क्या बॉलीवुड में फेमस होते हैं विलन?

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बॉलीवुड में अधिकतर विलन ज्यादा फेमस होते हैं!इस साल की ब्लॉकबस्टर फिल्म एनिमल में रणबीर कपूर का बेरहम एंटी हीरो वर्जन चर्चा के साथ-साथ विवादों का कारण भी बना हुआ है। दर्शकों के एक बड़े तबके ने रणबीर और फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर सलामी दी है, जबकि एक वर्ग ऐसा भी है, जो नायक के इस खलनायक रूप की आलोचना कर रहा है। मगर ये पहली बार नहीं है, जब मेन स्ट्रीम हीरो ने फिल्मों में खलनायकी दिखाई और साथ में वाहवाही भी लूटी। इससे पहले भी लीजेंड कहे जाने वाले कलाकार नायक विरोधी किरदार कर चुके हैं। चालीस -पचास के दशक के देव-दिलीप-राज रहे हों या फिर महानायक अमिताभ बच्चन अथवा हो इंडस्ट्री के खान्स या फिर उनके बाद की स्टार पीढ़ी, हीरो हर बार अपनी मर्यादाओं को तोड़कर बैड मैन के रूप को साकार करने का मोह संवरण नहीं कर पाया है। हीरो के एंटी हीरो बनने पर एक पड़ताल। कहते हैं मर्यादा पुरोषत्तम राम की तमाम अच्छाइयों के बावजूद रावण का अपना आकर्षण रहा है। हमारी फिल्मों के नायकों ने भी हीरोइक चरित्रों को महिमामंडित करते-करते अपना रास्ता बदला और पर्दे बुरे आदमी की भूमिका को अंजाम दिया। 1943 में प्रदर्शित हुई किस्मत में जब अशोक कुमार ने एक युवा चोर के ग्रे रोल को अंजाम दिया, तो नायक के खलनायक बनने पर एक बहस छिड़ गई थी। कदाचित पहली बार मुख्यधारा के नायक के खलनायक बनने के बावजूद फिल्म सुपर हिट साबित हुई थी। आगे चलकर भी ज्वेल थीफ में विलेन बने अशोक कुमार को काफी पसंद किया गया।

अशोक कुमार ही क्यों देव आनंद भी इसमें पीछे नहीं रहे। 1952 में आई जाल में वे तेजतर्रार एंटी हीरो के रूप में प्रकट हुए। और तो और ट्रेजिडी किंग कहे जाने वाले दिलीप कुमार 1954 में अमर में एंटी हीरो बन चुके हैं। फिल्म का ये नायक नायिका निम्मी के साथ बलात्कार जैसा कलंकित कृत्य करता है। उनके छाने वालों के लिए उनका ये काला चेहरा चौंकाने वाला था। दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में इस फिल्म के साथ गंगा जमुना और फुटपाथ का जिक्र भी किया है, जिसमें एंटी हीरो के रूप में दिखे थे। इंडियन सिनेमा की आइकॉनिक फिल्म कही जाने वाली मदर इंडिया 1957 में सुनील दत्त ने नकारात्मक भूमिका करके खूब तारीफ बटोरी थी। पड़ोसन के गुदगुदाने वाले रोल के साथ-साथ आगे चलकर वे मुझे जीने दो और 36 घंटे में भी निगेटिव शेड वाले रोल्स में दिखे थे।

एंटी हीरो का असली ट्रेंड सेटर बिग बी को माना जाता है। उनके शानदार करियर में नायक विरोधी भूमिकाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। 1978 में प्रदर्शित हुई डॉन में उन्होंने एंटी हीरो को जबरदस्त तरीके से स्थापित कर कर दिया। ‘डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है’ डायलॉग बोलने वाले सौम्य मगर खतरनाक एंटी हीरो ने दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी। यही हीरो जब दीवार 1975 में चिल्लाता है,’जाओ पहले उसका साइन लेकर आओ, जिसने मेरे हाथ पर चोर लिख दिया था’ तो दर्शक इस बुरे चरित्र से नफरत नहीं कर पाते। देखा जाए तो महानायक ग्रे शेड्स वाली भूमिकाओं में भी उतने ही जानदार रहे, जितने कि आदर्शवादी चरित्रों को। उनकी परवाना 1971, गहरी चाल 1973 और त्रिशूल 1978 को कैसे भुलाया जा सकता है। मुकद्दर का सिकंदर 1978, मंजिल 1979 और अग्निपथ 1990 में भी उनके कैरेक्टर ग्रे शेड वाले ही थे।

आज शाहरुख खान को भले किंग ऑफ रोमांस कहा जाता हो, मगर कामयाबी के शुरुआती पायदान वे एंटी हीरो बनकर ही चढ़े। आज से तकरीबन 30 साल पहले आई बाजीगर में हीरो शाहरुख खान प्रतिशोध की आग को बुझाने के लिए अपनी प्रेमिका शिल्पा शेट्टी के साथ कोर्ट मैरिज करता है और फिर बिना किसी अपराधबोध के बेरहमी से उसे छत से धकेल कर उसका कत्ल कर देता है। फिल्म में हीरो का ये कृत्य दर्शकों के लिए शॉकिंग एलिमेंट था, मगर फिल्म हिट रही और उसके बाद तो ये एंटी हीरो बॉलिवुड में डर और अंजाम में हीरोइन और दर्शकों को डरा कर छा गया। उस वक्त भी नायक और खलनायक के बीच की रेखा को ब्लर करने के लिए किंग खान पर आरोप लगे, मगर इसमें कोई दो राय नहीं कि उन्होंने परंपरागत नायक के स्टीरियोटाइप को एक बार फिर ध्वस्त कर दिया। यूथ इस एंटी हीरो के जुनून के पक्ष में खड़ा नजर आया। डॉन और रईस के बाद हाल ही में बॉक्स ऑफिस पर कलेक्शन की नई इबारत लिखने वाली जवान का आजाद राठौड़ भी एक किस्म का एंटी हीरो है। बस फर्क इतना है कि इस बार वो प्यार-मोहब्बत या किसी निजी कारण से नहीं बल्कि करप्शन के खिलाफ कायदे को अपने हाथ में लेता है।

1998 में आई सत्या ने मनोज बाजपेयी को विलेन के रूप में परोसा। हालांकि वे 1994 की बैंडिट क्वीन में अपना नकारात्मक पहलू दिखा चुके थे। सैफ अली खान ‘ओमकारा’, ऋतिक रोशन ‘धूम 2’, शाहिद कपूर ‘कमीने’, ‘हैदर’ और ‘उड़ता पंजाब’ , ‘धूम 3’ में आमिर खान, ‘पद्मावत’ में रनवीर सिंह जैसे मुख्य धारा के नायकों ने सिनेमा में दुष्ट चरित्रों को साकार किया। इस फेहरिस्त में विवेक ओबेरॉय शूटआउट एट लोखंडवाला’, अजय देवगन दीवानगी’, ‘काल’ , ‘खाकी’, ‘कंपनी’ और ‘वन्स अपोन ए टाइम इन मुंबई’-2010, इरफान खान हासिल’ और ‘मकबूल’, रितेश देशमुख एक विलेन’, वरुण धवन बदलापुर’-2015 इमरान हाशमी ‘वन्स अपोन ए टाइम इन मुंबई’, चेहरे और ‘टाइगर 3, रणदीप हुड्डा हाइवे’-2014 और ‘मैं और चार्ल्स’, राजकुमार राव ओमेर्टा’ , नवजुद्दीन सिद्दीकी गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘साइको रमन , ‘बदलापुर’, ‘किक’, ‘हीरोपंती, अर्जुन रामपाल ‘धाकड़’, जॉन अब्राहम धूम’ और ‘पठान’, अभिषेक बच्चन ‘बॉब बिस्वास’, कार्तिक आर्यन फ्रेडी’ , बॉबी देओल ‘लव हॉस्टल’-2022 और ‘एनिमल’ जैसे तमाम नायकों ने अपने करियर में कभी न कभी नेगेटिव भूमिका जरूर की है। हीरोइज्म में भले ही कितना पावर क्यों न हों, मगर एंटी हीरो बनने के आकर्षण में हर नायक फंसा है।