हाल ही में सरकार और न्यायपालिका आपस में भिड़ती हुई नजर आई! संवैधानिक अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए कलीजियम सिस्टम पर बहस तेज हो गई है। इसे लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव बढ़ा है। शुक्रवार को कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने कहा कि संविधान के लिए यह सिस्टम ‘एलियन’ है। उन्होंने कहा कि इसमें कमियां हैं और कोई उत्तरदायित्व नहीं है। इसी कार्यक्रम में पूर्व प्रधान न्यायाधीश (CJI) यूयू ललित ने भी शिरकत की। उन्होंने कहा कि ‘कलीजियम बेहतर सिस्टम है। अगर किसी सुधार की जरूरत हो तो वह किया जाना चाहिए। हालांकि ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि पूरे कलीजियम सिस्टम को ही बदलने की जरूरत पड़े।’ शुक्रवार को ही, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कलीजियम पर बात की। सीजेआई ने कहा कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं होती। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम संविधान के दायरे में रहकर काम करते हैं।
कानून मंत्री ने कलीजियम के बारे में कहा, ‘कोई भी चीज जो संविधान के लिए एलियन है, उसपर सवाल उठेंगे ही।’ रिजीजू ने कहा कि हम जजों की नियुक्ति के कलीजियम सिस्टम का सम्मान करते हैं, लेकिन बेहतर सिस्टम की गुंजाइश भी रखते हैं। अगर आप उम्मीद करते हैं कि सरकार बिना सोचे-समझे कलीजियम की सिफारिश पर हस्ताक्षर कर देगी, तो यह सही नहीं है।कलीजियम की सिफारिशों को रोककर रखने से जुड़े सवाल पर कानून मंत्री ने कहा, ‘अगर सरकार फाइलों पर बैठी रहती है तो आप फाइलें मत भेजिए।’ मंत्री ने कहा कि लोकतंत्र में कोई न्यायपालिका का अपमान नहीं कर सकता लेकिन आप यह अधिकार कहां से पाते हैं: आपको भारत के लोगों ने अधिकार दिया है, आपको ताकत भारत के संविधान से मिलती है।
रिजीजू ने कहा, ‘हमारा मकसद है कि न्याय सबको न्यायसंगत तरीके से दिया जाए। कुछ वकीलों को प्रति सुनवाई 30 से 40 लाख रुपये मिलते हैं। क्या एक आम आदमी इतनी फीस दे सकता है?’सीजेआई चंद्रचूड़ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के संविधान दिवस समारोह में शामिल हुए। उन्होंने कलीजियम के मसले पर कहा कि ‘कलीजियम के सभी जज, मैं भी, वफादार सैनिक हैं जो संविधान को लागू करते हैं। जब हम खामियों की बात करते हैं तो हमें पहले से मौजूद सिस्टम में ही रास्ता तलाशना होगा।’ सीजेआई ने कहा कि जुडिशरी में अच्छे लोगों को लाने और उन्हें अच्छी सैलरी देने से कलीजियम सिस्टम में सुधार नहीं होगा।संविधान दिवस हर साल 26 नवंबर को मनाया जाता है। 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने संविधान को अपनाया था। पहले इसे विधि दिवस के रूप में मनाया जाता था।
जजों की नियुक्ति के लिए कलीजियम बेहतर सिस्टम है। कलीजियम सिस्टम को कैसे बेहतर किया जा सकता है? इस सवाल पर जस्टिस ललित ने कहा कि कलीजियम सिस्टम सैद्धांतिक रूप से बिल्कुल सही है। कारण यह है कि जजों की नियुक्ति का जो एंट्री लेवल है, वह हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर होता है। हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति के बाद वह हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनते हैं और उन्हीं में से सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बनाए जाते हैं। यानी एंट्री लेवल बेहद महत्वपूर्ण है। एंट्री लेवल पर हाई कोर्ट का जस्टिस या तो निचली अदालत के जज को बनाया जाता है या फिर ऐडवोकेट को बनाया जाता है। निचली अदालत संबंधित हाई कोर्ट के अधीन काम करती है और ऐसे में निचली अदालत के जज की काबिलियत से हाई कोर्ट वाकिफ होता है।’
पूर्व सीजेआई ने अपनी बात समझाते हुए कहा, ‘मसलन, जब निचली अदालत के जज का कोई फैसला होता है तो उसके खिलाफ अपील में या रिविजन पिटिशन में हाई कोर्ट उन जजमेंट को देखता रहता है और इस तरह जज की काबिलियत से वाकिफ रहते हैं। वहीं अदालत के सामने पेश होने वाले वकीलों के बारे में भी हाई कोर्ट कलीजियम जानता है कि उनकी कानूनी समझ कैसी है और वे कैसी चीजों को पेश करते हैं। इन बातों से हाई कोर्ट वकीलों की काबिलियत को परख लेता है। हाई कोर्ट कलीजियम में चीफ जस्टिस और दो सीनियर जस्टिस होते हैं और वह नाम को अपनी परख के आधार पर चुनते हैं। फिर राज्य और केंद्र सरकार से उन नामों पर क्लियरेंस मिलता है जैसे आईबी आदि का क्लियरेंस होता है। यानी हर लेवल पर छानबीन होती है।’
पूर्व चीफ जस्टिस ललित ने कहा कि जहां तक कलीजियम सिस्टम और एनजेएसी को दोबारा देखने का सवाल है तो विचार विमर्श के लिए हमेशा रास्ता खुला रहना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कलीजियम सिस्टम के मामले में सुनवाई के लिए सहमति दी है और ऐसे में जहां भी सुधार की गुंजाइश है, वह होना चाहिए। कोई भी नया विचार कोर्ट के सामने आता है तो उसका स्वागत है, लेकिन साथ ही ललित ने कहा कि ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता कि कलीजियम सिस्टम को बदल दिया जाए। कुछ बातें हैं जिसे ठीक किया जा सकता है।