भारत का सुप्रीम कोर्ट भारत का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है और संविधान के तहत भारत गणराज्य का सुप्रीम कोर्ट है। यह सबसे वरिष्ठ संवैधानिक न्यायालय है इसके पास न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति होती है। भारत का मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट का प्रमुख और मुख्य न्यायाधीश होता है जिस में अधिकतम 34 न्यायाधीश होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट को न्याय का मंदिर कहा जाता है। वहां सबके लिए न्याय हो इसी की उम्मीद की जाती है इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला पलटते हुए यह फैसला सुनाया कि पति की मौत के बाद अगर दूसरी शादी रचा ती है तो अपने बच्चों का सरनेम तय करने का हक रखती है अर्थात मां दूसरे पति का सरनेम अपने बच्चों को दे सकती है। अब बच्चों को अपने पहली पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद दूसरे पिता का सरनेम मिल सकता है। आइए आपको बताते हैं क्या था पूरा मामला।
क्या था पूरा मामला?
आपको बता दें कि है यह पूरा मामला आंध्र प्रदेश का है। जहां महिला अकेला ललित ने सुप्रीम कोर्ट में यह केस दायर किया था। अकेला ललित ने 2003 में कोंडा बालाजी से शादी की थी तथा मार्च 2006 में उनके बेटे के जन्म होने के 3 महीने बाद ही कोंडा बालाजी की मृत्यु हो गई थी पति की मृत्यु के 1 साल बाद ललिता ने पुनः विंग कमांडर अकेले रवि नरसीमा शर्मा के संग शादी रचा ली थी।
रवि नरसिम्हा शर्मा का शादी से पहले ही एक बच्चा था यह सभी लोग एक साथ में रहते थे। यह विवाद उनके बच्चे के सरनेम पर हुआ जिसकी उम्र लगभग 16 साल और 4 महीने हो चुकी हैं। ललिता के साथ ससुर में बच्चे का सरनेम बदलने पर विवाद खड़ा कर दिया था।
ललिता के सास ससुर ने पति का सरनेम बदलने पर आंध्रप्रदेश की निचली अदालत में केस दायर किया था। जिस बच्चे के सरनेम पर यह विवाद है उस बच्चे का नाम अहलाद है। अहलाद के दादा दादी ने 2008 में अभिभावक और वार्ड अधिनियम 1890 की धारा 10 के तहत पोते का संरक्षक बनने की याचिका लगाई थी। याचिका दायर करने के बाद में निचली अदालत ने उसे ठुकरा दिया था।
निचली अदालत से याचिका ठुकराने के बाद अहलाद के दादा दादी ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की जिससे बच्चे का सरनेम बदला जाए। ललिता के साथ ससुर ने ललिता को गार्डन तो माना परंतु उन्हें पहले पति के सरनेम पर बच्चे का सरनेम करने का निर्देश दिया।
जाने क्या कुछ कहा सुप्रीम कोर्ट ने
1.सरनेम को इतिहास, संस्कृति के संदर्भ में नहीं देखना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने अपने लिए हुए फैसले में कहा कि मां को नए परिवार में बच्चे को शामिल करने और उसका सरनेम बदलने से कानूनी रूप से नहीं प्रतिबंधित किया जा सकता है। सरनेम केवल वंश का संकेत नहीं है और इसे केवल इतिहास, संस्कृति के संदर्भ में नहीं समझना चाहिए।
2. अपने बच्चे को दूसरे पति को गोद लेने का अधिकार भी दे सकती है मां
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मां अपने बच्चे को दूसरे पति को गोद लेने का अधिकार भी दे सकती है। जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने पहले के फैसलों का भी जिक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मां को पति के समान ही बच्चे का नेचुरल गार्जियन बताया था।
3. मां बच्चे की इकलौती लीगल और नेचुरल अभिभावक पिता की मौत के बाद
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी मां बच्चे के बायोलॉजिकल पिता की मौत के बाद उसके इकलौती लीगल और नेचुरल गर्जियन होती है। उसे अपने बच्चे का सरनेम तय करने का पूरा अधिकार है अगर वह दूसरी शादी भी करती है तो वह बच्चे को दूसरे पति का सरनेम भी दे सकती है बच्चे को दूसरे पति का सरनेम देने के लिए प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
4. बच्चे की मानसिक स्थिति के लिए अलग सरनेम ठीक नहीं
हाईकोर्ट ने इस मामले में निर्देश दिया था कि बच्चे के डाक्यूमेंट्स में ललिता के दूसरे पति का नाम सौतेला पिता के रूप में शामिल होगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले की कड़ी निंदा करते हुए क्रूरता और नासमझी की श्रेणी में रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बच्चे की मानसिक स्थिति और आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरनेम बेहद महत्वपूर्ण होता है इसे एक बच्चा अपनी पहचान के रूप में हासिल करता है उसके और परिवार के नाम में अंतर होने से गोद लेने का फैक्ट हमेशा उसकी याद में बना रहेगा जो बच्चे को माता पिता से जोड़े रखने के बीच कई सवाल पैदा करेगा। हमें याचिकाकर्ताओं में मां को अपने बच्चे को दूसरे पति का सरनेम देने में कुछ भी गलत नहीं लगता।