अमेरिका में अब भारतीयों पर संकट भी आ सकता है! डोनल्ड ट्रम्प ने रिपब्लिकन आयोवा कॉकस में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 30 अंकों से रिकॉर्ड जीत हासिल की और तुरंत अमेरिका-मेक्सिको सीमा को सील करने की अपनी योजना बता दी। 2019 में जो बाडेन ने एक साहसिक घोषणा की थी- जिसे भी दमन का डर है, उसे तुरंत सीमा की तरफ भगाना चाहिए। यह बयान अब बाइडेन पर भारी पड़ रहा है। तब से अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर पर अप्रवासियों की बाढ़ आ गई है। पिछले साल सीमा पर गश्त करने वाले एजेंटों ने अवैध रूप से प्रवेश करने की कोशिश कर रहे लोगों के साथ 25 लाख से अधिक झड़प की सूचना दी। बाइडेन फिर से राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे हैं तो अवैध आव्रजन एक विस्फोटक मुद्दा बन गया है। उनके संभावित रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी ट्रंप सीमा पर ‘अराजकता’ का मुद्दा बार-बार उठा रहे हैं। उन्होंने वादा किया है कि अगर वो जीते तो ‘अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़े घरेलू निर्वासन अभियान’ को अंजाम देंगे। यह एक ऐसे व्यक्ति का वादा है जिसने सीमा पर ‘दीवार’ खड़ी की और ‘अमेरिका को सुरक्षित रखने’ के लिए सीमा नियंत्रण के कठोर कानून बनाए। इसलिए उनके वादों पर भरोसा किया जा सकता है।
अवैध आव्रजन इतना ज्यादा बढ़ गया है कि डेमोक्रेटिक गवर्नर और मेयर भी इस पर बढ़-चढ़कर बातें कर रहे हैं। अस्थायी आश्रय स्थल अवैध प्रवासियों से खचाखच भर गए हैं और अमेरिकी खजाने को चूना लग रहा है। अमेरिकी शहरों में हताशा का माहौल है। शहरों को हजारों प्रवासियों को आवास और भोजन देने के लिए के ‘जुगाड़’ करना पड़ रहा है। बाइडेन प्रशासन दो साल से अधिक समय से अवैध प्रवासियों के संकट को नजरअंदाज किया हुआ है। व्हाइट हाउस ने जोर देकर कहा कि यह कोई समस्या नहीं है और रिपब्लिकन राजनीति कर रहे हैं। मुख्यधारा के मीडिया ने ‘सब ठीक है’ का नैरेटिव आगे बढ़ाय तो दक्षिणपंथी मीडिया संस्थान अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर अवैध प्रवासियों के उमड़े समुद्र के ड्रोन फुटेज दिखा रहे थे। इन हालात में अमेरिका में अवैध तरीके से प्रवेश करने वाले भारतीयों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय बन गई है। पिछले साल 96 हजार से अधिक भारतीयों को पकड़ा गया था। अमेरिका में रहने वाले संपन्न भारतीय भले ही इस बारे में खुलकर बात न करें, लेकिन राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन कैंडिडेट अवैध आव्रजन को प्रमुख मुद्दा बना रहे हैं। निक्की हेली और विवेक रामास्वामी जो हाल ही में चुनावी रेस छोड़ दी है इस बात का लगातार हवाला देते हैं कि उनके परिवार कानूनी रूप से अमेरिका आए और उन्होंने कड़ी मेहनत की, जिसका मतलब है कि उनके मन में ‘डंकी रूट’ से आने वालों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है।
यह देखना होगा कि क्या अवैध भारतीयों की संख्या में वृद्धि से भारतीय अमेरिकियों को एक सफल, शिक्षित और अच्छी तरह से आत्मसात समुदाय के रूप में देखने की धारणा भी बदलेगी। अतीत में भारत समेत जिन देशों से कभी अमेरिका में अवैध प्रवास नहीं हुआ करता था, पिछले दो वर्षों से उन देशों के भी अवैध प्रवासियों की बाढ़ आ गई है। इनकी संख्या अमेरिका में रह रहे प्रवासियों की कुल आबादी की आधी तक पहुंच गई है। अगर ट्रम्प जीत जाते हैं तो वो भारतीय प्रवासियों पर स्पष्ट रुख नहीं दिखाएंगे। ध्यान रहे कि पिछली बार उनके अप्रवासी विरोधी ब्रिगेड ने न केवल अवैध अप्रवासियों का पीछा किया बल्कि कानूनी रूप से आने वालों को भी उतना ही परेशान किया। ट्रंप प्रशासन में एच-1बी वीजा की प्रक्रिया पर मनमाने और निरंकुश नियम थोप दिए गए थे। वीजा आवेदनों की रिजेक्शन रेट बढ़ा, वीजा की अवधि तीन से एक वर्ष तक कम कर दी गई और किसी विशेष व्यवसाय में क्या शामिल है, इसकी परिभाषा ही बदल दी गई। भारतीय श्रमिक बुरी तरह प्रभावित हुए क्योंकि एच-1बी वीजा से अमेरिका जाने वालों में सबसे ज्यादा संख्या उनकी ही है।
याद करें कि स्टीव बैनन ने कहा था कि सिलिकॉन वैली में दक्षिण एशिया के बहुत ज्यादा सीईओ हैं। भला हो अमेरिकी कंपनियों का जिन्होंने एक के बाद एक मुकदमे किए और जजों ने ट्रंप प्रशासन के नियमों को खारिज किया। इसके बाद ही स्थिति में सुधार हुआ, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। बाइडेन ने ट्रम्प के ‘बाय अमेरिकन एंड हायर अमेरिकन’ एग्जिक्युटिव ऑर्डर को रद्द कर दिया था जो ट्रंप की जीत के बाद आसानी से वापस आ सकता है। भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों को इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाना होगा और यह बताना होगा कि वो किसके साथ खड़े हैं- कानून का पालन करने वाले वैध प्रवासियों के या व्यवस्था भंग करने वालों के साथ।
नई दिल्ली को इस समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए और उन एजेंटों और प्रभावशाली लोगों के नेटवर्क पर शिकंजा कसना चाहिए, इंस्टाग्राम पर जिनकी खुशनुमा कहानियां पंजाब और गुजरात जैसे राज्यों में अमेरिका के लिए कई तरह के मिथक गढ़ती हैं। वहीं, अवैध प्रवासियों के शोषण की दुखद कहानियां कभी सामने नहीं आतीं। विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादातर भारतीय अवैध प्रवासी आर्थिक कारणों से अमेरिका आ रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब बेरोजगारी का संकट पूरे भारत में है तो तो केवल दो राज्य के लोग ही ‘डंकी रूट’ से अमेरिका पहुंचने को आमादा क्यो हैं। जब हताश और जिद्दी लोग अमेरिकी सीमा पर पहुंचते हैं तो उनमें से लगभग सभी जाति, लिंग या धर्म के आधार पर भेदभाव का दावा करते हुए शरण मांगते हैं। कुछ तो भारत से राजनेताओं के पत्र भी साथ ले जाते हैं। अमेरिका की बात करें तो वहां सिस्टम धराशायी हो चुका है और वकीलों की बल्ले-बल्ले हो रही है। दोनों राजनीतिक पार्टियां दशकों से किसी फॉर्म्युले पर सहमत नहीं हो पाई हैं कि आखिर अवैध प्रवासियों की समस्या से कैसे निपटा जाए। इसे टालना ही आसान है।