करियर बनाने के लिए विदेश चली जाती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण उन्हें मिलने वाली सैलरी है। दिल्ली में नर्स की सैलरी 25 हजार रुपए, जबकि छोटे शहरों में उन्हें आठ से 10 हजार रुपए ही मिलते हैं। वहीं, विदेशों में भारतीय नर्सें 2 से 2.5 लाख तक वेतन लेती हैं। मौजूदा समय में, देश में पांच हजार से ज्यादा नर्सिंग कॉलेज हैं। यहां लगभग 2.85 लाख नर्सिंग सीट हैं जबकि एमबीबीएस सीटें अब बढ़कर एक लाख छह हजार तक पहुंची हैं। अगर भौगोलिक स्थिति के आधार पर नर्सिंग कॉलेज की बात करें तो देश के 13 राज्यों में एक भी सरकारी कॉलेज नहीं है। बिहार जैसे बड़ी आबादी राज्य में केवल दो सरकारी नर्सिंग कॉलेज हैं। यूपी में 10, राजस्थान व एमपी में 11-11 सरकारी नर्सिंग कॉलेज हैं। वहीं, झारखंड में केवल एक सरकारी नर्सिंग कॉलेज है।

उत्तर प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों को रेटिंग दी जा रही है ताकि नए छात्र छात्राएं यह तय कर सकें कि कौन सा कॉलेज उनके लिए उचित है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता और नर्सिंग प्रशिक्षण में भी सुधार आएगा।मौजूदा समय में, देश में पांच हजार से ज्यादा नर्सिंग कॉलेज हैं। यहां लगभग 2.85 लाख नर्सिंग सीट हैं जबकि एमबीबीएस सीटें अब बढ़कर एक लाख छह हजार तक पहुंची हैं। अगर भौगोलिक स्थिति के आधार पर नर्सिंग कॉलेज की बात करें तो देश के 13 राज्यों में एक भी सरकारी कॉलेज नहीं है। बिहार जैसे बड़ी आबादी राज्य में केवल दो सरकारी नर्सिंग कॉलेज हैं। यूपी में 10, राजस्थान व एमपी में 11-11 सरकारी नर्सिंग कॉलेज हैं। वहीं, झारखंड में केवल एक सरकारी नर्सिंग कॉलेज है। यूपी सरकार ने हाल ही में नर्सिंग के लिए मिशन निरामया: भी शुरू किया है। यूपी स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार बताते हैं, मिशन निरामया: के तहत नर्सिंग शिक्षा को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय मॉडल विकसित किया जा रहा है ताकि हमारी नर्सें दुनिया के दूसरे देशों में जाकर भी अपनी सेवाएं दे सकें। प्रदेश में एक से दो साल में कई नए कॉलेज भी शुरू होंगे।

12 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगेल (ब्रिटेन) के जन्मदिवस को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्हें मॉडर्न नर्सिंग की जनक कहा जाता है।मौजूदा समय में, देश में पांच हजार से ज्यादा नर्सिंग कॉलेज हैं। यहां लगभग 2.85 लाख नर्सिंग सीट हैं जबकि एमबीबीएस सीटें अब बढ़कर एक लाख छह हजार तक पहुंची हैं। अगर भौगोलिक स्थिति के आधार पर नर्सिंग कॉलेज की बात करें तो देश के 13 राज्यों में एक भी सरकारी कॉलेज नहीं है। बिहार जैसे बड़ी आबादी राज्य में केवल दो सरकारी नर्सिंग कॉलेज हैं। यूपी में 10, राजस्थान व एमपी में 11-11 सरकारी नर्सिंग कॉलेज हैं। वहीं, झारखंड में केवल एक सरकारी नर्सिंग कॉलेज है। 16 साल की उम्र से ही जनसेवा शुरू करने वालीं फ्लोरेंस ने 1853 में लंदन में महिलाओं के लिए अस्पताल खोला। क्रीमिया युद्ध में घायल सैनिकों की उन्होंने देखभाल की। रात में लालटेन लेकर मरीजों की देखभाल करने जाती थीं। इसलिए 1856 में युद्ध से वापस आने पर इन्हें लेडी विद द लैंप भी कहा जाने लगा।