क्या तलाक लेने के बाद हो सकती है सुलह? क्या कहता है कानून?

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आज हम आपको बताएंगे कि कानून तलाक से संबंधित क्या अधिकार देता है! क्‍या पति के साथ वन-टाइम डिवोर्स सेटेलमेंट के समझौते से पत्‍नी मुकर सकती है? क्‍या उसके पास तलाक के लिए हुए समझौते की शर्तों को मानने से इनकार करने का हक होता है? हाल में दिल्‍ली हाई कोर्ट ने डिवोर्स एग्रीमेंट के उल्‍लंघन के संबंध में सख्‍त रुख अपनाया है। तलाक समझौते की शर्तों का उल्लंघन करने वाली महिला को कोर्ट ने एक महीने की जेल की सजा सुनाई है। महिला ने ज्‍यादा लुभावने सौदे की उम्मीद में पति के साथ वन-टाइम डिवोर्स सेटेलमेंट की शर्तों का उल्लंघन किया था। दिल्‍ली हाईकोर्ट ने इस मसले पर फैसला देते हुए कड़ी टिप्‍पणी की। उसने कहा कि अगर इस तरह के व्यवहार को स्वीकार किया जाता है तो यह कानूनी कार्यवाही और दिए गए वचनों में आम जनता के विश्वास को कम कर देगा। लखनऊ में प्रैक्‍ट‍िस करने वाले एडवोकेट गोपाल त्रिवेदी कहते हैं कि तलाक को लेकर बने सुलहनामे को तोड़ा नहीं जा सकता है। यह दोनों पार्टियों के लिए बाध्‍यकारी होता है। इसके बन जाने के बाद पति-पत्‍नी इसकी शर्तों से बंध जाते हैं।

गोपाल त्रिवेदी के मुताबिक, यह बात सिर्फ तलाक को लेकर बने समझौते के संबंध में ही नहीं है। किसी भी तरह का लीगल एग्रीमेंट बाध्‍यकारी होता है। यह आपको एग्रीमेंट की शर्तों को मानने के लिए मजबूर करता है। यही वजह है कि लीगल एग्रीमेंट को बहुत ध्‍यान से पढ़ लेना चाहिए। सुलहनामे के संबंध में तो यह बात और भी महत्‍वपूर्ण हो जाती है। इस तरह के एग्रीमेंट में यह जिक्र जरूर होता है कि समझौता करने वालों ने इसे ध्‍यान से पढ़ लिया है। उसके बाद ही वह इस दिशा में आगे बढ़ने जा रहे हैं। दिल्‍ली हाईकोर्ट का फैसला उसी संदर्भ में दिया गया है।

पति की ओर से पेश होते हुए वकील प्रभजीत जौहर ने अदालत को सूचित किया कि तलाक के समझौते के अनुसार मुंबई में एक अपार्टमेंट अलग हो रही पत्नी को सौंप दिया गया था। लेकिन, महिला ने जोर देकर कहा कि पति लंबित रखरखाव शुल्‍क का भुगतान करे। जबकि समझौते में महिला ने इसका भुगतान करने की बात कही थी। जौहर ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि महिला ने लंबित मामलों को आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाए। जबकि समझौते में उसने कहा था कि इन्हें वापस ले लिया जाएगा।

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला को पति के साथ तलाक समझौते की शर्तों का उल्लंघन करने के लिए एक महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई है। न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने 9 अगस्त को इस बाबात आदेश सुनाया। उन्‍होंने महिला को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया। उस पर 2000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने माना कि महिला ने अपने वचन का सम्मान नहीं किया है। न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने केवल बेहतर वित्तीय सौदेबाजी के लिए एक-दूसरे के खिलाफ दायर किए गए 20 मामलों को जारी रखने की पत्नी की जिद को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करार दिया। यहि नहीं आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य सवाल यह आया था कि क्या तलाक के लिए अनिवार्य कूलिंग ऑफ पीरियड जरूरी है? क्या टूट के कगार पर पहुंची शादी जिसमें सुधार की गुंजाइश न बची इरिट्रीवबल ब्रेक डाउन ऑफ मैरिज हो, इस आधार पर तलाक हो सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह दूसरे सवाल यानी तलाक के ग्राउंड पर फैसला देगा। इस मामले में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और मीनाक्षी अरोड़ा को कोर्ट सलाहकार बनाया गया था। वहीं इंदिरा जयसिंह ने अपनी दलील में कहा था कि टूट के कगार पर पहुंची शादी जिसमें सुधार की गुंजाइश न बची हो इरिट्रीवबल ब्रेक डाउन ऑफ मैरिज, इसे तलाक का आधार बनाया जाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में फैसले के लिए अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल करना चाहिए। दवे ने दलील दी कि इस मामले में कोर्ट को अपने पावर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि संसद ने इस ग्राउंड को तलाक का आधार नहीं बनाया है। सिब्बल ने इस दौरान गुजारा भत्ता और कस्टडी के मुद्दे को भी उठाया था।गौरतलब है कि पिछले हफ्ते एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि टूट के कगार पर पहुंची शादी जिसमें सुधार की गुंजाइश न बची हो इरिट्रीवबल ब्रेक डाउन ऑफ मैरिज को क्रुअल्टी के दायरे में लाकर तलाक का आदेश पारित किया था।

12 सितंबर 2017 को दिए अपने एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए छह महीने का वेटिंग पीरियड अनिवार्य नहीं है। अगर दोनों पार्टी में समझौते का प्रयास विफल हो चुका है और दोनों ने बच्चे की कस्टडी और अन्य विवादों का निपटारा कर लिया है तो कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर 6 महीने के पीरियड खत्म कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे में दोनों पार्टी सहमति से तलाक की अर्जी के एक हफ्ते बाद वेटिंग पीरियड को खत्म करने की अर्जी दाखिल कर सेकंड मोशन दाखिल कर सकते हैं ताकि उन्हें तलाक मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि तलाक के मामले में जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक की अर्जी दाखिल करें तो अदालत वेटिंग पीरियड को खत्म करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करे।