एक कानून के मुताबिक कोई भी नाबालिक व्यक्ति अपना अंग दान नहीं कर सकता! 17 साल के अमृत ने देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उनकी गुहार है कि अपवादस्वरूप उन्हें बीमार पिता को लिवर दान करने की अनुमति दी जाए। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में अमृत कहते हैं कि पिता को बचाने का केवल यही एक रास्ता है। अदालत ने अंतरिम आदेश में अमृत को डोनेशन से पहले वाले सभी टेस्ट्स कराने को कहा था। वह पिता को लिवर डोनेट कर पाएंगे या नहीं, प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा राव की बेंच फैसला देगी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला निचली अदालतों के लिए नजीर बनेगा जहां पर नाबालिग संतानों के पिता या मां को अंगदान करने की इजाजत मांगती कई याचिकाएं आती हैं। अभी तक अदालतें असाधारण परिस्थितियों में ही नाबालिगों को अंगदान की अनुमति देती आई हैं।
उत्तर प्रदेश में रहने वाले अमृत की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सूबे के वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी को तलब किया है। अमृत ने यूपी के स्वास्थ्य सचिव को भी इस मामले में पत्र लिखा था, मगर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। चूंकि उनके पिता की तबीयत काफी ज्यादा खराब है और देरी भारी पड़ सकती है, इसलिए मां की मदद से वह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।
अदालत के सामने, अमृत के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता बेहद गंभीर हालत में हैं। उनकी जान बचाने का एकमात्र तरीका अंगदान है। याचिकाकर्ता का बेटा अपना लिवर देने को तैयार है मगर कानून के अनुसार, डोनर को वयस्क होना चाहिए।
अंगदान के विषय में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 लागू होता है। इसके अनुसार, केवल वयस्क और मृत नाबालिगों के अंगों को ही दान में दिया जा सकता है। संविधान में स्वास्थ्य को राज्य सूची में रखा गया है। कानून से परे जाकर, असाधारण परिस्थितियों में विभिन्न हाई कोर्ट्स ने नाबालिगों को अंगदान की अनुमति दी है।
फरवरी 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने 17 साल 10 महीने की उम्र वाले युवक को अंगदान की अनुमति दी थी। याचिकाकर्ता के पिता को तत्काल लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसी साल मई में एक 16 साल की लड़की को अंगदान करने से रोक दिया था। कोर्ट ने कहा था कि लड़की की जान को खतरा है। युवती ने अपने बीमार पिता को लिवर का हिस्सा दान करने की अनुमति मांगी थी।
अप्रैल 2020 में दिल्ली हाई कोर्ट ने दोहराया था कि नाबालिगों के अंग या टिश्यू दान करने पर ‘पूर्ण प्रतिबंध’ नहीं है। जस्टिस संजीव सचदेव की बेंच ने कहा था कि ‘ऐसे दान की अनुमति दी जा सकती है लेकिन असाधारण परिस्थितियों में।’ अदालत 17 साल की युवती की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो अपने पिता को लिवर का हिस्सा दान करना चाहती थी। कोर्ट ने कहा था कि डोनेशन की प्रकिया में नाबालिग की जान को कोई खतरा नहीं होना चाहिए।
मेडिकल तकनीक के विस्तार के साथ ही अब लिवर डोनेशन की संख्या बढ़ी है। एंड-स्टेज लिवर बीमारी से जूझ रहे लोगों की जिंदगी बचाने के लिए ट्रांसप्लांट ही एकमात्र रास्ता बचता है। समय रहते लिवर ट्रांसप्लांट जरूरी है। सर्जरी में डोनर के स्वस्थ लिवर का एक हिस्सा (अधिकतम 60 प्रतिशत) निकाला जाता है और बीमार व्यक्ति के लिवर से रीप्लेस कर दिया जाता है। लिवर ऐसा अंग जो रीजेनेरेट हो सकता है, इसलिए कुछ हफ्तों में डोनर और रेसीपिएंट, दोनों का लिवर नॉर्मल साइज में आ जाता है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार, भारत में मृत्यु के बाद केवल 0.01 प्रतिशत लोग ही अंगदान करते हैं। भारत में ऑर्गन डोनर्स की भारी कमी है। 2020 का एक आंकड़ा बताता है कि प्रति 1,60,000 मरीजों जिन्हें अंगदान की जरूरत है, के लिए केवल 12,000 डोनर उपलब्ध हैं। स्पाउजल डोनर्स में 90% महिलाएं हैं।मेडिकल तकनीक के विस्तार के साथ ही अब लिवर डोनेशन की संख्या बढ़ी है। एंड-स्टेज लिवर बीमारी से जूझ रहे लोगों की जिंदगी बचाने के लिए ट्रांसप्लांट ही एकमात्र रास्ता बचता है। समय रहते लिवर ट्रांसप्लांट जरूरी है। सर्जरी में डोनर के स्वस्थ लिवर का एक हिस्सा (अधिकतम 60 प्रतिशत) निकाला जाता है और बीमार व्यक्ति के लिवर से रीप्लेस कर दिया जाता है। लिवर ऐसा अंग जो रीजेनेरेट हो सकता है, इसलिए कुछ हफ्तों में डोनर और रेसीपिएंट, दोनों का लिवर नॉर्मल साइज में आ जाता है। ऐसे में डॉक्टर्स यह अंदेशा जताते रहे हैं कि अगर नाबालिगों को अंगदान की अनुमति मिली तो उन्हें दबाव में लाकर या बहला-फुसलाकर अंगदान कराया जा सकता है।