यूएन रिपोर्ट में भारतीयों के स्वास्थ्य का बड़ा खुलासा सामने आया है! रिपोर्ट के अनुसार 2021 में विश्व के 9.8% लोगों को भोजन नहीं मिल पा रहा। यह संख्या 2020 में 9.3 और 2019 में 8 ही थी। कुल 230 करोड़ लोग भी गंभीर से मध्यम प्रकार के भोजन संकट की जद में हैं। रूस व यूक्रेन विश्व का एक-तिहाई गेहूं व जौ और 50% सूरजमुखी का तेल पैदा करते हैं। परंतु युद्ध की वजह से संकट और बढ़ सकता है।अच्छी खबर है, कुपोषित भारतीयों की संख्या 15 साल में 24.78 करोड़ से घटकर 22.43 करोड़ रह गई है। 5 साल से कम उम्र के स्टंटेड (अवरुद्ध शारीरिक विकास वाले) बच्चों की संख्या आठ साल में 5.23 करोड़ से घटकर 3.61 करोड़ पर आ गई है। इसी तरह मोटे बच्चों की संख्या भी 30 लाख से घटकर 22 लाख हो गई है। यह खुलासे संयुक्त राष्ट्र संघ की ताजा रिपोर्ट में किए गए हैं। रिपोर्ट में कई खामियां भी सामने आई हैं। साल 2019 में 15 से 49 साल की करीब 53 प्रतिशत युवतियां एनीमिक बताई गई हैं, उन्हें खून की कमी है। यूएन एजेंसियों, खाद्य-कृषि संगठन, अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष, यूनिसेफ, विश्व खाद्य कार्यक्रम व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने। यह 2004-06 में 24.78 करोड़ के मुकाबले 2019-21 में 22.43 करोड़ भारतीयों में कुपोषण की गिरावट तो दर्शाता है, लेकिन यह संख्या अब भी काफी बड़ी है। कुल आबादी में कुपोषण 21.6 प्रतिशत से गिरकर 16.3 प्रतिशत पर आ गया है।30.9% बच्चे कमजोर
2012 में संख्या 41.7 प्रतिशत थी
1.9% बच्चों में मोटापा मिला, 8 साल पहले यह आंकड़ा 2.4 प्रतिशत था
1.40 करोड़ नवजात बच्चों ने 2020 में 5 माह की उम्र तक सिर्फ स्तनपान किया, 2012 में संख्या 1.12 करोड़ थी।
97.33 करोड़ लोगों को नहीं मिल पा रहा पौष्टिक भोजन। यह कुल आबादी का 70 प्रतिशत।
2019 में यह संख्या 94.6 करोड़, 2017 में 100 करोड़ और 2018 में 96.6 करोड़ थी।
3.43 करोड़ लोग 2016 तक मोटे पाए गए
2.52 करोड़ थी 2012 में यह संख्या
कुल आबादी में 3.9% लोग मोटे
रिपोर्ट के अनुसार 2021 में विश्व के 9.8% लोगों को भोजन नहीं मिल पा रहा। यह संख्या 2020 में 9.3 और 2019 में 8 ही थी। कुल 230 करोड़ लोग भी गंभीर से मध्यम प्रकार के भोजन संकट की जद में हैं।
92.40 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट में, दो साल पहले 71.70 करोड़ थे।
310 करोड़ लोग पौष्टिक भोजन नहीं ले पा रहे हैं।
4.50 करोड़ बच्चे खतरनाक कुपोषण ‘वेस्टिंग’ (वजन न बढ़ना) से पीड़ित हैं
कारण
रूस व यूक्रेन विश्व का एक-तिहाई गेहूं व जौ और 50% सूरजमुखी का तेल पैदा करते हैं। रूस, बेलारूस खेती उर्वरकों के लिए जरूरी पोटाश उत्पादन में शीर्ष पर हैं। यानी युद्ध जारी रहने और आपूर्ति शृंखला बिगड़ने से संकट और बढ़ सकता है।वर्ष 2015 के बाद से भूख पीड़ितों की संख्या में मोटे तौर पर ज़्यादा बदलाव नहीं देखा गया है, मगर 2020 और 2021 में इसमें उछाल दर्ज किया गया.
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में 82 करोड़ 80 लाख लोग भूख से पीड़ित थे. एक साल पहले की तुलना में भूख की मार झेलने वाले लोगों की यह संख्या साढ़े चार करोड़ और 2019 की तुलना में 15 करोड़ अधिक है.
दुनिया भर में, दो अरब 30 करोड़ लोग गम्भीर या उससे कम स्तर की खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे, जोकि वैश्विक महामारी से पहले की तुलना में 35 करोड़ अधिक है.
92 करोड़ से अधिक लोग गम्भीर स्तर पर खाद्य असुरक्षा को झेल रहे हैं, और पिछले दो वर्षों में पीड़ितों की संख्या में 20 करोड़ से अधिक की वृद्धि हुई है.
विशेषज्ञों के अनुसार वर्ष 2020 में, सेहतमन्द आहार तीन अरब 10 करोड़ लोगों की पहुँच से बाहर था, और वर्ष 2019 की तुलना में यह संख्या 11 करोड़ 20 लाख अधिक है! कोविड-19 महामारी के कारण उपजी आर्थिक चुनौतियों और महामारी से निपटने के लिये लागू की गई पाबन्दियों से खाद्य क़ीमतों में उछाल दर्ज किया गया है.
एक अनुमान के अनुसार, पाँच वर्ष से कम उम्र के साढ़े चार करोड़ बच्चे कुपोषण के सबसे घातक रूप से जूझ रहे हैं.
इसके अलावा, पाँच वर्ष से कम आयु के 14 करोड़ 90 लाख बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास अवरुद्ध है, चूँकि उन्हें आहार में पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं!
रिपोर्ट बताती है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के कारण दोनों देशों और अन्तरराष्ट्रीय सप्लाई चेन में, अनाज, तेल के बीजों और उर्वरक की आपूर्ति में व्यवधान आया है, जिससे क़ीमतें बढ़ी हैं.
इन हालात में गम्भीर रूप से कुपोषित बच्चों के उपचार में उपयोग में लाये जाने वाले, इस्तेमाल के लिये पहले से तैयार भोजन भी महंगा हो गया है.
ये रुझान एक ऐसे समय में दिखाई दिये हैं जब चरम मौसम की घटनाओं की संख्या और उनसे सप्लाई चेन में आने वाले व्यवधान के मामले निरन्तर बढ़ रहे थे. निम्न-आय वाले देश इससे विशेष रूप से पीड़ित हैं!