क्या बिहार में शिक्षक नियमों में हो रहे हैं परिवर्तन?

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बिहार में अब शिक्षक नियमों में परिवर्तन हो रहे हैं! शिक्षक नियुक्ति की नई नियमावली के विरोध के स्वर को अब लगता है कि न्यायालय का दरवाजा ही खटखटाना पड़ेगा। कानून विशेषज्ञों के अनुसार शराब बंदी, जातीय जनगणना और आनंद मोहन की रिहाई के मामले में कोर्ट की फटकार का बिहार सरकार सामना कर रही है। ऐसा हो सकता है कि शिक्षक नियुक्ति की नई नियमावली को लेकर फिर फटकार सुननी पड़े। वजह भी साफ है कि एक ओर शिक्षक नियुक्ति नियमावली का विरोध हो रहा है तो दूसरी ओर सरकार अपना काम कर रही है। नए नियमावली के तहत परीक्षा आयोजित करने और साक्षात्कार की तैयारी बीपीएससी से कराने में जुटी है। अब अभ्यर्थियों के लिए कोर्ट ही एक रास्ता बचा है, जहां उनके हिसाब से न्याय मिल सकता है। नियुक्ति नियमावली के तहत शिक्षक के पद के लिए बीपीएससी परीक्षा देना अनिवार्य कर दिया गया है। लिखित के साथ साक्षात्कार लेने की भी तैयारी में सरकार लगी है। बावजूद शिक्षकों को वेतनमान नहीं मिलने जा रहा है। राज्यकर्मी का नाम मिल जाएगा पर राज्यकर्मी की सुविधा नहीं।

दरअसल, सरकार के जिस फैसले को नियोजित शिक्षक तुगलकी फरमान कह रहे हैं, उसकी दिशा साफ है। वो ये है कि बीपीएससी से ही आयोजित परीक्षा से शिक्षकों का चयन होगा।नियमावली के तहत परीक्षा आयोजित करने और साक्षात्कार की तैयारी बीपीएससी से कराने में जुटी है। अब अभ्यर्थियों के लिए कोर्ट ही एक रास्ता बचा है, जहां उनके हिसाब से न्याय मिल सकता है। नियुक्ति नियमावली के तहत शिक्षक के पद के लिए बीपीएससी परीक्षा देना अनिवार्य कर दिया गया है। लिखित के साथ साक्षात्कार लेने की भी तैयारी में सरकार लगी है। बावजूद शिक्षकों को वेतनमान नहीं मिलने जा रहा है। राज्यकर्मी का नाम मिल जाएगा पर राज्यकर्मी की सुविधा नहीं। जिसमें अभ्यर्थी को लिखित और मौखिक परीक्षा के लिए तैयार रहना होगा। उधर, नियोजित शिक्षकों के हितैषी बिहार राज्य माध्यमिक संघ राज्य सरकार के इस फैसले के विरुद्ध खड़ी दिखती है। चरणबद्ध आंदोलन के पक्ष में भी है। मगर, वर्तमान सरकार को समर्थन दे रही वामदल के विधायक शिक्षक नियुक्ति की नई नियमावली को लेकर सरकार से समर्थन वापसी के मूड में दिखती नहीं है।

3.5 लाख नियोजित शिक्षकों का भविष्य तो फिलहाल अधर में है। अगर सरकार की नई नियमावली मान कर, ये बीपीएससी परीक्षा में शामिल होकर पास भी कर जाते हैं तो भी इन्हें वेतनमान यानी राज्यकर्मी का दर्जा नहीं मिलेगा।नियमावली के तहत परीक्षा आयोजित करने और साक्षात्कार की तैयारी बीपीएससी से कराने में जुटी है। अब अभ्यर्थियों के लिए कोर्ट ही एक रास्ता बचा है, जहां उनके हिसाब से न्याय मिल सकता है। नियुक्ति नियमावली के तहत शिक्षक के पद के लिए बीपीएससी परीक्षा देना अनिवार्य कर दिया गया है। लिखित के साथ साक्षात्कार लेने की भी तैयारी में सरकार लगी है। बावजूद शिक्षकों को वेतनमान नहीं मिलने जा रहा है। राज्यकर्मी का नाम मिल जाएगा पर राज्यकर्मी की सुविधा नहीं। बढ़ा वेतन जरूर मिलेगा। विरोध में वामपंथी संगठन हैं लेकिन सरकार से समर्थन वापसी की संभावना कम है। लेफ्ट पार्टियां सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने में लगी है। ऐसे में न्यायालय के अलावा नियोजित शिक्षकों के पास कोई रास्ता नहीं है।

नियोजित शिक्षक’ का बीज ही बिहार राज्य माध्यमिक संघ ने डाली है। ये ही नियोजन के जनक हैं। वैसे भी जिस संगठन या संघ में राजनीतिक लोगों का प्रवेश हो जाता है, वो संघ मर्यादा और अस्तित्व विहीन हो जाता है। ये लोग सांसद, विधायक और विधान पार्षद बनने के पीछे भागते रहते हैं। 2 अक्टूबर 1980 में पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने जिस सम्मान के साथ शिक्षकों की नियुक्ति की, वो 2023 तक की नियुक्ति में नहीं हो पाया।नियमावली के तहत परीक्षा आयोजित करने और साक्षात्कार की तैयारी बीपीएससी से कराने में जुटी है। अब अभ्यर्थियों के लिए कोर्ट ही एक रास्ता बचा है, जहां उनके हिसाब से न्याय मिल सकता है। नियुक्ति नियमावली के तहत शिक्षक के पद के लिए बीपीएससी परीक्षा देना अनिवार्य कर दिया गया है। लिखित के साथ साक्षात्कार लेने की भी तैयारी में सरकार लगी है। बावजूद शिक्षकों को वेतनमान नहीं मिलने जा रहा है। राज्यकर्मी का नाम मिल जाएगा पर राज्यकर्मी की सुविधा नहीं। जहां तक इन नियोजित शिक्षकों की समस्या का समाधान का सवाल है, वो न्यायालय से ही मिलेगा। बिहार राज्य माध्यमिक संघ की तरफ से कोई उम्मीद नहीं है। इसकी वजह भी है नियोजन इन्हीं की दिमाग की उपज थी। इन लोगों ने तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का संघ भवन में भरपूर स्वागत भी किया था। ये लोग सरकार के विरुद्ध क्या जायेंगे?