क्या जेल से भी चलाई जा सकती है सरकार?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या जेल से भी सरकार चलाई जा सकती है या नहीं! जेल में रहते नेताओं और बाहुबलियों के चुनाव लड़ने की परंपरा पुरानी है। ऐसे लोगों की लंबी फेहरिस्त है। बिहार में इसकी शुरुआत समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस से मानी जाती है। देश से आपातकाल खत्म होने के बाद जब 1977 में लोकसभा चुनाव हुए तो जॉर्ज फर्नांडीस को जनता पार्टी ने मुजफ्फरपुर से उम्मीदवार बनाया था। उस वक्त वे जेल में थे। बाहुबली काली प्रसाद पांडेय ने भी 1985 में जेल में रहते ही निर्दलीय चुनाव लड़ा और गोपालगंज में कांग्रेस के अभेद्य किले को ध्वस्त किया। उसके बाद तो यह सिलसिला चल ही निकला। फर्क यही रहा कि ज्यादातर बाहुबली ही उसके बाद जेल से चुनाव लड़ते या अपने परिजनों को लड़ाते-जीतते रहे। प्रखर समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस को डायनामाइट कांड में तिहाड़ जेल भेज दिया गया। उन पर आरोप था कि इमर्जेंसी के खिलाफ उन्होंने सरकारी संस्‍थानों और रेल ट्रैक उड़ाने के लिए डायनामाइट की तस्‍करी की। इंदिरा सरकार को अपदस्थ करने के लिए विद्रोह करने का आरोप उन पर लगा। उन्हें 1976 में गिरफ्तार किया गया। वे दिल्‍ली की तिहाड़ जेल में बंद थे। वर्ष 1977 में जब विपक्षी दलों ने जनता पार्टी बनाई तो जॉर्ज फर्नांडीस को बिहार के मुजफ्फरपुर से उम्मीदवार घोषित किया गया। जेल में रहते ही उन्होंने चुनाव लड़ा और तीन लाख से अधिक मतों से जीत हासिल की।

बिहार में जेल से चुनाव लड़ने वालों की फेहरिस्त छोटी नहीं है। बिहार के एक बाहुबली काली प्रसाद पांडेय ने गोपालगंज सीट से चुनाव लड़ कर भारी मतों से बहैसियत निर्दलीय उम्मीदवार जीत दर्ज की थी। गोपालगंज को तब कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। वर्ष 1984 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में काली प्रसाद पांडेय ने कांग्रेस के दिग्गज और कई बार के सांसद रहे नगीना राय (अब स्वर्गीय) को हराया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर का लाभ भी कांग्रेस उम्मीदवार नगीना राय को नहीं मिला। हालांकि बाद में काली प्रसाद पांडेय ने अलग-अलग कई दलों के टिकट पर चुनाव लड़ा, पर उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई।

जय प्रकाश नारायण (जेपी) का छात्र आंदोलन 1974 में जब उफान पर था, तब छात्र नेता होने के नाते शरद यादव को जेल भेज दिया गया था। उसी वक्त जबलपुर सीट पर उपचुनाव हुआ। जबलपुर लोकसभा सीट से सेठ गोविंद दास 1952 से ही लगातार चुनाव जीतते रहे थे। उनके निधन से यह सीट खाली हुई थी। जबलपुर यूनिवर्सिटी में छात्र संघ के अध्यक्ष के नाते जेपी ने शरद यादव को ही वहां से चुनाव लड़ने को कहा। वे जेल में रह कर पहली बार चुनाव लड़े और जीत गए। उनके खिलाफ गोविंद दास के बेटे मैदान में थे। शरद को छात्र आंदोलन के कारण सभी विपक्षी दलों का समर्थन मिला। बाद में शरद यादव बिहार की मधेपुरा सीट से भी सांसद बने। इंदिरा गांधी ने जब संसद का कार्यकाल पांच साल की बजाय छह साल किया तो शरद ने जबलपुर सीट इस्तीफा दे दिया था।

बिहार में बाहुबली से राजनेता तक का सफर तय करने वाले अनंत सिंह ने 2020 में जेल में रहते ही विधानसभा का चुनाव लड़ा और पांचवीं बार विधायक बने। आरजेडी के टिकट पर उन्होंने मोकामा से जीत दर्ज की। उन्होंने जेडीयू उम्मीदवार राजीव लोचन को हराया था। अनंत सिंह पर 38 आपराधिक मामले दर्ज हैं। उनके घर से 2019 में एके-47 और बम बरामद हुए थे। कुछ दिनों तक वे फरार रहे। बाद में सरेंडर कर दिया। सजा हो जाने के कारण उनकी सदस्यता खत्म हो गई तो उनकी पत्नी नीलम देवी ने उपचुनाव में मोकामा से जीत दर्ज की। हालांकि अब वे आरजेडी छोड़ कर एनडीए कैंप में आ गई हैं।

सिवान में आतंक का पर्याय रहे शहाबुद्दीन का राजनीतिक जीवन तो 1990 में ही शुरू हो गया था, जब वे जीरादेई सीट से पहली बार 1990 में विधायक चुने गए। लालू प्रसाद यादव जब जनता दल में थे तो उन्होंने शहाबुद्दीन को 1995 में टिकट दिया और वे दोबारा विधायक चुन लिए गए। हालांकि अपराध की दुनिया में रहने के बावजूद वे राजनीति में रुचि लेते रहे। आरजेडी के टिकट पर वे 1996 से 2004 तक लगातार चार बार सिवान के सांसद चुने गए। आखिरी लोकसभा का चुनाव उन्होंने जेल में रहते लड़ा। छोटपुर निवासी मुन्ना चौधरी मामले में 13 अगस्त 2003 को उन्होंने कोर्ट में सरेंडर किया था और जेल चले गए थे। जेल में रहते ही उन्होंने 2004 का लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए।

उत्तर प्रदेश में तो जेल से चुनाव लड़ने वाले बाहुबली नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। मुख्तार अंसारी, राजा भैया, हरिशंकर तिवारी, आजम खान, नाहिद अंसारी जैसे कई नाम दिखते हैं, जिन्होंने जेल में रहते चुनाव लड़ा और जीतते भी रहे। जेल में रहते ही राजा भैया ने 2002 में चुनाव लड़ा था। जीतने पर मुलायम सिंह यादव ने अपने मंत्रिमंडल में उन्हें मंत्री भी बना दिया था। मुख्तार अंसारी ने जेल से ही 2017 में यूपी विधानसभा का चुनाव मऊ से लड़ा और जीत हासिल की। हरिशंकर तिवारी ने 1985 में जेल से ही गोरखपुर से चुनाव लड़ा। वे भी जीत गए थे। माफिया डॉन ओम प्रकाश श्रीवास्तव ‘बबलू’ ने भी 2004 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था। हालांकि सीतापुर से बबलू चुनाव हार गया था।

झारखंड के सीएम रहे हेमंत सोरेन फिलवक्त मनी लांड्रिंग मामले में रांची की होटवार जेल में बंद है। सूचना है कि उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा जेएमएम ने उन्हें दुमका लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है। हेमंत के पिता और जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन पिछली बार दुमका से चुनाव हार गए थे। दुमका सीट अभी भाजपा के कब्जे में है। वहां से सुनील सोरेन सांसद हैं। हेमंत सोरेन के उम्मीदवार बनने पर दुमका सीट पर मुकाबला इस बार काफी दिलचस्प रहने वाला है। इसलिए कि हाल ही में जेएमएम छोड़ कर भाजपा के साथ गईं उनकी भाभी सीता सोरेन को पार्टी ने सुनील सोरेन की जगह अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। पिछली बार वहां जीत-हार का अंतर तकरीबन 50 हजार वोटों का था। दुमका सीट पर देवर-भाभी के मुकाबले पर सबकी निगाहें टिकी हैं।