अब अमेरिका भारत की नाफरमानी कर सकता है! मामला रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का है और याद आता है अमिताभ बच्चन का ये डायलॉग – हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है। छोटा मुंह बड़ी बात लगेगी लेकिन भारत आज वैश्विक पटल पर उसी अमिताभ बच्चन की भूमिका में दिखाई दे रहा है। जवाहर लाल नेहरू, सुकार्णो, मार्शल टिटो, अब्दल नासिर ने भी नहीं सोचा होगा जिस गुटनिरपेक्ष दुनिया का वो सपना साकार कर रहे हैं उसी के सापेक्ष पूरी दुनिया नाचेगी। आज की सच्चाई देख लीजिए। न हम अमेरिका या नाटो के पीछे हैं और न ही रूस के। हम अपनी जगह हैं। बाकी देश बारी-बारी से बता रहे हैं कि वो भारत के साथ हैं या नहीं हैं। इस ऐतिहासिक बदलाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर की चमत्कारी भूमिका रही है जिसकी नींव 26 फरवरी को पड़ गई थी। यूक्रेन पर रूस के हमले के दो दिन बाद जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने वोटिंग नहीं की। इसमें स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन के नाम पर हमला करने के लिए रूस की भर्त्सना की गई थी। हंगामा मच गया। शुरुआती कुछ दिनों में लगा जैसे भारत पर पश्चिम का दबाव काम कर जाएगा। लेकिन अजित डोभाल, मोदी और जयशंकर ने जो फौलादी रुख अख्तियार किया उससे पश्चिम को अहसास हो गया कि रूस के साथ वो दोस्ती भारत नहीं तोड़ सकता। फिर नरम पड़ गए। भारत ने साफ बता दिया कि तुम बैन लगाओ, हम तो रूस से तेल खरीदेंगे क्योंकि हम पश्चिम-पूरब या नाटो-क्वाड देख कर नहीं बल्कि देशहित में फैसला करते हैं। अमेरिका रक्षा मंत्री ने तो भारत आकर यहां तक कह दिया अगर चीन ने लद्दाख में दुस्साहस किया तो वो चुप नहीं बैठेगा। हमने कहा ठीक है। लेकिन इससे हम रूस पर अपनी नीति नहीं बदलेंगे। सात महीने हो गए जंग जारी है। फिर अचानक 17 सितंबर को कुछ ऐसा हुआ कि नाटो की बांछें खिल गईं। शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में व्लादिमीर पुतिन को नरेंद्र मोदी ने साफ कह दिया कि यह युग युद्ध का नहीं है। हमें डेमोक्रैसी, डायलॉग और डिप्लोमैसी से काम करना चाहिए। बस बाइडन से लेकर मैक्रों तक को लगा कि हम जो नहीं कर पाए वो काम मोदी ने कर दिया क्योंकि पुतिन ने भी कहा कि वो भारत की भावनाओं को समझते हैं। अब आज 30 सितंबर है और पुतिन यूक्रेन के चार इलाकों खेरसोन, लुहांस्क, डोनेट्स्क और जैपोरिजिया पर कब्जे की फाइल पर दस्तखत कर चुके हैं।
ये पहला मौका नहीं है। इससे पहले 2014 में क्रीमिया को भी पुतिन ने ताकत के बल पर रूस में शामिल करा लिया था। जब अमेरिका, यूरोप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलिदिमीर जेलेंस्की पूर्वी यूक्रेन में एक के बाद एक रूसी सेना की हार का जश्न मना रहे थे तब पुतिन ने वहीं जनमत संग्रह की चाल चल दी। 23 से 27 सितंबर के बीच चारों इलाकों में जनमत संग्रह कराए गए। पश्चिमी देशों का कहना है कि पुतिन ने सारे अंतरराष्ट्रीय कानूनों को धता बताकर ये शर्मनाक हरकत की है। जो बाइडन से लेकर फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों और इंग्लैंड की पीएम बनी लिज ट्रस ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भीषण प्रलाप किया। रूस को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई। लेकिन ये चेतावनी किसी काम के होती तो पुतिन यूक्रेन पर हमला ही क्यों करते। नाटो ने पहले तो रूस को उकसाया और उसकी सीमा तक मिसाइलें लगाने की तैयारी की। दूसरी ओर जेलेंस्की को दिलासा देते रहे कि अगर रूस ने हमला किया तो नाटो चुप नहीं बैठेगा। जब हमला हुआ तब घिग्गी बंध गई। जुबान चलाना आसान होता है, मिसाइलें चलाना मुश्किल। तीसरे विश्व युद्ध से दुनिया को बचाने के नाम पर नाटो ने यूक्रेन को जलने दिया। अब हथियार भेज कर मदद का दावा कर रहे हैं। क्या पता कल उसका हिसाब भी कर लें।
दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत में वर्ल्ड लीडर्स ने थोक भाव ने हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की। कैसे सार्वजनिक तौर पर मीडिया के सामने मोदी ने पुतिन से हार्ड टॉक कर एक लकीर खींच दी। सारे मुरीद हैं। लेकिन निसहाय हैं। तो उम्मीद की किरण मोदी से नजर आ रही है। इससे पहले अप्रैल-मई के महीने से ही दिल्ली दुनिया के तमाम ताकतवर देशों के राष्ट्राध्यक्षों और कूटनयिकों का अड्डा बन चुका है। यहां तक कि चीन के विदेश मंत्री भी भारत पहुंच गए। हो भी क्यों न। दो मार्च 2022 को यूएन महासभा में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव में भारत-पाकिस्तान और चीन ने हिस्सा नहीं लिया। किसने सोचा था कि किसी भी मसले पर ये तीनों देश एक साथ आ सकते हैं या दिखाई दे सकते हैं। हो सकता हो संयोग हो लेकिन इसी 13 सितंबर को गोगरा-हॉट स्प्रिंग के पेट्रोलिंग पॉइंट 15 पर चल रहा तनाव सैनिकों के पीछे आने से दूर हो चुका है। चीन ने दो दिन पहले ही कहा है कि अब लद्दाख में शांति की तरफ लौट रहे हैं। खैर, अब दुनिया को लग रहा है कि मोदी थोड़ा और जोर लगा दें तो पुतिन को जंग खत्म करने के लिए मना सकते हैं। इतना तो ठीक है लेकिन दुनिया की कोई ताकत भारत को मजबूर नहीं कर सकती। अगर हमने रूस का साथ दिया तो ये स्वतंत्र फैसला था और 25 अगस्त को पहली बार रूसी प्रस्ताव का विरोध किया तो वो भी स्वतंत्र फैसला था। इसको लेकर बाकी दुनिया कोई राय कायम न करे। 25 अगस्त का रूसी प्रस्ताव था कि जेलेंस्की को यूएन में ऑनलाइन भाषण देने से रोका जाए। भारत ने इसका विरोध किया। पश्चिमी मीडिया ने इसे हमारे बदलते रुख के तौर पर पेश किया लेकिन जल्दी ही समझा दिया गया कि ये वोट रूस के खिलाफ नहीं है। दरअसल ये रूस के साथ दोस्ती बढ़ाने वाला दांव था।
यूएन में रूस के खिलाफ फिर प्रस्ताव आएगा तो भारत क्या करेगा। ये सवाल पत्रकारों ने जयशंकर से भी पूछ लिया। उन्होंने कूटनीतिक कौशल का परिचय देते हुए कहा कि जब सुरक्षा परिषद में बात होगी तब देखा जाएगा, यूएन में हमारे राजदूत इसका जवाब देंगे। माना जा रहा है कि अगले हफ्ते तक अमेरिका की तरफ से ये प्रस्ताव यूएन में आएगा। हमरा रुख हमें पता है लेकिन अमेरिका को किसी तरह के दबाव से बाज आना चाहिए। न हम पहले झुके हैं, न आगे झुकेंगे। राष्ट्रहित में जो उचित होगा वैसा करेंगे। पहले हम पश्चिम की चाल समझते थे पर हाथ बंधे थे लेकिन ये सरकार चुप नहीं बैठती, मुंह भर सुना देती है। आपने भी देखा होगा कैसे अमेरिका ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के रख रखाव के लिए 45 करोड़ डॉलर दे दिए और बताया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ये काम आएंगे। तो एस जयशंकर ने सुना दिया कि ये दलील देकर तुम किसको मूर्ख बना रहे हो। उधर जो बाइडन बिना भारत का नाम लिए यूएन में कहते हैं कि समय आ गया है सुरक्षा परिषद का विस्तार किया जाए। मतलब भारत को शामिल किया जाए। ये मस्का लगाने जैसा है या कुछ और पता नहीं पर यही हमारी जीत है। दुनिया को पता चल चुका है कि आंख दिखाकर भारत को झुका नहीं सकते।