वर्तमान में बिहार में शिक्षक और सियासत की कहानी चल रही है! बिहार में नियोजित शिक्षकों की मांग पर सीएम नीतीश कुमार ने शनिवार को महागठबंधन के नेताओं से विचार-विमर्श किया। राज्य के करीब चार लाख नियोजित शिक्षक बिना किसी परीक्षा में शामिल हुए सरकारी शिक्षक का दर्जा और सरकारी शिक्षकों की तरह वेतन की मांग कर रहे हैं। अपनी मांगों को लेकर वे धरना-प्रदर्शन भी करते रहे हैं। एक्सपर्ट का मानना है कि एकमुश्त चार लाख नियोजित शिक्षकों को सरकारी दर्जा मिलने पर सरकार के खजाने पर तकरीबन डेढ़ हजार करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा। नीतीश के साथ विमर्श में शामिल महागठबंधन के नेताओं का कहना है कि सीएम शिक्षकों को सरकारी दर्जा देने को तैयार हैं। भाजपा विधानमंडल दल के नेता विजय कुमार सिन्हा ने सरकार से मांग की है कि नियोजित शिक्षकों को न सिर्फ राज्यकर्मी का दर्जा मिलना चाहिए, बल्कि उन्हें नियमित शिक्षकों के समान वेतन और सुविधाएं भी दी जानी चाहिए। सीएम के साथ महागठबंधन के नेताओं की बैठक के बाद विभिन्न दलों के नेताओं के बयान से यही लग रहा है कि सरकार नियोजित शिक्षकों के साथ फिर से छलावा करने की तैयारी में है। सरकार की मंशा साफ रहती तो बैठक में शिक्षक संघ के नेताओं को भी बुलाया जाता। पर, उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। नियोजित शिक्षकों की मांग जायज है। यदि सरकार गंभीर है तो नियोजित शिक्षकों को सीधा समायोजित करे। नियमित शिक्षकों के समान ही उन्हें वेतन मिले। सेवा शर्तों को भी समान बनाया जाना चाहिए। विभागीय परीक्षा के आधार पर राज्यकर्मी का दर्जा देने की सरकार की मंशा उन्हें लटकाने-भटकाने के खेल का हिस्सा है।
सिन्हा का मानना है कि इस पूरे प्रकरण में नई शिक्षक नियमावली सरकार के षड्यंत्र का हिस्सा है। जब तक इसे रद्द कर बीपीएससी की आगामी परीक्षा पर रोक नहीं लगाई जाएगी, सरकार की नीयत पर संदेह बना रहेगा। नई नियमावली के तहत बहाली की प्रक्रिया को जारी रखते हुए सरकार नियोजित शिक्षकों पर दबाव बनाना चाहती है, ताकि नियोजित शिक्षकों की आधी अधूरी मांगें मान कर उन्हें ब्लैकमेल किया जा सके। नई शिक्षक नियमावली और बीपीएससी की परीक्षा रद्द कर सरकार को सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए, जिससे समस्या का समाधान हो सके।
सिन्हा का कहना है कि शिक्षकों की बहाली में पुरानी डोमिसाइल नीति को लागू करने की मांग जायज है। बिहार के अभ्यर्थियों के हित में सरकार को इस पर शीघ्र निर्णय लेना चाहिए। आंदोलन के दौरान सैकड़ों नियोजित शिक्षकों पर मुकदमे भी किए गए हैं। सरकार को उन पर मुकदमे वापस लेना चाहिए। उस अवधि के कटे वेतन का भुगतान भी किया जाना चाहिए। सरकार नियोजित शिक्षकों के साथ सौतेला व्यवहार करती रही है। नियोजित शिक्षकों के साथ-साथ वित्त रहित विद्यालय/ महाविद्यालय के शिक्षकों/ व्याख्याताओं के साथ भी सरकार को सम्मान पूर्ण व्यवहार करना चाहिए, ताकि राज्य की बदहाल शिक्षा व्यवस्था पटरी पर लाने में उनका उत्साहपूर्ण योगदान हो सके। बिहार में अच्छे शिक्षा मंत्री की भी जरूरत है। अभी बिहार के लोग देख रहे हैं कि शिक्षा विभाग कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया है।
दरअसल नियोजित शिक्षक उतना ही काम करते हैं, जितना सरकारी शिक्षक भी करते हैं। लेकिन दोनों के वेतन में अंतर है। बिहार में सरकारी शिक्षकों की जो नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है, उन्हें 44 हजार से 55 हजार के बीच वेतन मिलेगा, जबकि समान काम करने के बावजूद नियोजित शिक्षकों को 30 हजार से 45 हजार के बीच ही वेतन मिलेगा। कक्षा 1 से 5 तक के सरकारी शिक्षकों का मूल वेतन 25 हजार रुपए है। भत्ते और अन्य लाभ मिला कर उन्हें कुल वेतन 44,130 रुपए प्राप्त होगा। कक्षा 6 से 8 तक के सरकारी शिक्षकों को मूल वेतन 28 हजार और भत्ते वगैरह जोड़ कर 49,050 रुपए मिलेंगे। इसी तरह कक्षा 9 और 10 के सरकारी शिक्षकों को मूल वेतन 31,000 और भत्ते वगैरह जोड़ कर कुल वेतन 53,970 रुपए निर्धारित है। कक्षा 11 और 12 के शिक्षकों को मूल वेतन 32,000 रुपए और भत्ते जोड़ कर कुल वेतन 55,610 रुपए मिलेंगे।
नियोजित शिक्षक समान काम के लिए समान वेतन की मांग कर रहे हैं। यानी वे सरकारी शिक्षक की तरह वेतन और सेवा शर्तें चाहते हैं। नियोजित शिक्षकों के वेतन का भुगतान मानव संसाधन मंत्रालय और बिहार सरकार के अंशदान से होता है। प्राथमिक कक्षाओं के लिए नि.नियोजित शिक्षकों का वेतन 30-35 हजार है। माध्यमिक शिक्षकों को 35-40 हजार रुपये मिलते हैं। उच्च माध्यमिक शिक्षकों को 40 से 45 हजार के बीच वेतन दिया जाता है। इसी विसंगति को खत्म करने के लिए नियोजित शिक्षक सरकारी ओहदा मांग रहे हैं।