थॉमस कप क्या है ।इसके पहले बहुत कम लोग इसके बारे में जानते है । आम आदमी को समझाना हो तो इसे वर्ल्ड कप भी कह सकते हैं. जी हां, मालूम है कि बैडमिंटन का वर्ल्ड कप सुनने में थोड़ा अजीब लगता है. लेकिन जैसे टेनिस में डेविस कप होता है वैसे ही बैडमिंटन में थॉमस कप. और थॉमस कप इतना कठिन है कि इसे आज तक सिर्फ छह देश ही जीत पाए हैं. और इसे जीतने वाला छठा देश वही है जिसे हम सब अपना घर कहते हैं.
जी हां, भारत अब उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने बैडमिंटन की इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता को अपने नाम किया है. टूर्नामेंट शुरू होने से पहले किसी को उम्मीद नहीं थी कि भारतीय टीम इतना आगे जाएगी. कट्टर बैडमिंटन फैन, जो इस खेल को ही पहनते-ओढ़ते हैं उन्होंने भी बस एक मैडल की आस लगाई थी. लेकिन टूर्नामेंट जैसे-जैसे आगे बढ़ा, लोगों की उम्मीदें बढ़ती गईं.
ग्रुप स्टेज खत्म कर जब भारतीय टीम ने क्वॉर्टर-फाइनल जीता और सेमीफाइनल में पहुंची, तभी इतिहास की किताबों में एक नया पन्ना जुड़ गया. और इस पूरे टूर्नामेंट में भारत के गौतम गंभीर रहे एचएस प्रणॉय इस जीत के हीरो रहे. प्रणॉय ने 2-2 से बराबर हुई टाई के बाद पांचवां मैच 21-13, 21-8 से अपने नाम किया. और इसके साथ ही भारतीय टीम ने एक मेडल पक्का कर लिया.
लोग इतने में खुश थे. लेकिन जिन्हें पूरा आसमान चाहिए होता है वो इतनी सी सफलता पर नहीं इतराते. अब भारत के सामने थी डेनमार्क की टीम. वही डेनमार्क, जहां से मौजूदा बैडमिंटन के GOAT विक्टर एक्सेसन आते हैं. एक्सेसन की टीम के आगे भारत की उतनी ही बिसात थी जितनी गब्बर के आगे जय-वीरू की. लेकिन फिल्म की तरह यहां भी जय-वीरू ही भारी पडे़.
और भारी भी इस तरह कि दुनिया सलाम कर बैठी. मामला फिर 2-2 से बराबर था. जिताने का जिम्मा प्रणॉय पर. और तभी उनके मैच के दौरान लगा कि इस बार प्रणॉय टूट जाएंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. शायद हमारे डीएनए में ही ये फाइटिंग स्पिरिट है. तभी तो, बिना किसी खास सुविधा के भी हम पूरी दुनिया में झंडे गाड़े जा रहे हैं.
और यहां भी ऐसा ही हुआ. बीच मैच प्रणॉय अपने टखने के साथ नेट पर गिरे. डॉक्टर्स आए, उनका इलाज किया लेकिन दर्द इतनी जल्दी तो जाता नहीं. यहां भी नहीं गया. अब समस्या ये, कि दर्द के जाने का इंतजार करें तो इतिहास ना रचा जाए. और इतिहास रचने जाएं तो दर्द ना सहा जाए. अंत में इस कश्मकश में जीत इतिहास रचने की उत्कंठा की हुई. प्रणॉय दर्द में ही उठ खड़े हुए. और अपना सबकुछ झोंक दिया, उस भविष्य की उम्मीद में जिसका स्वप्न हम बीते 73 साल से देख रहे थे.
प्रणॉय ने मैच जीता और भारत फाइनल में. वो फाइनल जहां तक हम आज से पहले कभी नहीं पहुंचे थे. दुनिया का नंबर-23 खिलाड़ी भारत के लिए आज सबसे महत्वपूर्ण बन गया था. और इस पूरे सफर में कहीं ना कहीं प्रणॉय की रैंकिंग बेहद अहम थी. दरअसल इस टूर्नामेंट में रैंकिग के हिसाब से मैच तय होते हैं. और अपनी रैंकिंग के चलते ही प्रणॉय को तीसरा सिंगल्स मुकाबला मिला था.
यानी उन्हें हर बार पता था कि टीम इंडिया को आगे ले जाने के लिए ड्राइविंग सीट पर वह अकेले हैं. और प्रणॉय ने ऐसी परिस्थिति में हर बार अपना बेस्ट दिया. और भारत को जीत दिलाई. लेकिन अब फाइनल में टीम इंडिया के सामने था इंडोनेशिया. वो देश जिसे आप आंख बंद कर थॉमस कप का ऑस्ट्रेलिया या ब्राज़ील कह सकते हैं. इस टीम ने सबसे ज्यादा 14 बार थॉमस कप जीता था.
और इसके सामने पिद्दी से हम. जो पहली बार इस फाइनल में पहुंचे थे. और इस फाइनल तक के सफर में हमें सबसे ज्यादा निराश किया था अपने ही कप्तान, लक्ष्य सेन ने. फूड पॉइजनिंग के साथ टूर्नामेंट शुरू करने वाले लक्ष्य एकदम लय में नहीं थे. और फिर फाइनल के पहले मैच का पहला गेम भी उन्होंने गंवा दिया.
उम्मीदें धुंधली पड़ने लगीं. और पड़ें भी क्यों ना. लक्ष्य इस गेम में एंथनी गिंटिंग के आगे ठहर ही नहीं पाए थे. वैसे तो इस मैच में दोनों प्लेयर्स को शटल से खेलना था, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था. यहां एंथनी अकेले ही शटल और लक्ष्य दोनों से खेले जा रहे थे. लक्ष्य को अपनी धुन पर नचाते हुए एंथनी ने पहला गेम 21-8 से अपने नाम किया.
दूसरा गेम. लक्ष्य 8-5 से आगे थे. लेकिन गिंटिंग पूरी ताकत से गेम को अपनी ओर खींच रहे थे. और इसी खींचतान में उन्होंने कोर्ट के एक कोने की ओर करारा शॉट खेला. कोर्ट के अगले हिस्से में खड़े लक्ष्य गोली की तरह वहां पहुंचे और किसी तरह से अपना शरीर मोड़ते हुए शटल को वापस लौटा दिया. और ये शॉट गया गिंटिंग के फार कोर्ट यानी दूर वाले हिस्से में. इस शॉट से अचकचाए गिंटिंग से एक अस्वाभाविक गलती