Monday, December 23, 2024
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क्या बीजेपी पर मुसलमान का अविश्वास पड़ सकता है भारी?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बीजेपी पर मुसलमान का अविश्वास भारी पड़ सकता है! लोकसभा चुनाव में पहले फेज की वोटिंग में अब चंद दिन ही बाकी हैं। ऐसे में सभी पार्टियां जमकर प्रचार अभियान में जुटी हैं। हालांकि, चुनाव से पहले ही मुस्लिम वोटों को लेकर स्थिति साफ होती नजर आ रही। केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी ने भले ही 400 पार का टारगेट सेट किया है, बावजूद इसके पार्टी को ये लगता है कि उसे मुस्लिम समुदाय के वोटों की जरूरत नहीं है। उसका ‘400 पार’ का लक्ष्य मुसलमानों पर निर्भर नहीं है। विपक्ष का रवैया इसके विपरीत नजर आ रहा। उन्हें लग रहा कि बीजेपी का जो स्टैंड है ऐसे में मुस्लिम वोटर हमें तो भला किसके लिए वोट करेंगे? उन्हें ये निश्चित रूप से लगता है कि मुस्लिम मतदाता बीजेपी को वोट नहीं देंगे। उन्हें 1983 से 1990 तक दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद जग प्रवेश चंद्रा की टिप्पणियां याद आ रही हैं। भले ही उन्होंने कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया, लेकिन उन्होंने कहा कि पार्टियां अपने वोटों के लिए मुसलमानों का शोषण करती हैं, लेकिन एक बार सत्ता में आने के बाद, वे शासन में प्रतिनिधित्व के लिए इस समुदाय की आकांक्षाओं को भूल जाती हैं। आजादी के लगभग आठ दशक बीत चुके हैं, मुसलमानों ने भारत के प्रति अपनी वफादारी व्यक्त की और मुहम्मद अली जिन्ना के पाकिस्तान को खारिज कर दिया। वो भी ये मानते हुए कि वे हिंदू-बहुल भारत में समृद्ध होंगे। हालांकि, उन्हें उनका हक नहीं मिला है। इसके बजाय, उनकी वफादारी पर अक्सर संदेह किया जाता है। यह विडंबना है।

भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कहा था कि मुसलमानों ने विभाजन को इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि वे हदीस मंत्र में विश्वास करते हैं, हुब्बुल वतनी, निस्फुल इमान : मातृभूमि के प्रति प्रेम मुस्लिम आस्था का आधा हिस्सा है। संघ परिवार और मुसलमानों के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं, खासकर चुनावों के दौरान ये कुछ ज्यादा ही नजर आ रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि यह आपसी अविश्वास से दर्शाते हैं। बीजेपी का कहना है कि हर चुनाव में, मुस्लिम समुदाय उस कैंडिडेट को वोट देने का आह्वान करता है जो पार्टी को हरा सकता है। इसके नेताओं का ये तर्क लोकतंत्र में ठीक नहीं है। मुसलमानों को यह समझना होगा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में, किसी भी राजनीतिक दल को अछूत नहीं माना जाना चाहिए।

2014 और 2019 में बीजेपी की शानदार जीत के बाद अब पार्टी हैट्रिक की प्लानिंग में जुटी है। ऐसे में मुस्लिम समुदाय केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के अपनी तरफ थोड़ा आगे बढ़ने का इंतजार कर रही है। इस समुदाय का यही कहना है कि आखिर बीजेपी विश्वसनीय और सक्षम मुस्लिम उम्मीदवारों को क्यों नहीं खड़ा करती? भले ही हम बीजेपी को वोट दें, पार्टी कभी हमारे वोट को स्वीकार नहीं करेगी। उन्होंने पूछा कि आखिर हमें क्या करना होगा जब बीजेपी अपने राजनीतिक प्लान में उन्हें भी शामिल करेगी। क्या यह कहना कि केंद्रीय योजनाओं में हमारे साथ भेदभाव नहीं किया जाता, इसका उत्तर हो सकता है?

मोहम्मद अखलाक की लिंचिंग से लेकर बिलकिस बानो और उनके परिवार के साथ किए गए व्यवहार तक, मुसलमानों ने सांप्रदायिक हिंसा के भयानक केस देखे हैं। उन्होंने बिलकिस बानो मामले के आरोपियों को माला पहनाते, वॉट्सऐप पर नफरती संदेशों भेजने, अपने समुदाय के कुछ लोगों के घरों पर बुलडोजर एक्शन और उर्दू-माध्यम के स्कूलों की संख्या में कमी देखी है। उनके समुदाय से शायद ही कोई सर्वोच्च पदों पर हो, चाहे वह कैबिनेट हो या कोई शीर्ष बोर्डरूम। ऐसे में बीजेपी के लिए मुसलमानों को टिकट देना एक महत्वपूर्ण कदम होगा। यह पुष्टि करेगा कि उनकी भारत में रहने की कहानी धर्मों से परे है। भारतीय लोकतंत्र की ताकत इसकी समावेशिता है। यह एक सकारात्मक संकेत देगा और विभिन्न धर्मों के बीच कटुता को कम करेगा।

मुसलमानों को भी कुछ कदम आगे बढ़ाने की जरूरत है। उन्हें बीजेपी में सक्षम और विश्वसनीय उम्मीदवारों के लिए अपना समर्थन घोषित करना चाहिए। उन्हें वोट देना चाहिए। खासकर उन लोगों को जिन्होंने घृणा को त्याग दिया है। विकास की बात करते हैं और विचारधारा से परे जाने की कोशिश करते हैं। मुसलमानों के पास वास्तविक मांगों का एक चार्टर होना चाहिए, इसमें बच्चों के लिए किफायती शिक्षा प्रदान करना, मदरसों का आधुनिकीकरण, पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं और आर्थिक सहायता शामिल हैं। उन्हें तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ब्रिगेड से कठिन प्रश्न पूछने चाहिए कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के उत्थान और शासन में उनका प्रतिनिधित्व देने के लिए क्या किया है। आखिर ‘इंडिया’ ब्लॉक में प्रमुख मुस्लिम नेता कहां हैं? यह एक सामान्य बात लग सकती है लेकिन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी के लिए यह तय करने का समय आ गया है कि उन्हें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीति से जुड़ने की जरूरत है। पीछे हटना कोई विकल्प नहीं है। यह आज के भारत में पलने वाली मुसलमानों की पीढ़ी के साथ अन्याय होगा। ताकत की अपनी स्थिति को देखते हुए, बीजेपी पर भी एक कदम से अधिक आगे बढ़ने की जिम्मेदारी है।

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