राष्ट्रपति चुनाव नजदीक आने वाले हैं! अगर आप प्लेन में यात्रा कर रहे हों और पता चले कि आगे वाली सीट पर ‘मिस्टर बैलेट बॉक्स’ बैठे हैं तो शायद आप हैरान रह जाएं। यह नया मुसाफिर कौन है? लेकिन जब आप देखेंगे तो पाएंगे कि यह तो एक बॉक्स या कहिए तिजोरी जैसा है। वास्तव में यह मतपेटी है और हाल में यात्रियों की तरह ‘मिस्टर बैलेट बॉक्स’ के नाम से टिकट बुक कराकर इन्हें प्लेन से रवाना किया जा रहा है। दिल्ली से इन्हें राज्यों की राजधानियों में भेजा जा रहा है। यह राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी है।
राष्ट्रपति चुनाव में इस्तेमाल होने वाले ये बैलेट बॉक्स इतने क्यों है खास?
सर्वोच्च पद के लिहाज से राष्ट्रपति चुनाव अपने देश का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव कहा जा सकता है। भले ही सीधे तौर पर जनता के वोट न देने और काफी कुछ समीकरण सधे होने के कारण इसकी चर्चा कम होती है पर इसकी महत्ता अधिक है। यही वजह है कि मतपेटियां यात्रियों के रूप में ‘उड़ान’ भर रही हैं। यह कोई ऑर्डिनरी बॉक्स नहीं है, धरती पर सबसे विशाल लोकतंत्रे के सबसे बड़े ऑफिस को संभालने वाले शख्स की किस्मत का फैसला इसमें बंद होगा। इस कारण इन बॉक्सों की आवाजाही, स्टोरेज और इस्तेमाल में विशेष सावधानी बरतते हुए प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है।हर एक मतपेटी के लिए प्लेन में एक सीट आरक्षित की जाती है। इन्हें ज्यादातर राज्यों की राजधानियों में भेजा जाता है। इस बार इनका इस्तेमाल 18 जुलाई को होने वाले मतदान के लिए किया जाएगा। मतपेटियों के लिए ‘मिस्टर बैलेट बॉक्स’ के नाम से अलग से टिकट बुक की जाती हैं और ‘वह’ मतपत्र, मतों को चिह्नित करने के लिए स्पेशल पेन जैसी चुनाव सामग्री ले जाने वाले अधिकारी की सीट के बगल में ‘बैठा’ होता है। सीट भी पीछे या बीच में नहीं बल्कि आगे की पंक्ति में दी जाती है।
प्लेन से मिस्टर बैलेट बॉक्स को भेजने की बड़ी वजह उनका समय पर निर्धारित जगह पर पहुंचना सुनिश्चित करना है। अगर मतदान से बहुत पहले भेज दिया जाए तो कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।निर्वाचन आयोग की ओर से जारी 12 जुलाई का दिल्ली-चंडीगढ़ टिकट देखने से पता चलता है कि दूसरे नंबर के यात्री का नाम Mr. Ballot Box है और उन्हें एडल्ट बताया गया है। वास्तव में, ‘J’ क्लास की प्रीमियम सीट बॉक्स की साइज के हिसाब से बुक की जाती है।
प्लेन के लैंड करने पर मिस्टर बैलेट बॉक्स को किसी मुसाफिर की तरह विशेष ट्राली पर बिठाकर गाड़ी तक ले जाया जाता है। आयोग की ओर से बताया गया है कि मंगलवार को 14 मतपेटियां भेजी गईं, बुधवार को 16 मतपेटियां भेजी जाएंगी। संसद भवन और दिल्ली विधानसभा के लिए बनीं मतपेटियां आज भेजे जाने की संभावना है। हिमाचल प्रदेश के लिए बनी मतपेटी सड़क मार्ग से भेजी जाएगी। इस तरह से मंगलवार को चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति चुनाव के मतदान का काउंटडाउन शुरू कर दिया है।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान से ठीक पहले राज्य से सहायक चुनाव अधिकारी और राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय से एक अधिकारी चुनाव सामग्री लेने के लिए दिल्ली में निर्वाचन आयोग के मुख्यालय निर्वाचन सदन पहुंचते हैं। उनका उसी दिन राज्य की राजधानी लौटना अनिवार्य होता है। जब मतपेटियां और मतपत्र राज्यों की राजधानियों में पहुंच जाते हैं, तो इन्हें पहले से निरीक्षण किए गए और ठीक से सील किए गए स्ट्रांग रूम में रखा जाता है। प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की जाती है।
वोटिंग समाप्त होने के बाद सील की गईं मतपेटियों और अन्य चुनाव सामग्री को अगली उपलब्ध उड़ान से चुनाव अधिकारी के कार्यालय में वापस ले जाया जाता है। इस बार चुनाव अधिकारी राज्यसभा महासचिव हैं। मतपेटियों और अन्य दस्तावेजों को व्यक्तिगत रूप से विमान के केबिन में ले जाया जाता है और इन पर साथ आने वाले अधिकारियों की हर समय नजर रहती है।
कौन-कौन वोट करता है?
राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान संसद भवन और राज्य विधानसभाओं में होता है। निर्वाचित सांसद और विधायक (मनोनीत नहीं) वोट देने के हकदार होते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में विधान परिषदों के सदस्यों को वोट देने का अधिकार नहीं है।2004 के बाद से लोकसभा चुनावों और विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल की गईं इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में इस्तेमाल क्यों नहीं होता है? दरअसल, ईवीएम एक ऐसी तकनीक पर आधारित हैं जहां वे लोकसभा और राज्य विधानसभाओं जैसे प्रत्यक्ष चुनावों में मतों के वाहक के रूप में काम करती हैं। मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम के सामने वाले बटन को दबाते हैं और जो सबसे अधिक वोट प्राप्त करता है उसे निर्वाचित घोषित किया जाता है। लेकिन राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से होता है। ईवीएम को मतदान की इस प्रणाली को दर्ज करने के लिए नहीं बनाया गया। आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत मशीन को वरीयता के आधार पर वोटों की गणना करनी होगी और इसके लिए पूरी तरह से अलग तकनीक की आवश्यकता होगी। एक अलग प्रकार की ईवीएम की आवश्यकता होगी।