भारत में भी आर्थिक मंदी के आसार दिखाई दे रहे हैं! अमेरिका और यूरोप के बाद आर्थिक मंदी अब भारत में भी दस्तक दे सकती है! वैश्विक स्तर पर मंदी की चर्चाएं धीरे-धीरे तेज हो रही हैं। कहा जा रहा है दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों द्वारा लगातार ब्याज दरों में बढ़ोतरी मंदी के लिए एक खुला बुलावा है। 40 वर्षों की सबसे अधिक महंगाई आने के बाद अमेरिका का केंद्रीय बैंक काफी आक्रामक होकर ब्याज दरें बढ़ा रहा है। इससे बाकी देशों को भी नीतिगत दरों में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है। ऐसे में कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि केंद्रीय बैंक दुनिया को मंदी के करीब ले जाने पर आमादा हैं। अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर धीमी हो जाने या इनके सिकुड़ने के बावजूद केंद्रीय बैंक दरों को बढ़ा रहे हैं। केंद्रीय बैंक महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं, लेकिन इससे देशों की विकास दर धीमी हो रही है।
इस साल करीब 90 केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में इजाफा किया है। इनमें से आधों ने एक बार में कम से कम 0.75 फीसदी का इजाफा किया है। अधिकांश ने एक से अधिक बार ऐसा किया है। इसका परिणाम है कि मौद्रिक नीति 15 वर्षों में सबसे सख्त हो गई है। जेपी मॉर्गन के अनुसार, चालू तिमाही में प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा साल 1980 के बाद की सबसे बड़ी दर वृद्धि होगी और यह यहीं नहीं रुकने वाली है। आज यूएस फेड प्रमुख ब्याज दरों में तीसरी बार 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है।
ब्याज दरें बढ़ने से इकोनॉमी की ग्रोथ रेट कम हो जाने का डर रहता है। इकोनॉमिस्ट प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं, ‘ब्याज दरें बढ़ाने से बाजार में लिक्विडिटी (पैसों की आवक) कम होती है, जिससे देश की विकास दर प्रभावित होती है। ग्रोथ कम रही, तो बेरोजगारी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। प्रति व्यक्ति आय में भी कमी आएगी।’ कोरोना महामारी और भू-राजनीतिक मुद्दों सहित कई कारणों से पहले से ही देशों की इकोनॉमी प्रभावित हैं। ब्याज दरें बढ़ने से इन पर काफी बुरा असर पड़ेगा। यह दुनियाभर में मंदी को आमंत्रित कर सकता है।
अमेरिका और यूरो क्षेत्र भले ही मंदी की ओर बढ़ रहे हों, लेकिन भारत पर इसका असर पड़ने की आशंका नहीं है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने मंगलवार को यह बात कही। उसने कहा कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था से बहुत ज्यादा जुड़ी हुई नहीं है। एसएंडपी ग्लोबल में मुख्य अर्थशास्त्री एवं प्रबंध निदेशक पॉल एफ ग्रुएनवाल्ड ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी व्यापक घरेलू मांग की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था से बहुत ज्यादा अलग है। हालांकि, भारत ऊर्जा का शुद्ध आयात करता है। आपके पास विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार है। वहीं, आपकी कंपनियां भी अच्छा मुनाफा कमा रही हैं।’’ ग्रुएनवाल्ड ने कहा कि देखा जाए तो भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था से कभी भी पूरी तरह से जुड़ा नहीं था। इसलिए यह वैश्विक बाजारों से तुलनात्मक रूप से स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूरोप में मंदी आती है, तो बहुत कुछ वैश्विक फंड के प्रवाह पर भी निर्भर करेगा।
एशियाई विकास बैंक ने एशियाई क्षेत्र के वृद्धि के अनुमान को घटा दिया है। ऐसा यूक्रेन युद्ध, बढ़ती ब्याज दरें और चीन की अर्थव्यवस्था की मंद पड़ी रफ्तार के चलते किया गया है। एडीबी ने विकासशील एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए वृद्धि के अनुमान को पहले के 5.2 फीसदी से घटाकर 4.3 फीसदी कर दिया है। बैंक ने 2023 के लिए वृद्धि दर के अनुमान को 5.3 फीसदी से घटाकर 4.9 फीसदी किया गया है।
एडीबी के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि 3 दशक में ऐसा पहली बार होगा कि अन्य विकासशील एशियाई अर्थव्यवस्थाएं चीन की तुलना में अधिक तेजी से वृद्धि करेंगी। चीन की अर्थव्यवस्था के इस वर्ष 3.3 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है। यह 2021 के 8.1 फीसदी के अनुमान और एडीबी के अप्रैल के पांच फीसदी के अनुमान से कहीं कम है।
भारत और मालदीव की अर्थव्यवस्था की वृद्धि सबसे तेज रहने का अनुमान लगाया गया है। एडीबी का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सात फीसदी और मालदीव की 8.2 फीसदी रहेगी। वहीं, श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में 8.8 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है।एडीबी ने एशिया में महंगाई का जो अनुमान जताया है, वह अमेरिका और अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिए अनुमान से कम गंभीर हैं। 2022 के लिए यह 4.5 फीसदी और अगले वर्ष के लिए इसके चार फीसदी के स्तर पर रहने का अनुमान है। एडीबी की रिपोर्ट में कहा गया कि ज्यादातर दक्षिणपूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की रफ्तार कायम रहेगी, क्योंकि क्षेत्रों को पर्यटन के लिए खोल दिया गया है और मांग में भी सुधार आया है।