Friday, September 20, 2024
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अर्थराइटिस का दर्द कम कर सकता है काजू?

सामान्य तौर पर काजू का प्रयोग कई प्रकार से किया जा सकता है! काजू एक प्रकार का फल होता है जो सूखे मेवे में शामिल होता है। इसके पौष्टिक गुण इतने है कि आयुर्वेद में काजू को कई तरह के बीमारियों के लिए प्रयोग में लाया जाता है। काजू दांत दर्द से लेकर दस्त,कमजोरी जैसे अनेक रोगों से राहत दिलाने में मदद करता है।काजू को यूं ही खाने से भी न सिर्फ इसके स्वास्थ्यवर्द्धक गुणों का लाभ मिलता है बल्कि काजू को व्यंजन में  डालने से   व्यंजन का जायका बदलता है। इसके साथ ही काजू खाने से सेहत और सौन्दर्य में भी निखार आता है।

काजू क्या है?

काजू छोटा, लगभग 12 मी ऊँचा, मध्यम आकार का आम के वृक्ष के जैसा सदा हरा-भरा रहने वाला वृक्ष होता है। इसकी शाखाएं मुलायम होती है। काजू के वृक्ष की छाल से पीले रंग का निचोड़ या रस निकलता है। काजू का पत्ता कटहल के पत्ता जैसा होता है,किन्तु सुगन्धित होता है। इसके फूल छोटे, गुलाबी धारियों से युक्त, पीले रंग के  होते हैं, जिनमें सफेद गिरी होती है, इसे ही काजू कहते हैं। इसके ताजे फलों के रस से एक प्रकार का मद्य तथा फलों के छिलकों से काला व कड़वा रस युक्त तेल निकाला जाता है। यह तेल त्वचा में लगने से त्वचा पर फफोले पड़ जाते हैं।

काजू के बारे में जितना बनायेंगे वह कम ही होगा। क्योंकि काजू पौष्टिकता से भरपूर होता है, और थोड़ा कड़वा, गर्म तथा वात-पित्त और कफ को करनेवाला होता है। इसके अलावा काजू  पेट के रोग, बुखार, कृमि, घाव, सफेद कुष्ठ, संग्रहणी (इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम), पाइल्स तथा भूख न लगने जैसे बीमारियों में लाभप्रद होता है। इसका जड़ तीव्र विरेचक (शरीर से अवांछित पदार्थ निकलना) तथा  कमजोरी दूर करने में सहायक होता है। काजू की बीजमज्जा पोषक, मृदुकारी तथा विष को कम करने में मदद करती है।

काजू के फायदे

अगर दांत दर्द से परेशान रहते हैं तो काजू का इस्तेमाल इस तरह से करने पर लाभ मिलता है। काजू का पत्ता एवं छिलके का काढ़ा बनाकर गरारा करने से दांत का दर्द कम होता है तथा दांत के जड़ में जो घाव होता है उससे भी राहत मिलती है।अगर असंतुलित खान-पान के कारण दस्त हो रहा है तो काजू का इस्तेमाल ऐसे करें। 10 मिली काजू के फल के रस में मधु मिलाकर, दिन में एक बार सेवन करने से दस्त (अतिसार) में लाभ होता है।

काजू उदकमेह में बहुत गुणकारी होता है। काजू का इस तरह से सेवन बहुत लाभप्रद होता है। 5-10 मिली काजू के छिलके का काढ़ा या 1-2 ग्राम छिलके के चूर्ण का सेवन करने से उदकमेह में लाभ होता है।मूत्र संबंधी बीमारी मतलब मूत्र करते समय दर्द या जलन होना, रुक-रुक कर पेशाब आने जैसी समस्याओं में काजू काम आता है। 10-15 मिली काजू फल के रस में मधु मिलाकर, दिन में एक बार सेवन करने से मूत्र संबंधी रोग, मूत्राशय में सूजन आदि में लाभ होता है।

मासिक धर्म के दौरान दर्द की समस्या से अगर पीड़ित हैं तो 10-15 मिली काजू फल के रस में मधु मिलाकर सेवन करने से कष्ट से आराम मिलता है।उम्र के बढ़ते ही अर्थराइटिस की समस्या से सब ग्रस्त हो जाते हैं। काजू फल के रस को जोड़ों में लेप करने से आमवात जन्य दर्द में लाभ होता है, प्रदूषण के कारण त्वचा संबंधी बहुत तरह की बीमारियां होने लगी है। काजू के शाखा को पीसकर लगाने से त्वचा संबंधी का समस्याओं से राहत मिलती है।कुष्ठ के लक्षणों से राहत दिलाने में काजू काम आता है। कुष्ठ के कारण त्वचा में जो शून्यता आती है इस तेल को लगाने से वह मिटती है।

अगर लंबे समय तक बीमार रहने के कारण कमजोर हो गए हैं तो 2-4 काजू को 100 मिली दूध में मिलाकर खाने से कमजोरी दूर होती है तथा शरीर पुष्ट होता है।अक्सर ठंडे के मौसम में पैर फट कर उसमें से बिवाई निकलने लगती है। काजू के छिलके का तेल लगाने से पैरों की बिवाई ठीक हो जाती है।अगर किसी बीमारी के लक्षण के स्वरुप सूजन की परेशानी है तो फल के रस को सूजन वाले जगह पर लगाने से लाभ मिलता है।

बीमारी के लिए काजू के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए काजू का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।

चिकित्सक के परामर्श के अनुसार

10-20 ग्राम बीजफल का सेवन कर सकते हैं।काजू के सेवन के फायदे जितने है उतने ही इसके साइड इफेक्ट्स भी है। काजू के छिलकों का तेल बहुत जलन पैदा करने वाला तथा फफोला उत्पन्न करने वाला होता है। अत: इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इसके अलावा  पित्त-प्रकृति वाले व्यक्तियों को इसका सेवन अत्यधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए।मूलत दक्षिण (उष्णकटिबंधीय) अमेरिका एवं उत्तर-पूर्वी ब्राजील में प्राप्त होता है। भारत में प्रथम बार 16 वीं सदी में गोवा में पुर्तगाली व्यापारी इसको लेकर आए। भारत के पश्चिमी तट पर विशेषत गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडू, केरल, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम-बंगाल एवं अन्य क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है।

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