क्या यूपी में समाजवादी पार्टी के सपने चूर-चूर कर सकती है बीजेपी?

0
141

बीजेपी अब यूपी में समाजवादी पार्टी के सपने चूर चूर कर सकती है! उत्तर प्रदेश में 2014 में जिस प्रकार से राजनीतिक स्थिति ने करवट ली, उसका असर अब तक दिख रहा है। प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी एक अलग ही समीकरण और रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरी। सवर्णों की पार्टी के रूप में पहचानी जाने वाली पार्टी ने अपना स्वरूप पूरी तरह से बदल दिया। अटल- आडवाणी का दौर बीत चुका था। 2013 के गोवा अधिवेशन में लोकसभा चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष के तौर पर गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी की भाजपा की अंदरूनी राजनीति में एंट्री हो चुकी थी। राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता ने एक बड़ा संदेश उस वर्ग को दिया, जो अब तक सबसे बड़ी आबादी होने के बाद भी सत्ता में भागीदारी को लेकर उपेक्षित रहा था। वह वर्ग था ओबीसी। भाजपा ही नहीं, पीएम मोदी ने स्वयं चुनावी मैदान में खुलकर खुद को ओबीसी बताया। कांग्रेसी नेताओं के हमलों को ओबीसी पर अटैक के रूप में पेश किया गया। यूपी में भी कुछ यही हुआ। समीकरण बना- सवर्ण + ओबीसी। हां, ओबीसी में यादव जाति शामिल नहीं हुई। इसके बाद भी करीब 40 फीसदी वोट शेयर तक को टारगेट बनाकर भाजपा ने चुनावी मैदान में जो दांव आजमाया, सटीक बैठा। यूपी की 80 में से 71 सीटों पर भाजपा जीती। लेकिन, लोकसभा चुनाव 2019 और फिर यूपी चुनाव 2022 में जो कुछ हुआ, उसने भाजपा को रणनीति में बदलाव करने पर मजबूर कर दिया। भाजपा अब पसमांदा मुसलमानों के जरिए अल्पसंख्यकों के एक बड़े वर्ग को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। लोकसभा चुनाव 2019 और यूपी चुनाव 2022 में एक चीज कॉमन थी, यूपी में मुस्लिम वोट बैंक नहीं बंटा। लोकसभा चुनाव 2019 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक पाले में आए थे। इस दौरान दावा किया गया कि सपा के माय (Muslim + Yadav) समीकरण से दलित वोट बैंक जुड़ जाएगा। माय समीकरण के तहत समाजवादी पार्टी करीब 28 से 30 फीसदी और बसपा दलित-ओबीसी-मुस्लिम राजनीति के तहत 22 से 25 फीसदी वोट शेयर पर कब्जा जमाती रही थी। विपक्ष को उम्मीद थी कि यूपी की करीब 50 से 55 फीसदी वोट पर यह गठबंधन कब्जा जमा लेगा। 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के तहत बने समीकरण के बाद भी विपक्ष को आशातीत सफलता नहीं मिली। भाजपा ऐतिहासिक रूप से 49.6 फीसदी से अधिक वोट शेयर हासिल करने में कामयाब रही। वहीं, बसपा 19.3 फीसदी वोट शेयर के साथ दूसरे और सपा 18 फीसदी वोट शेयर के साथ तीसरे स्थान पर रही।

लोकसभा चुनाव 2019 में भले ही भाजपा का वोट शेयर बढ़ा, लेकिन सीटें केवल 62 जीतने में कामयाब रही। भाजपा जिन सीटों पर जीती, वहां अंतर काफी बड़ा था। जिन सीटों पर हार हुई वहां पर एक चीज साफ दिखी। भले ही, सपा-बसपा गठबंधन माय के साथ दलित-ओबीसी को नहीं जोड़ पाई। लेकिन, मुस्लिम वोट बैंक ने एकमुश्त गठबंधन को वोट दे दिया। इसका फायदा मुस्लिम बहुल सीटों पर गठबंधन उम्मीदवारों की जीत के रूप में सामने आया। संभल और मुरादाबाद जैसी सीटें भाजपा के खाते से चली गई। पसमांदा मुस्लिम का मु्द्दा उठाकर पीएम मोदी ने एक नई बहस को जन्म दिया है।

मध्य प्रदेश में दो वंदे भारत ट्रेनों की सौगात देने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने राज्य में एक प्रकार से विधानसभा चुनाव 2023 का बिगुल फूंक दिया। तैयारी लोकसभा चुनाव 2024 तक की है। इसमें उन्होंने ट्रिपल तलाक का मुद्दा उठाया। मोदी सरकार ने कानून बनाकर इस अभिशाप से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। इस बयान के जरिए मुस्लिम महिला वोट बैंक तक पहुंचने का प्रयास करती भाजपा दिख रही है। वहीं, मुस्लिमों के बीच के पिछड़े वर्ग को लेकर भी उनका बयान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उन्होंने पसमांदा मुसलमानों की स्थिति पर बयान देकर संकेत दे दिया कि भाजपा इस बार विपक्ष के किसी भी गठजोर का जवाब देने के लिए अलग प्रकार की रणनीति पर काम कर रहा है। मध्य प्रदेश का संदेश यूपी के चुनावी मैदान तक प्रभावित करने वाला है। यूपी में मुस्लिम आबादी ने जिस प्रकार से विधानसभा चुनाव 2022 में रिजल्ट को प्रभावित किया।

यूपी चुनाव 2022 में भाजपा प्रदेश की 403 सीटों में से 255 सीटों पर जीत दर्ज की। समाजवादी पार्टी बदले राजनीतिक समीकरण और बिना किसी बड़े दल के गठबंधन के 111 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई। 5 साल पहले वर्ष 2017 में सपा को केवल 47 सीटों पर जीत मिली थी। इसका एक बड़ा कारण सपा और बसपा के वोट बैंक थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 384 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। गठबंधन के तहत 11 सीटें अपना दल और 8 सीटें सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को दी गई। इस चुनाव में भाजपा को 39.7 फीसदी, अपना दल एस को एक फीसदी और एसबीएसपी को 0.7 फीसदी वोट मिले थे। इस प्रकार एनडीए को कुल 41.4 फीसदी वोट मिले। इस चुनाव में सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया। सपा ने 311 तो कांग्रेस ने 114 सीटों पर उम्मीदवार उतारे।यूपी चुनाव 2022 में भाजपा प्रदेश की 403 सीटों में से 255 सीटों पर जीत दर्ज की। समाजवादी पार्टी बदले राजनीतिक समीकरण और बिना किसी बड़े दल के गठबंधन के 111 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई। 5 साल पहले वर्ष 2017 में सपा को केवल 47 सीटों पर जीत मिली थी। इसका एक बड़ा कारण सपा और बसपा के वोट बैंक थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 384 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। गठबंधन के तहत 11 सीटें अपना दल और 8 सीटें सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को दी गई। इस चुनाव में भाजपा को 39.7 फीसदी, अपना दल एस को एक फीसदी और एसबीएसपी को 0.7 फीसदी वोट मिले थे। इस प्रकार एनडीए को कुल 41.4 फीसदी वोट मिले। इस चुनाव में सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया। सपा ने 311 तो कांग्रेस ने 114 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। इस चुनाव में सपा को 21.8 फीसदी और कांग्रेस को 6.2 फीसदी वोट मिले। इस प्रकार गठबंधन को 28 फीसदी वोट शेयर मिला। बसपा ने सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और पार्टी को कुल 22.2 फीसदी वोट मिले।इस चुनाव में सपा को 21.8 फीसदी और कांग्रेस को 6.2 फीसदी वोट मिले। इस प्रकार गठबंधन को 28 फीसदी वोट शेयर मिला। बसपा ने सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और पार्टी को कुल 22.2 फीसदी वोट मिले।

यूपी की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक काफी अहम है। भले ही 2014 के बाद से राजनीति अल्पसंख्यक से हटकर बहुसंख्यक समुदायों के आसपास सिमट गई है। इसके बाद भी अब बाजी को अपने पक्ष में करने के लिए इस वोट बैंक पर सबने नजर गड़ा ली है। एक तरफ अखिलेश यादव आजम खान से लेकर तमाम मुस्लिम नेताओं पर कार्रवाई का मुद्दा उठाकर इस वर्ग को अपने साथ जोड़े रखने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, मायावती ने इमरान मसूद, गुड्‌डू जमाली जैसे चेहरों की बदौलत दलित-मुस्लिम गठजोर को एक बार फिर चुनावी मैदान में उतारने की कोशिश में है। कांग्रेस भी अपने सवर्ण, ओबीसी, दलित और मुस्लिम वोट बैंक को हासिल करने की कोशिश करती दिख रही है। वहीं, लोकसभा चुनाव में 49.6 फीसदी वोट शेयर तक पहुंचने वाली भाजपा की कोशिश 50 फीसदी वोट शेयर के आंकड़े को पार करने की है। इसलिए, पार्टी की नजर पसमांदा और मुस्लिम महिला वोटरों पर है।

हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि अगर लोकसभा चुनाव 2024 में मुस्लिम वोटर एकजुट रहे तो 26 लोकसभा सीटों पर सियासी उलटफेर जैसी स्थिति को देखने को मिल सकती है। भले ही मायावती ने निकाय चुनाव में बड़े स्तर पर सफलता दर्ज नहीं की हो, लेकिन दलित-मुस्लिम समीकरण एक बार फिर प्रभावी होता दिख रहा है। ऐसे में भाजपा ने इस वर्ग में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की है। रामपुर लोकसभा सीट हो या फिर रामपुर एवं स्वार विधानसभा उप चुनाव, इन सीटों पर भाजपा की जीत में पसमांदा बड़ी भूमिका में रहे हैं। अब पीएम मोदी उन्हीं के जरिए भाजपा से छिटकने वाले वोट बैंक को पाटने की कोशिश करते दिख रहे हैं।