मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में एक कड़ा फैसला ले सकते हैं! बिहार के सीएम नीतीश कुमार को तकरीबन दो दशक से गठबंधन की सरकार चलाने का तजुर्बा है। उनके कार्यकाल का सर्वाधिक समय बीजेपी के साथ बीता। अब आरजेडी की अगुआई वाले महागठबंधन के साथ उनकी सरकार है। कभी इधर तो कभी उधर नीतीश कुमार भले होते रहे, लेकिन इतने लाचार-बेबस कभी नहीं दिखे। एनडीए में रहते हुए उन्होंने जिस ठसक से सरकार चलायी, वह ठसक इस बार महागठबंधन सरकार के सीएम बनने पर दिखाई नहीं देती। महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल आरजेडी के विधायक और मंत्रियों के कारण उनकी लगातार फजीहत हो रही है। चुप रहने में ही लोग भले उनकी भलाई देख रहे हैं, लेकिन यह भी समझ लेना चाहिए कि नीतीश की चुप्पी कई बार अप्रत्याशित और कड़े फैसले के रूप में भी सामने आती रही है। आश्चर्य है कि नयी सरकार बनने और मंत्रियों के शपथ ग्रहण के साथ ही नीतीश की फजीहत शुरू हुई थी। आरजेडी कोटे के दो मंत्रियों- सुधाकर सिंह और कार्तिकेय सिंह को लेकर जब फजीहत होने लगी तो उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने का फैसला नीतीश को लेना पड़ा। उसके बाद कार्तिकेय ने तो चुप्पी साध ली, लेकिन सुधाकर सिंह अगिया बैताल बन गये। अमूमन उनके व्यंग्य वाण नीतीश पर चलने लगे। शब्दों की मर्यादा और शालीनता नीतीश कुमार की खासियत रही है। इसके बावजूद अपनी ही सरकार के सीएम के लिए सुधाकर सिंह ने शिखंडी, नपुंसक, भिखमंगा जैसे मर्यादा के प्रतिकूल शब्दों से वेधना शुरू किया। उनका यह सिलसिला अब भी उसी तेवर में बरकार है। सुधाकर के शब्द वाण से आहत नीतीश ने आरजेडी के पाले में मामले को डाल दिया। आरजेडी नेता और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी सुधाकर पर नाराजगी जतायी। पार्टी ने उन्हें इसके लिए शो काज भी दिया। सुधाकर ने भी तल्खी के अंदाज में ही, लेकिन शालीन भाषा में जवाब दे दिया। मामला ठंडे बस्ते में है।
आरजेडी कोटे से मंत्री बने इजरायल मंसूरी की वजह से अब नीतीश कुमार की फजीहत हो रही है। मंसूरी पर आरोप है कि मुजफ्फरपुर में हुई एक हत्या में उनकी संलिप्तता है। बीजेपी विधायकों ने जब यह मामला उठाया तो नीतीश कुमार ने 18 दिन पहले आश्वस्त किया कि इसकी जांच करायी जाएगी। शुक्रवार को विधानसभा में फिर बीजेपी सदस्यों ने यह मामला उठाया। अब तो एक आरोप यह भी लगा है कि जिस घर में हत्या हुई, उसी घर के एक और सदस्य की हत्या की धमकी मंसूरी दे रहे हैं। आश्चर्य यह कि नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने जब सीएम से पूछा कि इजरायल मंसूरी के खिलाफ जांच का आपने आश्वासन दिया था, उसका क्या हुआ। इस पर जवाब देने के बजाय नीतीश कुमार चुप बैठे रहे। इससे पहले शायद ही कभी ऐसे मुद्दों पर नीतीश चुप रहे हों।
इजरायल मंसूरी पर पिछले महीने मुजफ्फरपुर के कांटी में राहुल सहनी की हत्या कराने का आरोप है। इजरायल मंसूरी उसी क्षेत्र के विधायक हैं। मृतक के परिजनों ने लिखित रूप में आरोप लगाया कि हत्या के पीछे मंत्री इजरायल मंसूरी का हाथ है। आरोप है कि पुलिस ने मृतक के परिजनों के आवेदन के अनुसार एफआईआर दर्ज नहीं की। उल्टे एफआईआर का आधार एक पुलिसकर्मी के बयान को बनाया गया। जो एफआईआर दर्ज हुई, उसमें मंत्री इजरायल मंसूरी का नाम नहीं था। बीजेपी प्रतिनिधिमंडल ने इस मुद्दे पर बिहार के डीजीपी से भी मुलाकात की और वस्तुस्थिति से अवगत कराया। विधानसभा में भी यह मामला उठा तो सीएम नीतीश कुमार ने जांच का आश्वासन दिया था। विधानसभा में दोबारा यह मुद्दा उठा कर बीजेपी सदस्य नीतीश से जांच की प्रगति जानना चाह रहे थे।
आरजेडी कोटे के तीन और मंत्रियों की वजह से भी नीतीश कुमार की फजीहत होती रही है। आलोक मेहता ने सवर्णों के बारे में बेतुकी बातें कहीं थीं। नीतीश की पार्टी जेडीयू को भी वह बयान नागवार लगा था। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने तो रामचरित मानस को नफरती ग्रंथ साबित करने का अभियान ही चला रखा है। चंद्रशेखर को नीतीश ने शुरू में टोका भी था, लेकिन उनके अपने स्टैंड पर कायम रहने वाले बयान के बाद उन्होंने चुप रहने में ही भलाई समझी। चंद्रशेखर के बयान पर भी जेडीयू ने आपत्ति जतायी थी। सुरेंद्र यादव भी नीतीश कैबिनेट में हैं। उन्होंने सेना को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया था। जब किसी मुद्दे पर नीतीश चुप्पी साध लें तो इसे ‘मौनं स्वीकृति लक्षणम्’ के अंदाज में नहीं, बल्कि उनकी नाराजगी के रूप में देखना ज्यादा उचित होगा। उनकी चुप्पी कब विस्फोटक रूप ले ले, कहा नहीं जा सकता।