वर्तमान में विपक्ष के INDIA गठबंधन से बीजेपी को खतरा हो सकता है! उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने नारा दिया है, ‘यूपी में 80 हराओ और लोकतंत्र बचाओ।’ उन्होंने उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर बीजेपी और उसके गठबंधन एनडीए को हराने का फॉर्म्युला भी दिया है। अखिलेश अपने फॉर्म्युले को पीडीए कहते हैं- पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का शॉर्ट फॉर्म। मंगलवार को नई दिल्ली के अशोक होटल में हुई विपक्षी इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद अखिलेश यादव ने मीडिया से बात की। उन्होंने कहा, ‘बहुत जल्दी सीटों का बंटवारा होगा और हम जनता के बीच में होंगे।’ उन्होंने दावा किया कि आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी से बीजेपी का सफाया हो जाएगा। अखिलेश बोले, ‘यूपी में गठबंधन 80 हराएगा और भारतीय जनता पार्टी देश से हट जाएगी।’ लेकिन क्या यह संभव है? क्या अखिलेश के पीडीए फॉर्म्युले और इंडिया गठबंधन की छतरी तले विरोधी दलों के एकजुट हो जाने से यह मकसद सध जाएगा? कहा जा रहा है कि इंडी अलांयस की दिल्ली बैठक में अखिलेश ने साथी दलों से कहा कि वो मजबूती से सपा के साथ खड़ा हों। अखिलेश ने इस संबंध में मीडिया के सवालों पर कहा, ‘समाजवादी पार्टी को जो पक्ष रखना था, वो अंदर इंडिया गठबंधन के जितने भी दल हैं, उनके बीच में रखा है।’ कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव यूपी में इंडिया गठबंधन के अगुवा के रूप में सपा को बहुत बड़ा हिस्सा दिए जाने की इच्छा रखते हैं।
हालांकि, कांग्रेस पार्टी हो या कोई और साथी, अखिलेश की भावना का कितना ख्याल रख पाएगी, यह तो जल्द ही देखने को मिल जाएगा। लेकिन यह मान भी लिया जाए कि इंडिया गठबंधन की सभी पार्टियां सपा के साथ क्या, उसके पीछे भी मजबूती से खड़ी हो पाएंगी तो क्या अखिलेश वो कमाल दिखा पाएंगे जिसकी भविष्यवाणी वो कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए कुछ आंकड़ों पर गौर किया जा सकता है। हालांकि, यह भी सच है कि आंकड़ों से चुनावी समीकरण नहीं सधते, इसके लिए शतरंज की बिसात पर चली ज्यादा से ज्यादा चाल के सटीक बैठना जरूरी होता है।
पिछले लोकसभा चुनावों में विपक्ष की नौ पार्टियों- सपा, कांग्रेस, सीपीआई, एनसीपी, आप, जेडीयू, आरएलडी, शिवसेना और फॉरवर्ड ब्लॉक को कुल 26.37 प्रतिशत वोट और छह सीटें हासिल हुई थीं। इन पार्टियों के 2024 लोकसभा चुनाव भी साथ लड़ने के ही आसार हैं जबकि पिछली बार साथ लड़ी बसपा इस बार अलग हो गई है। 2019 के चुनाव में बसपा 19.43 प्रतिशत वोट और 10 सीटें लाकर उत्तर प्रदेश में बीजेपी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। हालांकि, इस बार वह न बीजेपी के एनडीए और ना विपक्ष के इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनने वाली है। वहीं, 2019 के चुनाव में अलग लड़ी कांग्रेस इस बार गठबंधन में लड़ने वाली है।
अब एक नजर पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के प्रदर्शन पर। विपक्ष के तरह बीजेपी के साथ ज्यादा पार्टियों ने यूपी में चुनाव नहीं लड़ा था। लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े प्रदेश में बीजेपी को सिर्फ अपना दल का साथ मिला था। वहां बीजेपी को 49.98 प्रतिशत वोट और 62 सीटें जबकि सहयोगी अपना दल को 1.21 प्रतिशत वोट और 2 सीटें हासिल हुई थीं। इस तरह, यूपी में एनडीए को कुल 51.19 प्रतिशत वोट के साथ कुल 64 सीटों पर विजय मिली थी।
ये तो हुई 2019 की बात, अब बात कर लेते हैं 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बनते-बिगड़ते समीकरणों की। जैसा कि ऊपर कहा गया है कि बसपा इस बार किसी गठबंधन का हिस्सा ना होकर स्वतंत्र चुनाव लड़ेगी। तो क्या पिछली बार उसके हिस्से में गए 19.43 प्रतिशत वोटों का बंटवारा हो जाएगा? अगर होगा तो कौन सा खेमा ज्यादा हिस्सा लेने में सफल रहेगा? क्या इससे उलट मायावती की बसपा अपने वोट प्रतिशत बढ़ा लेगी? इन सवालों के जवाब ढूंढने जरूरी हैं क्योंकि कई बार वोट प्रतिशत में मामूली अंतर से ही सीटों में बड़ा अंतर आ जाता है। पिछले लोकसभा चुनाव को ही देख लें। सपा को बसपा से महज 1.32 प्रतिशत वोट कम मिले थे लेकिन सीटें आधी मिलीं। सपा पांच सीटों तक सिमट गई जबकि बसपा ने उससे दोगुनी यानी 10 सीटें हासिल कीं।
इन सब आंकड़ों और समीकरणों के बीच सबसे बड़ा सवाल है कि क्या उत्तर प्रदेश में विपक्ष अपना वोट प्रतिशत में इतना ज्यादा बढ़ा पाएगा कि वो एनडीए से आगे निकल जाए? 2019 के आंकड़ों को मानें तो एनडीए और विपक्ष के बीच यूपी में 24.82 प्रतिशत के वोटों का अंतर है। ऊपर से बीजेपी इस जुगत में है कि इस बार प्रदेश की 80 की 80 लोकसभा सीटें जीत ली जाएं। चूंकि यूपी में बीजेपी का कोई उस स्तर का मजबूत सहयोगी दल भी नहीं है जिसके दबाव में उसे अपनी रणनीति को पूरी तरह जमीन पर लागू उतारने में मुश्किल हो। ऊपर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा और विधानसभा से इतर लोकसभा में वोटिंग का पैटर्न।
जैसा कि पहले ही कहा गया है, चुनाव नतीजे अतीत के आंकड़ों और कागजों पर बने समीकरणों से नहीं तय किए जा सकते। चुनावों में बहुत कम बार दो जोड़ दो का प्रतिफल चार होता है, अक्सर इस जोड़ का नतीजा कभी एक तो कभी आधा होता। कई बार यह पांच, आठ और 12 भी हो सकता है। विधानसभा हो या लोकसभा, हर चुनाव में इसके कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। इसलिए अखिलेश का 80 में 80 सीटों पर बीजेपी को हराने की प्लानिंग या जवाब में बीजेपी की सभी 80 सीटें फतह करने की स्ट्रैटिजी, क्या किस हद तक सफल हो पाती है यह तो चुनाव नतीजे बता पाएंगे। तब तक दावों और अटकलों का दौर तो चलता रहेगा।