वर्तमान में धर्म के नाम पर कत्लेआम हो रहे हैं! मुंबई में एक कुएं में एक शख्स की लाश मिलती है। इस शख्स की किसी धारदार हथियार से गर्दन काटी गई थी और फिर लाश को कुंए में फेंक दिया गया था। पुलिस आसपास के थानों में गुमशुदा की तलाश की करती है, लेकिन ये पता नहीं चलता कि लाश किसकी है। इसके बाद लड़के के चेहरे को अखबार में प्रकाशित किया जाता है तो फिर उत्तर प्रदेश पुलिस, मुंबई पुलिस से संपर्क साधती है। पता चलता है लाश यूपी के बांदा के रहने वाले रमेश की है। अब शुरु होती है असली कहानी। वो कहानी जिसकी शुरुआत बांदा से हुई और खत्म मुंबई में जाकर हुई। कहानी प्यार की जिसका अंत सिर्फ नफरत नहीं बल्कि मौत था। ऐसी खतरनाक मौत जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाए। रमेश को गुलनाज नाम की लड़की से प्यार हो गया। दोनों का धर्म अलग, लेकिन कहते हैं न प्यार कहा धर्म-जात या फिर उम्र देखता है। प्यार तो बस सपने पिरोता है और साथ चाहता है।
रमेश और गुलनाज ने भी अपने प्यार को एक नाम देने की कोशिश की। गुलनाज और रमेश ने धर्म की दीवार तोड़कर एक होने का फैसला लिया और कोर्ट मैरिज कर ली। दोनों अपनी जिंदगी साथ जीना चाहते थे, फिर चाहे परिवार का साथ मिले या न मिले। दोनो बांदा में ही रहने लगे और छोटी-मोटी दुकान चलाकर अपना गुजारा करने लगे, लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया जब गुलनाज के परिवार के दिमाग में एक साजिश ने हिस्सा लिया, एक खूनी साजिश।
एक दिन गुलनाज के पास उसकी मां का मुंबई से फोन आया। गुलनाज की मां ने झूठा प्यार दिखाकर अपनी बेटी और दामाद को मुंबई बुला लिया। बस अब क्या था बेटी को लगा कि मां की ममता जाग गई है, लेकिन उसे क्या पता था ये एक फरेब है। मुंबई बुलाने के बाद गुलनाज के परिवार ने रमेश की हत्या कर दी। उसकी गर्दन को काट दिया गया और लाश को कुंए में फेंक दिया गया।
गुलनाज परेशान थी कि पति कहा चला गया है। माता-पिता कुछ बताने को तैयार नहीं थे, वो पुलिस के पास जाना चाहती थी। बस इस बात ने गुलनाज के माता-पिता को उसका भी दुश्मन बना दिया। माता-पिता कसाई बन गए और अपनी बेटी को भी मौत के घाट उतार दिया। रस्सी से उसका गला दबाकर उसकी लाश को जंगल में फेंक दिया। दो कत्ल कर दिए गए, सिर्फ इसलिए क्योंकि ये शादी इंटर रिलिजन थी। रमेश और गुलनाज को प्यार की इतनी भारी कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन क्यों? धर्म और जाति के खिलाफ जाकर जब लड़के-लड़कियां शादी करते हैं तो उन्हें मौत दे दी जाती है। पेरेंट्स अपने ही बच्चों के दुश्मन बन जाते हैं।
अब ये केस पूरी तरह से साफ हो चुका है। माता-पिता के अलावा गुलनाज का भाई सलमान भी इस हत्या में शामिल है। मुंबई पुलिस ने मामले में गुलनाज के भाई सलमान और पिता रईसुद्दीन खान से पूछताछ की। दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। यहि नहीं आपको बता दें कि मुस्लिम लीग द्वारा दीन के नाम पर भीड़ का आयोजन किया गया था, मुस्लिम पुलिसकर्मी, प्रशासन और सैन्यकर्मियों ने हिंदुओं और सिखों के नरसंहार में मदद की। कामोके हत्याकांड में 5000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजे जाने का हवाला देकर ले जाया गया, पराचिनार हत्याकांड में 1,000, गुजरात हत्याकांड में 2,500 से 3,000 और इनमें से सबसे वीभत्स शेखूपुरा का हत्याकांड, इसमें 15,000 लोगों को हत्या की गई थी, लड़कियों के साथ दुष्कर्म किया गया और उनके अपहरण हुए। शराकपुर हत्याकांड, गुजरांवाला हत्याकांड, मुजफ्फराबाद हत्याकांड और मीरपुर-कोटली हत्याकांड जैसी अन्य घटनाएं भी इनमें शामिल हैं।
कितने हिंदुओं की हत्या की गई, इसकी संख्या आज भी किसी को नहीं पता है। परंतु सबसे वीभत्स शेखूपुरा हत्याकांड था। इसकी याद भर से रूह कांप जाती है। यहां उसका संक्षिप्त विवरण है। शेखूपुरा के इतिहास में कभी भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ था। इसे गैर-मुसलमानों का मजबूत गढ़ माना जाता था। इस शहर में हिंदुओं और सिखों की ठीकठाक आबादी थी। यह अलग बात है कि इस जिले में 68 प्रतिशत मुसलमान थे, 12 प्रतिशत हिंदू और 20 प्रतिशत सिख थे, लेकिन इस जिले में सिख समुदाय सबसे महत्वपूर्ण और मजबूत स्थिति में था। वे इस जिले को अपना मजबूत गढ़ मानते थे। सिखों के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल ननकाना साहिब और सच्चा सौदा भी इसी जिले में थे।
15 अगस्त से पहले और बाद में मुसलमानों ने दृढ़ता से घोषणा की थी कि गैर-मुसलमानों के जीवन, सम्मान और संपत्तियों की रक्षा की जाएगी। पंजाब का विभाजन और इसके लिए अधिकारियों ने जो कदम उठाए, उनमें गैर-मुसलमान अधिकारियों को हटाए जाने को प्रमुख विकल्प के रूप में अपनाया गया। सभी मजिस्ट्रेट, निगमों के अधिकारी और पुलिस सब मुसलमान थे। यहां तक कि सीमा पर भी पूरी तरह मुसलमानों को तैनात कर दिया गया था। शेखूपुरा के इतिहास में 24 अगस्त 1947 को पहली बार मजिस्ट्रेट द्वारा कर्फ्यू लगाया गया था।रात के अंधेरे में एक घर को आग लगा दी गई थी और मुसलमान सैनिकों ने नजर रखी कि कौन-कौन आग बुझाने आता है ताकि उसे गोली मारी जा सके। उस रात दो लोगों को मार भी दिया गया। 26 अगस्त को दो बजे फिर कर्फ्यू लगा दिया गया। सभी पेट्रोल पंप मालिकों को प्रशासन ने सम्मन किया और आपातकाल का हवाला देकर उनसे सारा पेट्रोल ले लिया। हिंदू और सिख दुकानदारों के समीपवर्ती स्थित दुकानों के मुसलमान मालिकों से अपने दुकान खाली करने को कहा गया था।