अब उड़ीसा में नवीन पटनायक बीजेपी से गठबंधन कर सकते हैं! ओडिशा में बीजद के साथ गठबंधन से भाजपा को लाभ है, यह आसानी से समझा जा सकता है। सवाल है कि नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली पार्टी ने गठबंधन का रास्ता क्यों चुना जबकि वो 2009 से राज्य में सभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव जीत रही है? ओडिशा के दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी अब सहयोगी बन गए हैं, विपक्ष की जगह के लिए एकमात्र दावेदार के रूप में बहुत हाशिये पर पड़ी कांग्रेस के लिए इसका क्या मतलब है? बीजेडी के कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि 15 साल बाद भाजपा के साथ फिर से जुड़ने के पटनायक के फैसले से पता चलता है कि वह फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं ताकि करीब 25 वर्षों के मुख्यमंत्री के रूप में रिकॉर्ड कार्यकाल की दहलीज पर अपनी विरासत का निर्माण कर सकें।उन्होंने कहा कि पार्टी के एकमात्र नेता की बढ़ती उम्र की चर्चाओं के बीच सरकार और पार्टी में बेचैनी महसूस की जा रही है। यह अलग बात है कि पटनायक के निर्विवाद प्रभाव और उनकी पार्टी की जीत की लय बरकरार है। हाल के सप्ताहों में अरबिंदा धाली, प्रदीप पाणिग्रही, प्रशांत जगदेव और देबासीस नायक जैसे विधायकों सहित बीजद के कुछ नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। कई लोगों का मानना है कि नए चेहरों को लाने के लिए कई मौजूदा सांसदों और विधायकों को पार्टी के टिकट देने से इनकार करने की पटनायक की प्रवृत्ति को देखकर कुछ बेंच लीडर भी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो जाएंगे। गठबंधन इस समस्या का कुछ हद तक समाधान करेगा। यह स्पष्ट है कि पटनायक अपने विश्वासपात्र पूर्व नौकरशाह केवी पांडियन को ड्राइविंग सीट पर बैठते देखना पसंद करते हैं। पांडियन राज्यभर में यात्रा कर रहे हैं और सीएम की ओर से मीटिंग ले रहे हैं। बीजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘बीजेडी जितने लंबे समय तक सत्ता में रहेगी, उतना ही ज्यादा महत्वाकांक्षी स्थानीय नेता टिकट या पद चाहेंगे। उम्मीद पूरी नहीं होने पर वो खासकर बीजेपी में अवसर तलाशेंगे।’ इसलिए, बीजेडी के समर्थकों का मानना है कि पार्टी प्रमुख के लिए अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा से दोस्ती करना ही सही लगता है, क्योंकि अब उनकी मुख्य रुचि लोकसभा सीटों में होगी।ओडिशा में कांग्रेस का कुछ खास बच नहीं गया है। उसने प्रदेश में पहले बीजेडी को और फिर बीजेपी को अपनी जगह घेरने का मौका दिया और वो खुद तीसरे स्थान पर खिसक गई। अब वह ओडिशा के विपक्ष में खुद को अकेली पाएगी। कांग्रेस के लिए यह मौका भी है और चुनौती भी। एक नाखुश बीजेडी नेता ने कहा, ‘कांग्रेस को सिर्फ घर वापसी करने वाले नेताओं को ही नहीं, बीजेडी में बढ़ती बेचैनी का फायदा उठाने की कोशिश करनी चाहिए।’
इसका मतलब यह भी है कि भाजपा ने फिलहाल बीजेडी को हराने और ओडिशा की सत्ता में आने की अपनी महत्वाकांक्षा को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। उसकी प्राथमिकता ज्यादा से ज्यादा सीटों के साथ मोदी सरकार का तीसरे कार्यकाल शुरू करने में है। ऐसा लगता है कि इसने पार्टनर-इन-वेटिंग बनने के लिए भी समझौता कर लिया है, जैसे कि यह बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जेडीयू को ढो रहा है। यदि गठबंधन ओडिशा में अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव जीतता है, तो ऐसा लगता है कि बीजेडी ही राज्य सरकार में कोई सत्ता-साझाकरण नहीं चाहेगी। इसके बदले वह केंद्र की सत्ता में शामिल नहीं होगी।
ओडिशा में कांग्रेस का कुछ खास बच नहीं गया है। उसने प्रदेश में पहले बीजेडी को और फिर बीजेपी को अपनी जगह घेरने का मौका दिया और वो खुद तीसरे स्थान पर खिसक गई। पांडियन राज्यभर में यात्रा कर रहे हैं और सीएम की ओर से मीटिंग ले रहे हैं। बीजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘बीजेडी जितने लंबे समय तक सत्ता में रहेगी, उतना ही ज्यादा महत्वाकांक्षी स्थानीय नेता टिकट या पद चाहेंगे। उम्मीद पूरी नहीं होने पर वो खासकर बीजेपी में अवसर तलाशेंगे।’ इसलिए, बीजेडी के समर्थकों का मानना है कि पार्टी प्रमुख के लिए अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा से दोस्ती करना ही सही लगता है, क्योंकि अब उनकी मुख्य रुचि लोकसभा सीटों में होगी।ओडिशा में कांग्रेस का कुछ खास बच नहीं गया है।अब वह ओडिशा के विपक्ष में खुद को अकेली पाएगी। कांग्रेस के लिए यह मौका भी है और चुनौती भी। एक नाखुश बीजेडी नेता ने कहा, ‘कांग्रेस को सिर्फ घर वापसी करने वाले नेताओं को ही नहीं, बीजेडी में बढ़ती बेचैनी का फायदा उठाने की कोशिश करनी चाहिए।’