बिहार में जिस तरीके का राजनैतिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है वह चिंता का विषय है! बिहार के पॉलिटिकल क्राइसिस में नीतीश कुमार बहुत कुछ खोनेवाले नहीं हैं। उनकी कुर्सी पर आंच नहीं आनेवाली, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। मगर पटना से दूर बैठा एक शख्स टेंशन में जरूर होगा। अब तक विपक्ष की चेहरा बनने की आतूर ममता बनर्जी से निपटे ही थे कि नीतीश कुमार मैदान में आने को बेचैन हैं। राहुल गांधी की पार्टी भले ही बिहार की सत्ता में भागीदार होने जा रही लेकिन उनकी टेंशन दूसरी है। गांधी परिवार का कोई शख्स राजनीति में सीएम बनने के लिए नहीं आता है, वो या तो प्रधानमनंत्री बनता या फिर अपने हिसाब से बनवाता है।
राहुल के लिए चुनौती?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक महत्वकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। उनकी पार्टी जेडीयू के नेता उनको सार्वजनिक तौर पर पीएम मीटिरियल बताने से नहीं चूकते हैं। खुले तौर पर पीएम मोदी के बराबर खड़ा करने से भी नहीं हिचकते हैं। गाहे-बगाहे बिहार मॉडल का जिक्र करने भी संकोच नहीं करते हैं। राहुल गांधी की क्रेडिबिटी को मीडिया के जरिए ही सही काफी गिरा दिया गया है। राजनीति में परसेप्शन का खेल बड़ा मायने रखता है। चाहे जैसे भी हो जीत को सिर माथे पर बिठाया जाता है। नीतीश कुमार के साथ ये प्लस पॉइंट है कि वो जिसके भी साथ रहे उसकी सरकार पाटलिपुत्र पर राज की। 2015 की मोदी लहर में वो (नीतीश कुमार) मोदी-शाह की जोड़ी को मात देकर बड़ा चेहरा बन चुके हैं। आरजेडी और बीजेपी बारी-बारी से सत्ता सुख का आनंद लेती रही। मगर कुर्सी तक ये दोनों पार्टियां पहुंच नहीं बना सकी। कई क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दूरी बनाने में बेहतरी समझते हैं। चूंकि नीतीश कुमार समाजवादी प्रोडक्ट हैं तो ऐसे में अगर वो दूसरी पार्टियों को साध लेते हैं तो 2024 में राहुल गांधी की जगह विपक्ष का चेहरा हो सकते हैं। जिसका कॉपी राइट अब तक राहुल गांधी के पास है।
मौजूदा मोदी सरकार 2024 तक सत्ता में रहेगी। दो साल बाद उसे चुनाव का सामना करना ही होगा। बेरोजगारी, महंगाई और दूसरे मुद्दों को लेकर एंटी इनकंबेंसी से 10 साल बाद बचना मुश्किल है। हालांकि हालिया मीडिया सर्वे के मुताबिक किसी तरह का खतरा नहीं दिखता है। मगर दो साल का वक्त कम नहीं होता है। अगर ढंग से तैयारी की जाए तो मोदी-शाह की जोड़ी की नींद जरूर उड़ाई जा सकती है। नीतीश कुमार जैसा मंझा राजनेता अपने लिए अवसर ढूंढ सकता है। राहुल गांधी और कांग्रेस की नजर 2024 पर है तो नीतीश कुमार भी अपने लिए मौका खोज रहे हैं। विपक्ष के पास कोई क्रेडिबल चेहरा नहीं है, जिसके बदौलत वो अपने मिशन को आगे बढ़ाए। इसका फायदा बीजेपी को मिल रहा है और वो सीधे-सीधे वॉकओवर कर जा रही है। गांधी परिवार अपनी समस्याओं में उलझा है या फिर केंद्रीय एजेंसियों के जरिए उलझा दिया गया है। ऐसे में 2024 के लिए नीतीश कुमार तुरूप का पत्ता साबित हो सकते हैं। स्वाभाविक तौर नरेंद्र मोदी को नीतीश कुमार पसंद नहीं करते हैं, मगर सियासी मजबूरी उन्हें बांधे रखती है। अब इन तमाम बंधनों से नीतीश कुमार मुक्त होते दिख रहे हैं।
नीतीश कुमार चाहते तो आराम से बीजेपी के साथ मिलकर बिहार की सत्ता को संभाल सकते थे। उनको डिस्टर्ब करनेवाला कोई नहीं था। मगर उनको लगने लगा कि ये ज्यादा दिनों तक चलनेवाला नहीं है। मोदी और शाह की जोड़ी उनको निगल जाएगी। दूर की राजनीति पर नजर रखनेवाले नीतीश ने विपक्ष की राह पकड़ने की तैयारी कर ली है। मुमकिन है वो कांग्रेस गठबंधन वाले समीकरण के साथ चले जाएं। जिसकी उम्मीद सबसे ज्यादा है। वर्तमान में पटना से दूर बैठे राहुल गांधी के लिए शुभ संकेत हो सकता है। कम से कम बिहार जैसे राज्य में उनकी पार्टी सत्ताधारी गठबंधन में आ जाएगी। कांग्रेस के लिए तो ये डूबते को तिनके का सहारा जैसा है। जहां कुछ भी नहीं है, वहां कुछ तो मिलेगा। मगर सवाल उठता है कि नीतीश कुमार को इससे क्या हासिल होगा? 2024 लोकसभा चुनाव की राजनीति के हिसाब से देखें तो नीतीश कुमार के लिए फायदेमंद हो सकता है। जब वो बिहार की राजनीति से निकलकर रायसीना हिल्स की सियासत में खुद को मजबूत कर पाएंगे। जबकि राहुल गांधी के लिए ये कहने को हो सकता है कि उनके पास नीतीश कुमार हैं।