हमास की तरह पाकिस्तान भी भारत में जबरदस्ती घुस सकता है! इजरायल पर हमास का हमला पश्चिम एशिया के देशों के बीच रिश्ते सामान्य करने की कोशिशों पर तगड़ा चोट है। इस हमले ने सिक्यॉरिटी और इंटेलिजेंस के क्षेत्र में इजरायल की कुव्वत को चुनौती दी है। यूं कहें कि हमास की इतनी बड़ी सफलता ने ब्रैंड इजरायल को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। इससे पता चलता है कि कैसे तेल अवीव हमास की हैसियत और मंसूबों को आंकने में बुरी तरह विफल रही। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमास से बदले का वादा जरूर किया है, लेकिन सुरक्षा बलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बंधक संकट से पार पाने की है। इजरायल अब हमास से निपटने के सभी विकल्पों और संभावित लक्ष्यों का आकलन कर रहा है। जिस तरह हमास के बर्बर हमले का इस्लामी वर्ल्ड में जश्न मनाया गया है, उसने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया है। इससे साफ पता चलता है कि दुनिया कैसे दो ध्रुवों में बंटी है। भारत ने साफ तौर पर इजरायल का पक्ष लिया है और हमास की कार्रवाई को आतंकी हमला करार दिया है। आइए जानते हैं कि जब रूस-यूक्रेन युद्ध के खत्म होने का कोई चांस नहीं दिख रहा, तब इजरायल का एक और मोर्चा खुल जाने का भारत पर क्या असर हो सकता है! सबसे पहले तो यह समझना होगा कि हमास का हमला सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए चल रहे अमेरिकी प्रयासों के लिए बहुत बड़ा झटका है। व्हाइट हाउस बंद कमरों में सीनेटरों के साथ एक संभावित समझौते पर बात कर रहा था, जिसमें सऊदी अरब को कुछ सिक्यॉरिटी गारंटी दी जा सकती थी। यह 2020 के अमेरिका की मध्यस्थता में हो रहे अब्राहम अकॉर्ड्स का विस्तार था, जिसने इजरायल का पहले संयुक्त अरब अमीरात यूएई और फिर बहरीन के साथ संबंधों को सामान्य किया। बाइडेन प्रशासन अमेरिकी की सत्ता में आया तो उसने घरेलू राजनीतिक कारणों से इस तरफ से नजरें हटा ली थीं, लेकिन चीन की मध्यस्थता वाली सऊदी-ईरान समझौते की संभावनाओं ने पर्याप्त खतरे की घंटी बजा दी जिससे वॉशिंगटन को गियर शिफ्ट करना पड़ा।
नई दिल्ली जी20 शिखर सम्मेलन के इतर हुई बातचीत में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा आईएमईईसी पर सहमति, इस राजनीतिक सौदे को प्रदर्शित करने वाली महत्वपूर्ण आर्थिक परियोजना थी। इस परियोजना के तहत सऊदी अरब को एक रेल नेटवर्क विकसित करने और जॉर्डन से होकर इजरायल के हाइफा बंदरगाह तक पहुंचने के लिए पश्चिमी देशों की सहायता मिलेगी। हमास के हमलों ने इस प्रयास पर फिलहाल पानी फेर दिया। वास्तव में, जिस तरह से हमास और ईरान समर्थित हिज्बुल्ला समूह ने इस हमले में गठबंधन किया है, वह इस नॉर्मलाइजेशन अटेंप्ट को विफल करने के लिए एक जानबूझकर किए गए प्रयास की ओर इशारा करता है। हमास के हमले से ठीक पहले यमन के हूती विद्रोहियों ने सऊदी-यमन सीमा पर ड्रोन हमला किया था जिसमें कम-से-कम दो बहरीनी सैनिक मारे गए थे। हूती विद्रोहियों को भी ईरान का समर्थन प्राप्त है।
फिर खुराफात करने की सोचेंगे पाकिस्तानी आतंकी?
दूसरी बात यह है कि आतंकवादी हमले के दुस्साहस और इसके बड़े पैमाने से ऐसे आतंकी गुटों में जोश भरने की आशंका है, जो अभी किसी कारण से खुद को पर्याप्त ताकतवर महसूस नहीं कर रहे हैं या विभिन्न देशों के बीच रियल टाइम प्रभावी खुफिया सहयोग के कारण उन्हें अभियान को अंजाम देने में सफलता नहीं मिल पा रही है। हमास ने उन्हें दिखा दिया है कि अगर देशों और सरकारों का परोक्ष समर्थन हो तो यह किया जा सकता है।
इस मामले में ईरान के अलावा संदेह की उंगली कतर पर भी उठ रही है, जो तालिबान के साथ-साथ हमास लीडरशिप के प्रमुख सदस्यों को भी मेजबानी दे चुका है। जब इजरायल पलटवार को तैयार है, नई दिल्ली जैसी राजधानियों में सवाल यह होगा कि हमास के हमले से पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों में कितना हौसला आएगा? पाकिस्तानी आतंकी संगठन विशेष रूप से कश्मीर में फिर से अपनी गतिविधियां बढ़ाने की हिमाकत कर सकते हैं। ऐतिहासिक रूप से, पाकिस्तानी डीप स्टेट ने इजरायल-फिलिस्तीन का ही मॉडल अपनाया है।
तीसरा महत्वपूर्ण विषय एक बड़े जियोपॉलिटिकल नजरिए का है। वो है कि अमेरिका का फोकस हिंद-प्रशांत से हटकर पश्चिम एशिया पर शिफ्ट हो सकता है। पिछले पांच-छह वर्षों से पश्चिमी देश इस क्षेत्र के प्रति बेपरवाह की मुद्रा में थे। वो इस क्षेत्र से वापसी की प्रक्रिया तेज कर रहे थे जिसकी शुरुआत अफगानिस्तान में तालिबान सरकार स्थापित करने को लेकर कतर समझौते से हुई और 2020-21 में इस क्षेत्र से चार पैट्रियट एंटी-मिसाइल सिस्टम हटा दिए गए। उनमें से दो सऊदी अरब में ऑइल एसेट्स की सुरक्षा के लिए तैनात थे।
शुरुआत में, इनमें से कई देशों की सरकारों ने मुस्लिम कट्टरपंथ पर लगाम कसने के लिए कड़ी मेहनत की। इससे भारत जैसे देशों को फायदा हुआ, जिन्होंने यूएई और सऊदी अरब के साथ नए सुरक्षा समझौते किए। लेकिन जल्द ही प्रतिस्पर्धी शक्तियां अमेरिका की जगह लेकर पावर वैक्यूम को भरना चाहती थीं। इसी चाह में सऊदी अरब ने चीन का रुख किया जबकि ईरान ने रूस का दामन थामा। आखिरकार वॉशिंगटन ने थोड़ा पीछे हटने का फैसला किया, लेकिन जैसा कि इस हमले से साफ हो गया,अब गेम में उसकी वापसी बहुत भयावह परिणाम लाने वाली है। भारत सहित बाकी देशों के लिए पश्चिम एशिया का जिन्न फिर से वापस आ गया है। इस्लामी चरमपंथ और आतंक की खतरनाक वापसी हो चुकी है। इसकी गूंज चौतरफा और संभवतः लंबे समय तक महसूस की जाएगी।