आदिवासी कबीले के द्वारा केंद्र सरकार से सरना धर्म को मान्यता दी जाने की बात कही है! इनका कहना था कि हम आदिवासी न तो हिंदू हैं और न ही ईसाई। हमारी अपनी जीवन शैली, धार्मिक प्रथाएं, रीति-रिवाज, संस्कृति और धार्मिक विचार हैं, जो किसी भी अन्य धर्म से अलग हैं।झारखंड, ओडिशा और असम सहित पांच राज्यों के विभिन्न आदिवासी समुदायों के लोगों ने गुरुवार को दिल्ली में प्रदर्शन करते हुए केंद्र से उनके धर्म को ‘सरना’ के रूप में मान्यता देने और आगामी जनगणना के दौरान इस श्रेणी के तहत उनकी गणना सुनिश्चित करने की मांग की। आंदोलनकारियों ने ‘सरना धर्म संहिता’ को सरकार की मान्यता दिलाने के लिए अपने संघर्ष को तेज करने का भी संकल्प लिया और जंतर-मंतर पर सामूहिक प्रार्थना की और अपने देवताओं और श्रद्धेय नेताओं का आशीर्वाद लिया। 30 जून, 1855 को अंग्रेजों के खिलाफ संथाल विद्रोह की शुरुआत की वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए आंदोलन का आयोजन किया गया था।
इसमें अधिकांश संथाल जनजाति के सदस्य थे और इन्होंने झारखंड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम के 50 जिलों के 250 अनुसूचित जनजाति बहुल ब्लॉकों से आदिवासी सेंगल अभियान (आदिवासी सशक्तिकरण अभियान) के तत्वावधान में अपनी मांगों को उठाया। झारखंड के एक प्रमुख आदिवासी नेता सलखान मुर्मू ने कहा कि हम यहां यह मांग करने के लिए आए हैं कि सरकार हमारे धर्म को ‘सरना’ के रूप में मान्यता दे और इस श्रेणी के तहत आदिवासियों की गणना के लिए आगामी जनगणना में एक प्रावधान शामिल करे। हम राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहते थे और उनसे सरना के रूप में हमारे धर्म को मान्यता देने का आग्रह करना चाहते थे, लेकिन उनसे मिलने का समय नहीं मिल सका। इसलिए हमने पुलिस के माध्यम से राष्ट्रपति को अपनी मांगों का एक ज्ञापन सौंपा।
1998-2004 से लगातार दो बार ओडिशा के मयूरभंज लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद रहे मुर्मू ने कहा कि देश में आदिवासियों का अपना धर्म, धार्मिक प्रथाएं और रीति-रिवाज हैं, लेकिन इसे अभी तक सरकार द्वारा मान्यता नहीं मिली है। हम आदिवासी न तो हिंदू हैं और न ही ईसाई। हमारी अपनी जीवन शैली, धार्मिक प्रथाएं, रीति-रिवाज, संस्कृति और धार्मिक विचार हैं, जो किसी भी अन्य धर्म से अलग हैं। हम प्रकृति की पूजा करते हैं न कि मूर्तियों की। हमारे समाज में न तो वर्ण व्यवस्था है और न ही कोई असमानता। उन्होंने दावा किया कि आदिवासियों के धर्म को सरकार की मान्यता के अभाव में देश में अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदस्यों को अन्य धर्मों को अपनाने के लिए गुमराह किया जाता है।
सरना धर्म कोड की मांग कर रहे आदिवासी संगठनों ने इस आंदोलन का नाम दिल्ली दस्तक रखा है। इसके तहत सोमवार छह दिसंबर को गांधी पीस फाउंडेशन में संगठन के प्रतिनिधि सभा की बैठक होगी। इसके बाद सात दिसंबर को जंतर-मंतर पर सत्याग्रह होगा।
झारखंड के प्रतिनिधिमंडल में शामिल डा. करमा उरांव ने बताया कि सत्याग्रही महिलाओं और पुरुषों को आदिवासियों के पारंपरिक परिधान में दिल्ली पहुंचने को कहा गया है। महिलाएं लाल पाड़ की साड़ी और पुरुष प्रतिनिधि सफेद शर्ट, सरना गमछा और सफेद धोती में कार्यक्रम में भाग लेंगे। सभी को सत्याग्रह मेंं सरना झंडा भी साथ लाने को कहा गया है।
झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में एक साल पहले ही आदिवासी सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित हो चुका है। अब विभिन्न आदिवासी संगठन केंद्र सरकार पर इसे लागू करने के लिए दबाव बनाने की रणनीति में जुटे हैं। इनकी मांग है कि सरना धर्म को मानने वाले प्रकृति के पूजक हैं। इन्हें जनगणना के कालम में अलग धर्म के रूप में चिन्हित किया जाना चाहिए। पूर्व में इसका प्रविधान था।
हालांकि यह मांग लंबे समय से की जा रही है. आदिवासी खुद को हिंदू ही नहीं, किसी भी संगठित धर्म का हिस्सा नहीं मानते हैं इसलिए वे लंबे समय से अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग कर रहे हैं, ताकि जनगणना में वे अपनी स्थिति और सही आंकड़े जान सकें.
1951 की जनगणना के बाद देश के आदिवासियों को ‘अन्य’ कॉलम में डाल दिया गया. इससे कई आदिवासी समुदाय खुद को हिंदू कॉलम में दर्ज करने लगे. लेकिन सरना आदिवासियों ने अपने समुदायों के बीच जागरूकता फैलाना शुरू किया.
इस तरह 2011 की जनगणना में झारखंड में सरना मतावलंबियों ने लगभग 40 लाख से भी अधिक की संख्या में खुद को सरना के रूप में दर्ज किया.
हाल के दिनों में सरना धर्म कोड की मांग ने जोर पकड़ी और जगह-जगह इसे लेकर आंदोलन, प्रदर्शन, मानव श्रृंखलाएं आदि बनाए गए.
सरना धर्म कोड की मांग बहुत पुरानी है. कार्तिक उरांव और डॉक्टर रामदयाल मुंडा ने शुरू से ही आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की ज़रूरत को महसूस किया था. डॉक्टर रामदयाल मुंडा ने अपने समय में राष्ट्रीय स्तर पर इस मांग को उठाया था.
अब झारखंड में उत्सव का माहौल है. सरकार ने बुधवार को विशेष विधानसभा सत्र बुलाकर ‘सरना आदिवासी धर्म कोड’ पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है. बहुमत से विधानसभा में ‘सरना आदिवासी धर्म कोड’ पारित हो गया है और अब इसे केंद्र सरकार को भेजा जाएगा.
गौर करने वाली बात है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने झारखंड में आदिवासियों का वोट ‘सरना धर्म कोड’ के कार्ड पर ही हासिल किया था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद अमित शाह ने अपने झारखंड दौरे में सरना धर्म कोड पर बातचीत करने वाले प्रतिनिधि मंडल दल से मिलने से इनकार कर दिया था.
झारखंड मुक्ति मोर्चा के चुनावी वादे में सरना धर्म कोड के प्रस्ताव को आगे बढ़ाना भी शामिल था. हाल के दिनों में सरना धर्म कोड की मांग को लेकर लोग दो खेमों में बंट गए थे.
एक खेमा ‘सरना धर्म कोड’ और दूसरा खेमा ‘आदिवासी धर्म कोड’ की मांग कर रहा था. लेकिन झारखंड सरकार ने ‘सरना आदिवासी धर्म कोड’ पर अपनी मुहर लगा दी है और इसे लेकर सभी लोगों ने अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की है!