बिहार के मुख्यमंत्री अब फिर से बीजेपी में शामिल हो सकते हैं! राजनीत में असंभव कुछ नहीं होता। और नीतीश कुमार तो राजनीति में एक स्पेस रख कर ही अपनी नीतियों को अंजाम देते रहे हैं। इसे केवल आप संयोग नहीं कह सकते जब सामाजिक न्याय के पुरोधा लालू प्रसाद की पार्टी में ये पलटू राम के रूप में जाने जाते थे। लगभग 2013 से एनडीए की राजनीत में बीजेपी और जेडीयू के बीच दूरी बनने लगी तब भी राजनीतिक गलियारों में इस दूरी की परिणीति आरजेडी के साथ सरकार बनाने की नहीं थी। मगर ऐसा हुआ। फिर 2017 में जब बीच में ही आरजेडी को छोड़ कर बीजेपी के साथ सरकार बना ली तब भी यह अनुमान आम तौर पर नहीं लगाया जा रहा था। और अब 2020 में जब बीजेपी को बीच मझधार में छोड़ कर आरजेडी के साथ सरकार बना ली तो बीजेपी वालों को ही विश्वास नहीं हो रहा था।
जन सूरज यात्रा पर निकले प्रशांत किशोर ने सिर्फ कयास नहीं लगाया बल्कि तर्कपूर्ण ढंग से स्थितियों को राजनीतिक गलियारों में रखा भी। प्रश्न तो राजनीतिक गलियारों में आज भी तैर रहे हैं कि जेडीयू जब गठबंधन में नहीं है तब हरिवंश नारायण का राज्य सभा में उप सभापति बने रहना एक संदेह तो पैदा करता है। पीके का साफ कहना है कि नीतीश कुमार अपनी बातों को भाया हरिवंश नारायण पहुंचा भी रहे हैं। और पीके तो विपक्षी एकता के मुहिम पर ही सवाल उठा रहे हैं कि इसके बहाने नीतीश कुमार अपने भीतर की इच्छाओं को फलीभूत करने को स्वांग भर रहे हैं। और किसी पल बीजेपी के साथ जाकर एनडीए सरकार का नेतृत्व संभालेंगे।
स्वास्थ विभाग के एक कार्यक्रम में बुधवार को नीतीश कुमार ने जमकर लालू राबड़ी की सरकार को कोसा। बगैर नाम लिए नीतीश कुमार पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्हीं से पूछा कि याद है ना पहले शाम 6 बजे के बाद दुकानें बंद हो जाति थी। लोग सड़कों पर नहीं निकलते थे। अपराधियों का बोलबाला था। ऐसा वह तब कह रहे थे जब नीतीश कुमार के बगल में तेजस्वी यादव भी बैठ हुए थे। नीतीश कुमार बार-बार तब के कुशासन को जनता के सामने परोसने के लिए पत्रकारों से आग्रह कर रहे थे। नीतीश कुमार लालू राबड़ी सरकार की आलोचना यूं ही तो नहीं कर रहे होंगे।
राज्य में हो रहे मोकामा और गोपालगंज विधान सभा के प्रति पूरे जेडीयू का ही नजरिया उदासीन है। स्थानीय नेता को अगर छोड़ दें तो बड़े नेताओं ने अपनी उपस्थिति दोनों उप चुनाव वाले स्थल पर प्रचार के रूप में नहीं दर्ज कराई है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि जेडीयू नहीं चाहती है की आरजेडी विधायकों के उस संख्या के करीब पहुंचे जहां खुद से सरकार बनाने का समीकरण आरजेडी को हाथ लगे।
महागठबंधन की सरकार में शामिल होने के बाद राज्य में दो आयोग बने। एक अनुसूचित जनजाति आयोग तथा दूसरा ईबीसी आयोग। मगर जेडीयू ने इस आयोग के दोनों अध्यक्ष पद अपने खाते में डाल आरजेडी के भीतर की बेचनी बढ़ा दी। आरजेडी के रामबली सिंह ने तो खुलकर विरोध किया और अपनी पार्टी के फोरम पर भी इस सवाल को रखा।पूर्व मुख्यमंत्री और हम प्रमुख जीतन राम मांझी मौजूदा वक्त में नीतीश कुमार के भरोसेमंद साथियों में एक हैं। पीके की ओर से पाला बदलने की बात कहने के बाद अब मांझी ने भी कुछ ऐसा ही बयान दे दिया है। मांझी ने नीतीश कुमार की तुलना भूतपूर्व सीएम महामाया प्रसाद से कर दी है। मांझी ने कहा कि महामाया बाबू ने भी कई बार पाला बदलकर सरकार बनाई। मांझी ने 1967 की याद दिलाई जब महामाया प्रसाद सिन्हा अपने पार्टी के इकलौते विधायक होते हुए भी सीएम बन गए। मांझी के हिसाब से ‘जनहित’ में पाला बदलना अच्छी बात है।
ऐसा नहीं कि बीजेपी को नीतीश कुमार के लौटने का इंतजार नहीं हो। बीजेपी का सहज गंठबंधन जेडीयू के साथ रहता है। बीजेपी नेताओं के पिछले दिनों के ही बयानों को देख लें तो जो आक्रामकता आरजेडी के प्रति हमलावार होने में रहा वह आक्रामकता नीतीश कुमार के विरोध में नहीं रहा।
बीजेपी की नीतियों में एक और परिवर्तन का भी आंकलन करना होगा कि इस बार बीजेपी के उन पुराने नेताओं को बीजेपी में तरजीह मिलने लगी है जो नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं। इधर, 2020 में बीजेपी के पुराने नेता को अलग थलग कर दिया गया था। लेकिन पुनः सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव, प्रेम कुमार आदि नेताओं को तरजीह मिलना भी इस बात की पुष्टि करता है कि बीजेपी और जेडीयू एक बार फिर करीब आ सकते हैं।
बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं कि अब नीतीश कुमार के लिए बीजेपी का दरवाजा बंद हो चुका है। उनका बीजेपी में प्रवेश न भूतो न भविष्य। उनके बार-बार पाला बदलने से उनकी विश्वसनीयता समाप्त हो गई है। बिना कोई कारण बताए नीतीश कुमार दो बार पाला बदल चुके हैं। नीतीश कुमार वैसे भी अपना विश्वास। जनता की नजरों में खो चुके हैं। अब जनता ही उनके साथ नहीं है तो बीजेपी क्यों उनके साथ रहेगी।