यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या चीन और भारत के बीच विवाद बढ़ सकता है या नहीं! चीन है कि मानता नहीं। उसे छेड़ने की आदत है। इसी आदत से उसने दुनिया में अपना नाम खराब किया। और नाम ही क्यों, उसकी विश्वसनीयता भी लगातार घटती जा रही है। अब देखिए, अरुणाचल प्रदेश पर वह किस तरह की बेतुकी बातें कर रहा है। चीन ने सोमवार को दावा किया कि अरुणाचल प्रदेश ‘हमेशा से’ उसका क्षेत्र रहा है। गौर कीजिए, चीन कह रहा है कि अरुणाचल हमेशा से उसका क्षेत्र रहा है। अब सोचिए भला, दुनिया इस दावे पर चीन को बदमिजाज और बेतुका न कहे तो और क्या ही कहेगी। भारत ने भी यही किया। भारत ने बीजिंग के इस दावे को ‘बेतुका’ और ‘हास्यास्पद’ बताकर खारिज कर दिया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियां ने शनिवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर के आए बयान पर सोमवार को प्रतिक्रिया दी। जयशंकर ने अरुणाचल प्रदेश पर चीन के बार-बार के दावों को हास्यास्पद बताकर कहा था कि यह सीमावर्ती प्रदेश ‘भारत का स्वाभाविक हिस्सा’ है। चीन-भारत सीमा का कभी सीमांकन नहीं किया गया है और इसे पूर्वी क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, पश्चिमी क्षेत्र और सिक्किम खंड में विभाजित किया गया है।’ लिन ने कहा, ‘भारत ने 1987 में अवैध कब्जे वाले चीन के इलाके पर तथाकथित ‘अरुणाचल प्रदेश’ का गठन किया। विदेश मंत्री एस जयशंकर के आए बयान पर सोमवार को प्रतिक्रिया दी।जयशंकर के इस बयान पर चीन को मिर्ची लगनी थी, सो लगी। उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियां ने कहा, ‘पूर्वी क्षेत्र में जांगनान अरुणाचल प्रदेश को चीन इसी नाम से पुकारता है हमेशा से चीन का क्षेत्र रहा है।’ उन्होंने दावा किया कि ‘भारत के अवैध कब्जे तक’ चीन ने हमेशा क्षेत्र पर प्रभावी प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया है। उन्होंने कहा कि यह एक बुनियादी तथ्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
उधर, जयशंकर ने शनिवार को एक प्रश्न के उत्तर में कहा था, ‘यह कोई नया मुद्दा नहीं है। मेरा मतलब है कि चीन ने दावा किया है और वह अपने इसी दावे को दुहराया है। दावे शुरू से ही हास्यास्पद हैं और आज भी हास्यास्पद बने हुए हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए, मुझे लगता है कि हम इस पर बहुत स्पष्ट, बहुत सुसंगत रहे हैं। और मुझे लगता है कि आप जानते हैं कि यह सीमा वार्ता का हिस्सा होगा जो हो रही है।’ भारतीय विदेश मंत्री ने ये बातें नैशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज में कहीं।
चीन के सरकारी मीडिया ने विदेश मामलों के प्रवक्ता ली जियां से जयशंकर की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया मांगी। इस पर लिन ने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का कभी निपटारा नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, ‘चीन-भारत सीमा का कभी सीमांकन नहीं किया गया है और इसे पूर्वी क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, पश्चिमी क्षेत्र और सिक्किम खंड में विभाजित किया गया है।’ लिन ने कहा, ‘भारत ने 1987 में अवैध कब्जे वाले चीन के इलाके पर तथाकथित ‘अरुणाचल प्रदेश’ का गठन किया। विदेश मंत्री एस जयशंकर के आए बयान पर सोमवार को प्रतिक्रिया दी।
जयशंकर ने अरुणाचल प्रदेश पर चीन के बार-बार के दावों को हास्यास्पद बताकर कहा था कि यह सीमावर्ती प्रदेश ‘भारत का स्वाभाविक हिस्सा’ है। जयशंकर के इस बयान पर चीन को मिर्ची लगनी थी, सो लगी। उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियां ने कहा, ‘पूर्वी क्षेत्र में जांगनान अरुणाचल प्रदेश को चीन इसी नाम से पुकारता है हमेशा से चीन का क्षेत्र रहा है।’चीन ने तभी एक बयान जारी कर इसका कड़ा विरोध किया था और जोर देकर कहा था कि भारत का कदम अवैध और अमान्य है। शनिवार को एक प्रश्न के उत्तर में कहा था, ‘यह कोई नया मुद्दा नहीं है। मेरा मतलब है कि चीन ने दावा किया है और वह अपने इसी दावे को दुहराया है। दावे शुरू से ही हास्यास्पद हैं और आज भी हास्यास्पद बने हुए हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए, मुझे लगता है कि हम इस पर बहुत स्पष्ट, बहुत सुसंगत रहे हैं। और मुझे लगता है कि आप जानते हैं कि यह सीमा वार्ता का हिस्सा होगा जो हो रही है।चीन का रुख आज भी वही है।’ इस महीने यह चौथी बार है जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर अपने हक की बात की है। बीजिंग ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9 मार्च को अरुणाचल प्रदेश गए थे, तब भी चीन ने राजनियक स्तर पर विरोध दर्ज कराया था।